Belive It Or Not: गाय ने की थी इस शिवलिंग की खोज, पाताल तक है लंबाई

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Published on: 5 March 2016 7:19 AM GMT
Belive It Or Not: गाय ने की थी इस शिवलिंग की खोज, पाताल तक है लंबाई
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देवरियाः भारत में वैसे तो अनेक शिवालय हैं, लेकिन 11वीं सदी के अष्टकोण में बने प्रसिद्ध 'दुग्धेश्वरनाथ मंदिर' में स्थापित शिवलिंग अपनी अनूठी विशेषता के लिए विश्वविख्यात है। इस शिवलिंग का आधार कहां तक है, इसका आज तक पता नहीं चल पाया। मान्यता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग की लम्बाई पाताल तक है। सबसे खास बात यह है कि यहां लिंग को किसी मनुष्य ने नहीं बनाया, बल्कि यह स्वयं धरती से प्रकट हुआ है।

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पहले होती थी पंचकोशी परिक्रमा

यह मंदिर उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के रुद्रपुर कस्बे के पास स्थित है। यह स्थान बहुत प्राचीन है। वैष्णव, शैव, जैन एवं बौद्ध मूर्तियाँ तथा नगर और दुर्ग के विस्तृत अवशेष यहाँ पाए जाते हैं। इनकी चर्चा चीनी यात्री फ़ाह्यान ने भी की है। पहले यहाँ पंचकोसी परिक्रमा होती थी, जिसमें अनेक तीर्थ पड़ते थे।शिवरात्रि तथा अधिक मास में यहाँ मेला लगता है। मुख्य मन्दिर के आसपास अनेक नवीन मन्दिर हैं।

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मान्यताओं के अनुसार

सैकड़ो वर्ष पूर्व यह स्थान घने जंगलों से घिरा था और जहां कुछ चरवाहे अपनी गायों को चराने के लिए आते थे। लोगों के अनुसार जंगल में एक टीले के पास एक गाय खड़ी हो जाती थी और उसके स्तनों से स्वत: दूध की धारा बहने लगती थी। धीरे धीरे यह बात आग की तरह फैल गई। इस बात की जानकारी उस समय के राजा हरी सिंह को हुई। उन्होंने इस सम्बन्ध में काशी के पंडितों से चर्चा की, और उस स्थान की खुदाई कराने लगे।

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खुदाई के बाद एक शिव लिंग दिखाई पड़ा लेकिन ज्यों ज्यों शिवलिंग को निकालने के लिए खुदाई होती गई,वह शिवलिंग अदंर की ओर धंसता गया। बाद में उस समय के राजा हरी सिंह ने 11 वीं सदी में काशी के पंडितों को बुलाकर वहां एक मंदिर बनवाया। वैसे तो यहां वर्ष भर भक्त आते रहते हैं लेकिन महाशिवरात्रि, अधिक मास और श्रावणमास में भक्त दूर दूर से भगवान शिव की पूजा आराधना के लिये आते है। इन विशेष अवसरों पर यहां मेला भी लगता है। जिसमें दूर दूर व्यापारी आकर अपनी दुकाने लगाते है।

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क्या कहते है पुजारी

मंदिर के बारे में पुजारी ने बताया कि यह काशी क्षेत्र में ही आता है और शिवपुराण में इसका वर्णन है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन की भांति इसे पौराणिक महत्ता प्रदान की गई है। यह उनका उपलिंग है। ग्यारहवीं सदी में इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन रुद्रपुर नरेश हरीसिंह ने करवाया था। जिनका सत्तासी कोस में साम्राज्य स्थापित था। यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व के ही समय से यहां है। पुरातत्त्व विभाग के पटना कार्यालय में भी 'नाथबाबा' के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर के संबंध में उल्लेख मिलता है।

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