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Dharam Ka Surya Uday : धर्म का सूर्य उदित हुआ। यही होता रहा है, यही होता रहेगा

Dharam Ka Surya Uday : जब तारकासुर के आतंक से त्रिलोक कांप उठा तो देवतागण भगवान भोलेनाथ के पास गिड़गिड़ाते हुए पहुँचे

Sankata Prasad Dwived
Published on: 23 March 2024 12:22 PM IST
Dharam Ka Surya Uday
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Dharam Ka Surya Uday

Dharam Ka Surya Uday : जब तारकासुर के आतंक से त्रिलोक कांप उठा तो देवतागण भगवान भोलेनाथ के पास गिड़गिड़ाते हुए पहुँचे।

कहा, "प्रभु! विवाह कीजिये अन्यथा सृष्टि से देवत्व समाप्त हो जाएगा।

इस दुष्ट को वर मिला है कि यह आपके पुत्र के हाथों ही मृत्यु को प्राप्त होगा।"

आप पाप की शक्ति देखिये,पापी अपनी मृत्यु उस व्यक्ति के हाथों लिखा कर आया है,जिसका जन्म तो छोड़िए, उसके पिता का विवाह ही नहीं हुआ।

तारकासुर जानता था कि भोलेनाथ लम्बी तपस्या में डूबे हैं।

कई युगों तक उनकी तपस्या चलेगी।तपस्या टूटेगी भी तो कब विवाह होगा,कब पुत्र होगा, कौन जाने?

तो जबतक यह सब नहीं होता, तबतक के लिए अपना साम्राज्य अक्षुण्य रहेगा..." सोचिये तो!पापियों को इतनी शक्ति सतयुग में मिल जाती थी, तो कलियुग में कितनी मिलेगी?

पर जिस कार्य के होने की दूर दूर तक संभावना नहीं थी,वह कार्य भी हुआ।

भोलेनाथ की तपस्या भी टूटी, उनका विवाह भी हुआ,पुत्र का जन्म भी हुआ और तारकासुर का वध भी हुआ।

क्यों?

क्योंकि

पाप का अंत अवश्यम्भावी है।

पर इसके लिए सज्जनों को धैर्य धारण करना होता है।


धैर्य धर्म का प्राथमिक लक्षण है।

धर्म और अधर्म के दस युद्धों में नौ बार अधर्म विजयी होता दिखता है।

देवराज इंद्र बार बार असुरों से पराजित हो जाते थे।

रावण अपने जीवन की सारी लड़ाइयां जीत लेता था,कंस या जरासंध भी कभी पराजित नहीं होते थे।

तब के लोगों में पसरी निराशा की कल्पना कीजिये,कितना कठिन रहा होगा जीवन न?

हमारे आपके जीवन की कठिनाइयां उसके आगे तो कहीं नहीं हैं।

किन्तु अंतिम युद्ध ये सभी हारे।

निराशा का अंधेरा छँटा। और धर्म का सूर्य उदित हुआ।

यही होता रहा है,यही होता रहेगा।

देवताओं पर जब सङ्कट आता,वे भगवान शिव के पास भागे जाते थे।

समुद्र मंथन के बाद विष निकला,तब भागे भागे गए उनके पास।

तारकासुर का आतंक बढ़ा,तब भागे भागे गए।

अंधकासुर का आतंक बढ़ा,तब भागे भागे गए।

यहाँ एक बात मजेदार है,हर बार देवता पहले असुरों से युद्ध करते थे,उनसे पराजित होते थे और फिर भोलेनाथ के पास जाते थे।

अब कोई कहे कि यदि हर समस्या का समाधान भोलेनाथ के पास ही था,तो वे पहले ही उसे ठीक क्यों नहीं कर देते थे?

वे विपत्ति आने ही क्यों देते हैं?

पर तनिक सोचिये तो,यदि ईश्वर ही हर समस्या का समाधान कर दें,तो जीव के सामर्थ्य का क्या महत्व रहेगा?

मानव के शौर्य,उसके गुण उसके कर्मों का क्या मूल्य रहेगा?वस्तुतः जीवन के हर संघर्ष से निपटना हमारा दायित्व है।धर्म हमें पराजित होने पर भी डटे रहने की शक्ति देता है,धैर्य देता है,और अंततः उस अंतिम युद्ध के लिए तैयार करता है,जहाँ हमारी विजय होनी होती है।

भगवान भोलेनाथ और माता का विवाह तारकासुर के अत्याचार की समाप्ति का प्रारम्भ था और इसी कारण इस दिन मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व आशा का पर्व हो जाता है,उम्मीद और भरोसे का पर्व हो जाता है।भरोसा अंधकार से मुक्ति का,जीवन के कष्टों से मुक्ति का, पाप से मुक्ति का,महादेव आपका कल्याण करें।



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Shalini Rai

Shalini Rai

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