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Dakshinayan and Uttarayan Sankranti: शास्त्रों में सूर्य के 'दक्षिणायण' व 'उत्तरायण' होने का विशेष महत्त्व जानिए

Dakshinayan and Uttarayan Sankranti: ऐसी मान्यता है कि सूर्य के 'उत्तरायण' रहते देहत्याग होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है जबकि 'दक्षिणायण' के समय मृत्यु होने पर जीव को पुन: इस नश्वर संसार में लौटना पड़ता है।

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Newstrack Network
Published on: 7 March 2024 5:51 PM IST
Dakshinayan and Uttarayan Sankranti:
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Dakshinayan and Uttarayan Sankranti: 

Dakshinayan and Uttarayan Sankranti: सूर्यदेव 'दक्षिणायण' हो गए हैं। हमारे शास्त्रों में सूर्य के 'दक्षिणायण' व 'उत्तरायण' होने का विशेष महत्त्वहोता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत में इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त होने पर भी पितामह भीष्म ने अपनी देहत्याग कर मृत्युलोक से प्रस्थान करने के लिए सूर्य के 'उत्तरायण' होने की प्रतीक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के 'उत्तरायण' रहते देहत्याग होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है जबकि 'दक्षिणायण' के समय मृत्यु होने पर जीव को पुन: इस नश्वर संसार में लौटना पड़ता है।

क्या है 'उत्तरायण' व 'दक्षिणायण'

शास्त्रानुसार एक सौर वर्ष में दो अयन होते हैं।

1-उत्तरायण

2-दक्षिणायण

1. उत्तरायण

सूर्य की उत्तर गति अर्थात् चलन को सूर्य का 'उत्तरायण' ( सौम्यायन ) होना कहा जाता है। गोचरवश जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक गोचर करता है तब इस अवधि को सूर्य का 'उत्तरायण' होना कहा जाता है। 'उत्तरायण' का प्रारंभ 'मकर-संक्रांति' से होता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन माना गया है। यह अत्यंत शुभ व सकारात्मक होता है। अत: समस्त शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, दीक्षा, गृहप्रवेश, व्रतोद्यापन, उपनयन संस्कार (जनेऊ), देव-प्रतिष्ठा आदि सूर्य के 'उत्तरायण' रहते ही अधिक श्रेयस्कर माने गए हैं। उत्तरायण में शिशिर, वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु आती हैं।

2. दक्षिणायण

सूर्य की दक्षिण गति अर्थात् चलन को सूर्य का 'दक्षिणायन' (याम्यायन) होना कहा जाता है। गोचरवश जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक गोचर करता है तब इस अवधि को सूर्य का 'दक्षिणायण' कहा जाता है। 'दक्षिणायण' का प्रारंभ कर्क-संक्रांति से होता है। दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि माना गया है। यह काल अत्यंत नकारात्मक व निर्बल होता है। अत: समस्त शुभ एवं मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, दीक्षा, गृहप्रवेश, व्रतोद्यापन, उपनयन संस्कार (जनेऊ), देव-प्रतिष्ठा आदि का सूर्य के 'दक्षिणायण' रहते निषेध होता है किंतु अत्यावश्यक होने पर यथोचित वैदिक पूजन कर इन्हें संपन्न किया जा सकता है। दक्षिणायण में वर्षा, शरद एवं हेमंत ऋतु आती हैं।

क्या होती है संक्रांति

शास्त्रानुसार सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में गोचरवश प्रवेश करने को 'संक्रांति' कहा जाता है। एक सौर वर्ष में बारह संक्रांतियां आती हैं। सूर्य गोचरवश एक राशि में एक माह तक रहते है अत: संक्रांति प्रतिमाह आती है। गोचरवश सूर्य जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसी राशि के नाम के अनुसार संक्रांति का नाम होता है। जैसे सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश को 'कर्क संक्रांति' व मकर राशि में प्रवेश को 'मकर संक्रांति' कहते हैं। इन समस्त बारह संक्रांतियों में 'मकर संक्रांति' का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसी दिन से सूर्य 'उत्तरायण' होते हैं।



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Shalini Rai

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