TRENDING TAGS :
Draupadi Ki Janam Katha: द्रौपदी कौन थी, क्यों बनी 5 पतियों की पत्नी, जानिए कैसी हुई पंचाली की मौत
Draupadi Ki Janam Katha
द्रौपदी की जन्मकथा
महाभारत काल में द्रौपदी अकेली ऐसी महिला थी जो पांच पतियों की पत्नी तो थी, लेकिन जीवन भर कुंवारी ही रही। महाभारत में द्रौपदी के जन्म की कथा दी गई है। कथा के अनुसार द्रौपदी का जन्म अपनी माँ के गर्भ से नहीं हुआ था। द्रौपदी सीता की तरह अयोनिजा हैं। द्रौपदी का जन्म एक यज्ञ से हुआ था।
महाभारत के आदि पर्व में द्रौपदी के जन्म की कथा दी गई है। कथा के अनुसार द्रौपदी के पिता द्रुपद ने अपने शत्रु द्रोण के वध के लिए एक संतान की प्राप्ति की इच्छा से एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ से एक पुरुष का जन्म हुआ जिसे द्रोण के वध करने का वरदान प्राप्त था । उस पुरष का नाम धृष्टद्युम्न था।
इसी यज्ञ से एक बालिका भी प्रगट हुई जिसे यज्ञसेनी कहा गया । जो महाकाली का अंश थी। इनका पहला नाम कृष्णा रखा। द्रुपद ने इस बालिका का अपनी पुत्री की तरह लालन पालन किया और उसे द्रौपदी नाम दिया गया। धृष्टद्युम्न की तरह ही द्रौपदी का एक और भाई था जिसका नाम शिखंडी था।
द्रौपदी के बारे में कहते है कि उन्हें अपनों ने ही धोखा दिया, जिसकी इज्ज़त धर्मराज के सामने नीलाम हुई। जिसे पति ने ही दाव पर लगा दिया। जब द्रौपदी विवाह योग्य हुई तो पांचाल नरेश द्रुपद ने उसके विवाह के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया । इस स्वयंवर के माध्यम से ही ब्राह्णण के वेश में आए अर्जुन ने द्रौपदी को जीता और इसके बाद युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ विवाह हुआ।
द्रौपदी कैसे बनी 5 पतियों की पत्नी
द्रौपदी पूर्वजन्म में मुद्गल ऋषि की पत्नी थी उनका नाम मुद्गलनी / इंद्रसेना था। उनके पति की अल्पायु में मृत्यु उपरांत उसने पति पाने की कामना से तपस्या की। शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की।
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥
इस श्लोक का अर्थ है: अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है।
द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है। पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं। द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
ये सभी को पता है कि द्रौपदी के 5 पति थे, लेकिन वो अधिकतम 14 पतियों की पत्नी भी बन सकती थी।द्रौपदी के 5 पति होना नियति ने काफी समयपूर्व ही निर्धारित कर दिया था। इसका कारण द्रौपदी के पूर्वजन्म में छिपा था, जिसे भगवान कृष्ण ने सबको बताया था।
पूर्वजन्म में द्रौपदी राजा नल और उनकी पत्नी दमयंती की पुत्री थीं. उस जन्म में द्रौपदी का नाम नलयनी था. नलयनी ने भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए कड़ी तपस्या की. भगवान शिव जब प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो नलयनी ने उनसे आशीर्वाद माँगा कि अगले जन्म में उसे 14 इच्छित गुणों वाला पति मिले.
भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे, परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है। किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था। इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं।
नलयनी का द्रौपदी के रूप में हुआ। द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे।युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे। भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे। अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थ।। सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे, नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे।
द्रौपदी के कितने पुत्र थे
द्रौपदी के पांच पतियों के नाम युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। इन्हें ही पांडव भी कहा जाता है । महाभारत के आदि पर्व के अनुसार द्रौपदी के पांचों पति पूर्वजन्म में अलग- अलग काल में इंद्र पद को सुशोभित करने वाले इंद्र थे। इन पांचों इंद्रों के नाम थे – विश्वभुक, भूतधामा, शिवि, शांति और तेजस्वी। द्रौपदी पूर्वजन्म में स्वर्ग की लक्ष्मी या शचि या इंद्राणी थीं।
कथा के अनुसार इन पांचों इंद्रों पर रुद्रदेव कुपित हो गए थे और रुद्र ने इन्हें पृथ्वी पर मनुष्य रुप में जन्म लेने का शाप दे दिया था। यही पांचों इंद्र पृथ्वी पर युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के रुप में जन्मे।
विश्वभुक ने धर्मराज के माध्यम से कुंती के गर्भ से जन्म लिया इसलिए वो धर्मराज या धर्मपुत्र भी कहलाए। भूतधामा ने वायुदेव के माध्यम से कुंती के गर्भ से जन्म लिया और वो संसार में भीमसेन के रुप में प्रसिद्ध हुए। भीम को वायुपुत्र भी कहा जाता है ।
अर्जुन के रुप में स्वयं शिवि नामक इंद्र ने ही जन्म लिया था , जबकि अश्विनी कुमारों को माध्यम बना कर माद्री के गर्भ से शांति और तेजस्वी नामक इंद्रों ने नकुल और सहदेव के रुप में जन्म लिया था।
कथानुसार द्रौपदी के पांचों पांडवों से पांच पुत्र हुए, जिसका वध अश्वत्थामा ने छल से किया था। महाराज युद्धिष्ठिर से द्रौपदी के प्रतिविंध्य जो पांडव पुत्रों से सबसे बड़ा था। भीम से द्रौपदी के सुतसोम अर्जुन से द्रौपदी को श्रुतकर्मा , नकुल से शतानिक सहदेव से श्रुतसेन नाम के पांच पुत्र हुए थें।
द्रौपदी कृष्ण भक्त थी और उनकी प्रिय सखी भी। इसलिए उनका एक अन्य नाम कृष्णा भी है। वो श्रीकृष्ण के इतने निकट थीं कि वो अपने सारे दुख-सुख श्रीकृष्ण को ही बताती थीं। वो कृष्ण की तरह श्यामवर्ण थी
द्रौपदी का चिरहरण प्रसंग
एक कथा के अनुसार ये कहा जाता है कि द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उड़ाते हुए उसे अंधे का पुत्र अंधा कहा था और इसी लिए दुर्योधन ने द्रौपदी का चीरहरण किया। प्रचलित कथाओं के अनुसार द्रौपदी ने चीरहरण के वक्त ये प्रतिज्ञा की थी कि वो तब तक अपने बालों की चोटी नहीं बनाएंगी जब तक वो दुः शासन के रक्त से अपने बालों को नहीं धोएंगी। मूल महाभारत में ऐसी किसी प्रतिज्ञा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। बाद के काल के संस्कृत नाटक वेणीसंहारम से ऐसी कथा के प्रचलित होने की बात पता चलती है।
जब द्रौपदी का सभा में चीरहरण किया जा रहा था तो उन्होंने सभासदों से प्रश्न पूछा था कि क्या मैं धर्म के अनुसार जीती गई हूँ? इस प्रश्न का जवाब न तो भीष्म दे सके थे, न विदुर, न युधिष्ठिर और न ही धृतराष्ट्र। दरअसल महाभारत की कथा का उद्देश्य ही धर्म की परिभाषा को तय करना है।पूरे महाभारत में युधिष्ठिर धर्म की अपनी व्याख्या देते हैं, भीम की धर्म की परिभाषा अलग है, श्रीकृष्ण के अनुसार धर्म की परिभाषा अलग है, भीष्म धर्म की परिभाषा महाभारत के शांति पर्व में देते हैं। महाभारत के रचयिता व्यास धर्म को अपनी दृष्टि से परिभाषित करते हैं।
द्रौपदी की मौत कब कैसे हुई थी
द्रौपदी की मृत्यु के बारे में महाभारत में वर्णन है कि जब युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ स्वर्गारोहण कर रहे थे तो रास्ते में सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हो जाती है। जब भीम द्रौपदी की मृत्यु की वजह पूछते हैं तो युधिष्ठिर बताते हैं कि द्रौपदी अर्जुन के प्रति पक्षपाती थीं इसलिए उनकी मृत्यु सबसे पहले हुई।