TRENDING TAGS :
Devutthana Ekadashi Vrat 2021: हर कष्ट को दूर करता है देवोत्थान एकादशी व्रत
Devutthana Ekadashi Vrat 2021: क्या आपको मालूम है कि नवंबर में देवोत्थान एकादशी व्रत कब है, इसकी पूजा कैसे होती है, इस व्रत की कथा क्या है? आइए जानते है इसके बारे में...
Devutthana Ekadashi 2021: हिंदू कैलेंडर में कार्तिक आठवाँ चंद्र महीना है। कार्तिक माह के दौरान होने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से प्रारम्भ होता है, जिसे देवोत्थान एकादशी (Devutthana Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि एकादशी ग्यारहवां दिन है और पूर्णिमा कार्तिक महीने का पंद्रहवाँ दिन होती है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को पाँच दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन संपन्न होने वाले कई अनुष्ठानों और उत्सवों के रूप में कृतिका पूर्णिमा बहुत महत्वपूर्ण है।
कृतिका पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।पांच दिनों के लिए मनाए जाने वाले कार्तिक पूर्णिमा के उत्सव में तुलसी विवाह, भीष्म पंचक, वैकुंठ चतुर्दशी और देव दीपावली शामिल होते हैं।
देवोत्थान एकादशी कब है (Devutthana Ekadashi kab hai)?
कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं । कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। देवउठनी इस वर्ष पंचांग के अनुसार 14 नवंबर, 2021 को पड़ रही है। एकादशी तिथि (devutthana ekadashi 2021 date and time) का प्रारंभ 14 नवंबर प्रातः 5:48 से होगा और समापन 15 नवंबर की सुबह 6:39 बजे होगा।
देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि (Devutthana Ekadashi Puja Vidhi)
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। कहते हैं कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। पितृदोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करना चाहिए। इस दिन (devutthana ekadashi mantra) "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः "मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।. शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।. इस दिन देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रावण या वाचन करना चाहिए। कथा सुनने या कहने से पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म
- एकादशी के दिन किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक तुलसी विवाह है।
- देवोत्थान एकादशी की संध्या पर, भक्त भगवान विष्णु का आवाहन करने और उन्हें जगाने के लिए उनकी उपासना और पूजा करते हैं।
- भक्त सुबह जल्दी एकादशी उपवास का प्रण करते हैं और भगवान विष्णु के नाम का उच्चारण करते हैं।
- लोग घरों साफ करते हैं, एक पवित्र स्नान करते हैं और फिर भगवान विष्णु के चरणों को चित्रित करते हैं।
- भगवान विष्णु की एक तस्वीर या मूर्ति को ओखली में रखा जाता है और इसे गन्ना, सिंघाड़ा, बेर, मिठाई और फल भरा जाता है और फिर इसे ढक्कन से ढकते हैं।
- इस विशेष दिन, भक्त घरों के साथ-साथ मंदिरों में भी मिट्टी के दीपक जलाते हैं।
- रात के समय परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु के साथ विभिन्न देवताओं की पूजा करने की आवश्यकता होती है। शंख बजाने और घंटी बजाने से, भक्त भगवान विष्णु को जगाने की कोशिश करते हैं।
- भगवान का आह्वान करते समय भक्त मंत्र जाप करते हैं - उठो देव, बाथ देव, अंगुरिया चटकाओ देव, नयी सूत, नयी कपस, देव उठाय कार्तिक मास।
पौराणिक कथा (Devutthana Ekadashi katha in hindi)
एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा - हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले - देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।
देवताओं को जगाने, उन्हें अंगुरिया चटखाने और अंगड़ाई ले कर जाग उठने का आह्रान करने के उपचार में भी संदेश छुपा है। स्वामी नित्यानंद सरस्वती के अनुसार चार महीने तक देवताओं के सोने और इनके जागने पर कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उनके जागने का प्रतीकात्मक है। प्रतीक वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव बताने, उस प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देते हैं। वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य सबसे बड़े देवता हैं। उन्हें जगत् की आत्मा भी कहा गया है।
हरि, विष्णु, इंद्र आदि नाम सूर्य के पर्याय हैं। वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं। इसलिए ऋषि ने गाया है कि वर्षा के चार महीनों में हरि सो जाते हैं। फिर जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो वे जाग उठते हैं या अपने भीतर उन्हें जगाना होता है। बात सिर्फ़ सूर्य या विष्णु के सो जाने और उस अवधि में आहार विहार के मामले में ख़ास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है।
इस अनुशासन का उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्रकृति परिवर्तनों उनके कारण प्राय: फैलने वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के कारण अक्सर गड़बड़ाता रहता है। निजी जीवन में स्वास्थ्य संतुलन का ध्यान रखने के साथ ही यह चार माह की अवधि साधु संतों के लिए भी विशेष दायित्वों का तकाजा लेकर आती है। घूम-घूम कर धर्म अध्यात्म की शिक्षा देने लोक कल्याण की गतिविधियों को चलाते रहने वाले साधु संत इन दिनों एक ही जगह पर रुक कर साधना और शिक्षण करते हैं।
जिस जगह वे ठहरते उस जगह माहौल में आध्यात्मिक, प्रेरणाओं की तंरगे व्याप्त रहती थीं। इस दायित्व का स्मरण कराने के लिए चातुर्मास शुरू होते ही कुछ ख़ास संदर्भ भी प्रकट होते लगते हैं। आषाढ़, पूर्णिमा को वेदव्यास की पूजा गुरु के प्रति श्रद्धा समर्पण, श्रावणी नवरात्र जैसे कई उत्सव आयोजनों की श्रृंखला शुरू हो जाती है जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा देना ही होता था। उल्लेखनीय है प्रारंभ चाहे जिस दिन हो समापन कार्तिक पक्ष की एकादशी के दिन ही होता है। वहीं कार्तिक शुकलपक्ष की एकादशी को देवोत्थानी (देवताओं के जागने की) कहा गया है।
देवोत्थानी एकादशी पर न करें ये कार्य
- एकादशी और उससे एक दिन पहले भी किसी तरह से मांसाहार या तामसिक गुणों वाली चीजों का सेवन न करें।
