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Dhanteras 2024 Shubh Muhurat: खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक धनतेरस क्या है, जानिए इस दिन का शुभ-मुहूर्त और महिमा

Dhanteras 2024 Shubh Muhurat: दिवाली से पहले धनतेरस होता है।इसी दिन से पंचोत्सव की शुरुआत होती है। धनतेरस क्या है जानिए शुभ-मुहूर्त

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 17 Oct 2024 8:05 AM IST (Updated on: 17 Oct 2024 8:07 AM IST)
Dhanteras Per Kya Khariden
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Dhanteras Per Kya Khariden

Dhanteras 2024 Shubh Muhurat: धनतेरस दिवाली से पहले आता है, इसी दिन से पंच पर्व की शुरुआत होती है। कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इसे "धन त्रयोदशी" भी कहा जाता है। इस दिन धन, ऐश्वर्य और स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।13 दीपक जलाने का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व है। धनतेरस पर दीपक जलाने की परंपरा, विशेष रूप से तेरह की संख्या में है। प्रत्येक दीपक विभिन्न पहलुओं का प्रतीक है, जो मान्यताओं और रीति-रिवाजों का प्रतिनिधित्व करता है

धनतेरस, दीपावली की खुशी और समृद्धि की शुरुआत का प्रतीक है, और इस दिन को नए वस्त्र, आभूषण, और गृहस्थी के सामान खरीदकर मनाया जाता है।

धनतेरस क्या है

पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन पर भगवान धनवंतरि हाथों में स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनवंतरि ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरि के दो दिन बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

भगवान धनवंतरि देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरि का अवतार लिया था।

धनतेरस में किसकी पूजा होती है?

दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही कारण है कि धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।

धनतेरस की कथा

धनतेरस पर की एक और कथा है। काॢतक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञस्थल पर पहुंच गये। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे, इनकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं। वह देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।

बलि ने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये।

इस वजह से कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन शुक्राचार्य की चाल समझ गये। वामन ने अपने हाथ में रखी कुशा को कमंडल में प्रवेश कराया कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। शुक्राचार्य छटपटाकर कमंडल से निकल आये। इसी बीच बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दी। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी नाप ली और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।

बलि दान में अपना सबकुछ गंवा बैठे थे। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना अधिक धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी। कहा जाता है कि इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस पर्व मनाया जाता है। आधुनिक युग में इसीलिए इसे धन का पर्व मान लिया गया और इसी वजह से लोग इस दिन धन-संपदा खरीदते हैं। देश में हर जगह जहां-जहां यह पर्व मनाया जाता है, बाजार जगमगा उठते हैं। आभूषण, बर्तन, वाहन, घरेलू सामान, वस्त्र आदि की खरीदारी की जाती है। इस दिन देव वैद्य धनवंतरि की पूजा भी होती है।

धनतेरस के मुहूर्त

धनतेरस की पूजा का मुहूर्त कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर को सुबह 10 . 31 मिनट से शुरू होगी। वहीं, त्रयोदशी तिथि का समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 01 . 15 मिनट पर होगा।। वैसे तो पंचाग के अनुसार धनतेरस 29 अक्टूबर को मनाया जायेंगा,

इस दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है।

अभिजीत मुहूर्त - 11:48 AM से 12:32 PM

अमृत काल - 10:24 AM से 12:12 PM

ब्रह्म मुहूर्त - 04:59 AM से 05:47 AM

त्रिपुष्कर योग - Oct 29 06:34 AM से Oct 29 10:32 AM

सर्वार्थसिद्धि योग - Oct 30 06:35 AM से Oct 30 09:43 PM

धनतेरस पर प्रदोष काल - 29अक्टूबर 2024 को शाम 05.52 से रात 08.24 मिनट तक है।

वृषभ काल 07.10 से रात 09.06 तक है।

धनतेरस पूजा विधि

धनतेरस पर खरीदारी करना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग सोना, चांदी, बर्तन, झाड़ू आदि चीजें खरीदते हैं। साथ ही इस दिन भगवान धन्वंतरी और मां लक्ष्मी की पूजा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती हैं और धन की समस्याएं दूर हो जाती हैं। धनतेरस पर धन्वंतरि देव, मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद शुभ मुहूर्त में धूप-दीप जलाकर देवी-देवताओं की पूजा करें। भक्तिभाव से मंत्रों का जाप और आरती करें। फिर धन्वंतरि देव, मां लक्ष्मी और कुबेर देवता को प्रिय भोग लगाएं।

धनतेरस विजय का प्रतीक

धनतेरस, ‘धन’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है धन, और ‘तेरस’, जो चंद्र पखवाड़े के 13 वें दिन को अभिदिष्ट करता है, धन और समृद्धि का आह्वान होता है। ऐसा माना जाता है कि 13 दीपक जलाने से घर में बरकत और समृद्धि आती है।

असामयिक मृत्यु और आपदाओं से सुरक्षा की मांग करते हुए, मृत्यु के देवता भगवान यम को सम्मान देने के लिए दीपक जलाए जाते हैं। धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को घर में उनकी कृपा को आमंत्रित करने के लिए भी दीपक जलाए जाते है।

ये 13 दीपक राशि चक्र की 12 राशियों और सूर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें जीवन और ऊर्जा का दाता माना जाता है

दीपक जलाना अंधेरे और अज्ञानता को दूर करने एंव प्रकाश और ज्ञान लाने का प्रतीक है। तेरह दीपक आसपास को रोशन करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।

धनतेरस का त्योहार और 13 दीपक जलाने की परंपरा आशा, समृद्धि और कल्याण की खोज में सहायता करता है। यह अपने भीतर प्रकाश को अपनाने और सभी में अच्छाई फैलाने के लिए कार्य करता है।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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