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सूर्यलोक की इकलौती देवी कूष्मांडा, मालपुआ के भोग से होती हैं प्रसन्न
कूष्मांडा देवी अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके 7 हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं
लखनऊ: नवरात्रि (Chaitra Navratri) का चौथा दिन मां कूष्मांडा(Maa Kushmanda) देवी की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा का रूप सूर्य के समान तेजस्वी है व उनकी आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं, उनकी मधुर मुस्कान(Sweet Smile) हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है।
ब्रह्मांड को जन्म देने के कारण इस देवी को कूष्मांडा कहा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदि शक्ति भी कहा गया है।
ऐसा है देवी मां का स्वरुप
कूष्मांडा देवी की 8 भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके 7 हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। 8वें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी का वाहन सिंह ( Lion) है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। इसलिए देवी को कूष्मांडा कहा जाता है।
हर कण में रोशनी बिखेरती
देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य( Sun) की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।
कूष्मांडा देवी की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है..
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी का यह स्वरुप केवल सेवा-भक्ति से प्रसन्न होती है । मां कूष्मांडा को चतुर्थी के दिन मालपुआ का प्रसाद अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए तो हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाती है।
ऐसे बरसती हैं कृपा
मान्यता है कि माता की उपासना से मनुष्य को व्याधियों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य अपने जीवन के परेशानियों से दूर होकर सुख और समृद्धि की तरफ बढ़ता है। देवी सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही देवी कृपा का अनुभव होने लगता है।