- यदि एकादशी का व्रत रखा है तो लकड़ी के दातून या पेस्ट से दांत साफ न करें।
- शास्त्रों के अनुसार, एकादशी तिथि को किसी पेड़-पौधों के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए।
- एकादशी के दिन खासतौर पर तुलसी न तोड़ें, क्योंकि ये विष्णु प्रिया हैं।
- भोग लगाने के लिए पहले से तुलसी तोड़ लेनी चाहिए लेकिन अर्पित की गई तुलसी स्वयं ग्रहण न करें।
- इस दिन किसी भी तरह नशा, जुआ, निंदा, अपशब्द व कोई भी गलत कार्य भूलकर भी न करें।
- यदि आपने एकादशी का व्रत रखा है तो को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी व्रत में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए खासतौर पर व्रत नहीं भी रखा है तो भी चावल का सेवन न करें।
- इस दिन घर में भूलकर भी कलह न करें।
- अपने से बड़ों, गुरु या किसी असहाय व्यक्ति का अपमान न करें।
तुलसी विवाह का आयोजन (Tulsi Vivah 2021)
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।
तुलसी विवाह की विधि (Tulsi Vivah Vidhi)
शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं। तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं। तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं। गमले में सालिग्राम जी रखें। ध्यान रखें कि सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं तथा गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री लेकर आएं। कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
प्रसाद चढ़ाएं और इसके बाद 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें। इसके बाद प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें और प्रसाद वितरण करें। पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें - उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें। अंत में मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।
देवोत्थानी एकादशी व्रत के लाभ
इस दिन से विवाह आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं जब देव जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न प्रारंभ होता है।. एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शालीग्राम और तुलसी की पूजा (Tulsi Pooja 2021) से पितृदोष का शमन होता है।
- इस दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः "मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है।
- कुंडली में चंद्रमा के कमजोर होने की स्थिति में जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए। व्यक्ति यदि सभी एकदशियों में उपवास रखता है तो उसका चंद्र सही होकर मानसिक स्थिति भी सुधर जाती है।
- इस दिन देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रावण या वाचन करना चाहिए। कथा सुनने या कहने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- पितृदोष से पीड़ित लोगों को इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ मिलता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।
- देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है।
- पुराणों अनुसार जो व्यक्ति एकादशी व्रत करता रहता है वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उनके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima)
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा (kartik purnima 2021) का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कार्तिक स्नान करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को अपार सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा को धार्मिक समारोहों का आयोजन करने के लिए सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है, और यह माना जाता है कि इस दिन किए गए शुभ समारोह काफी सारी खुशियां लाते हैं।
भगवान विष्णु और भगवान शिव के भक्त कार्तिक पूर्णिमा के दिन उपवास करते हैं, और सुबह जल्दी स्नान करके और कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा पढ़कर अपने दिन को प्रारम्भ करते हैं। यह कथा राक्षस त्रिपुरासुर के अंत की कहानी बताती है। प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि एक बार त्रिपुरासुर नामक एक दानव देवताओं को परास्त करने में सफल रहा और अंततः उसने पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। ऐसा माना जाता है कि उसने अंतरिक्ष में तीन शहर बनाए और उनका नाम त्रिपुरा रखा। इस समय, भगवान शिव देवताओं को बचाने के लिए आए और इस राक्षस का अपने धनुष बाण से वध कर दिया और घोषणा की कि इस दिन को रोशनी एवं प्रकाश के त्योहार के रूप में मनाया जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा को वृंदा की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिसे तुलसी के पौधे का मानवीय रूप माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के मछली के रूप वाले अवतार मत्स्य के जन्मदिन का भी प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ था। कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों को सबसे पवित्र दिन माना जाता है और भक्त दिन में केवल एक बार दोपहर में भोजन करते हैं, जिसे हबीशा के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों में यह सही कहा गया है कि कार्तिक पूर्णिमा व्रत और पूजा अर्चना, धर्म, कर्म और मोक्ष का मार्ग प्रदान करती है।
कार्तिक पूर्णिमा अनुष्ठान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, तीर्थ स्थानों पर पवित्र स्नान करना, जिसे सूर्योदय और चंद्रमा के समय कार्तिक स्नान 'के रूप में जाना जाता है, को अत्यधिक पवित्र माना जाता है। भगवान विष्णु की पूजा फूल, दीये और अगरबत्ती से की जाती है। इस दिन भक्त आम तौर पर उपवास रखते हैं और रुद्राभिषेक करने के बाद सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा भगवान विष्णु और देवी वृंदा के विवाह समारोह का भी प्रतीक है, और इस उत्सव को मनाने के लिए, कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन पुष्कर में किया जाता है, जिसे कार्तिक माह के दौरान पुष्कर मेले के रूप में जाना जाता है। इस मेले का समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं के मोक्ष पाने के लिए पुष्कर झील में पवित्र डुबकी लगाने के बाद होता है।