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पूजन में कभी न करें ये भूल: ऐसे चयन करें देवताओं पर चढ़ाने वाले फूल

प्राय: हर घर में किसी न किसी शुभ अवसर पर मांगलिक कार्य संपादित किए जाते हैं। मंदिरों में इष्‍ट देव की आराधना हो या पूजा या फिर वैदिक मंत्रों का पाठ। इन सभी कार्यों में फूलों का इस्‍तेमाल जरूर किया जाता है।

Shivakant Shukla
Published on: 22 Dec 2019 4:06 PM IST
पूजन में कभी न करें ये भूल: ऐसे चयन करें देवताओं पर चढ़ाने वाले फूल
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दुर्गेश पार्थसारथी

प्राय: हर घर में किसी न किसी शुभ अवसर पर मांगलिक कार्य संपादित किए जाते हैं। मंदिरों में इष्‍ट देव की आराधना हो या पूजा या फिर वैदिक मंत्रों का पाठ। इन सभी कार्यों में फूलों का इस्‍तेमाल जरूर किया जाता है।

इष्‍ट देव की पूजा के समय उन पर फूल चढ़ा देने मात्र से ही हम पुण्‍य के भागी नहीं बन जाते, क्‍योंकि प्रत्‍येक देवी-देवता का अपना पसंदीदा पुष्‍प होता है जिसे विधि-विधान के अनुसार उन पर श्रद्धा के साथ समर्पित किया जाता है। देव पूजन विधि के अनुसार यदि गलत विधि से अप्रिय फूल किसी देवता को चढ़ा दिया जाए तो अनिष्‍ट भी हो सकता है। इसलिए पुष्‍पों के बारे में यह जान लेना आवश्‍यक हो जाता है कि कौन सा पुष्‍प किस देवता को चढ़ाया जाना चाहिए।

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इन पुष्‍प भी निषिद्ध माना जाता है

विभिन्‍न देवी देवताओं के उनके अपने विहित एवं निषिद्ध पुष्‍प-पत्र होते हैं। वे पुष्‍प-पत्र भगवान पर नहीं चढ़ाए जाते हैं जो अपवित्र बर्तन या स्‍थान पर रखे गए हैं। कीडे़ लगे, जमीन पर गिरे, अनखिले, कली एवं सड़े-गले या बासी पुष्‍प भी निषिद्ध माने जाते हैं। कुम्‍हलाया हुआ, नाक से सूंघा हुआ, अंग से स्‍पर्ष्‍श किया हुआ या किसी अन्‍य देवता पर पहले से चढ़ाया गया पुष्‍प भी निषिद्ध माना जाता है। धर्मशास्‍त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की उपासना के लिए अलग-अलग पुष्‍प विहित हैं।

गणेश के पुष्‍प

हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य सर्व प्रथम गणपति की पूजा से आरंभ किया जाता है। इसलिए, यह जानलेना आवश्‍यक हो जाता है कि इनकी पूजा में कौन सा फूल चढ़ाया जाये। वेसे तो गणेशजी को प्रकृति प्रदत्‍त सभी पत्र एवं पुष्‍प चढ़ाये जा सकते हैं, लेकिन पद्मपुराण, आचार्यरत्‍न एवं कार्तिक महात्‍म्‍य के अनुसार गणपति पर तुलसी पत्र कभी नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। गणेशपुराण में बताया गया है कि इनकी पूजा में सफेद या हरी दूब अवश्‍य चढ़ानी चाहिए। दूब तोड़ते समय यह ध्‍यान रखना चाहिए कि इनकी फुनगी में या पांच पत्तियां अवश्‍य हों।

शिव के पुष्‍प

भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का बहुत अधिक महत्‍व है। वीरमित्रोदय में भगवान शिव के बारे में बताया गया है कि सर्वगुण सम्‍पन्‍न किसी ब्राह्मण को स्‍वर्ण मुद्राएं दान करने पर जो पुण्‍य अर्जित होता है वह भगवाना शिव पर सौ पुष्‍प चढ़ा देने मात्र से प्राप्‍त हो जाता है। इन पर केतकी एवं केवड़ा के फूलों को भूल कर भी नहीं चढ़ाना चाहिए। इन फूलों को छोड़ भगवान शिव को सभी तरह के फूल प्रिय हैं।

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सूर्य के पुष्‍प

भगवान आदित्‍य अर्थात सूर्य की उपासना के लिए भविष्‍यपुराण में बताया गया है कि यदि भगवान सूर्य को आक का फूल अर्पित कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने जितना पुण्‍य प्राप्‍त होता है। इसके अतिरिक्‍त गुड़हल, कनेर, कुश, शमी, मौलसिरी, केसर, मालती, अरुषा, अशोक, पलाश आदि के पुष्‍पों को भी सूर्य पूजा के लिए चयनित किया जा सकता है।

भगवान विष्‍णु के प्रिय पुष्‍प

भगवान विष्‍णु को कमल का पुष्‍प अति प्रिय है। इसके साथ ही इन्‍हें गुलाब, बेला, अशोक, केवड़ा, मालती, मौलसिरी, सेफाली, नवमल्लिका आदि के पुष्‍प भी प्रिय हैं। लेकिन, धर्मशास्‍त्रों का कहना है कि जिता पुण्‍य इन सभी फूलों को चढ़ाने से प्राप्‍त होता उससे कई गुना पुण्‍य एकमात्र मंजरीयुक्‍त तुलसी पत्र के चढ़ाने से होता है।

दुर्गा के पुष्‍प

नवरात्र में दुर्गा उपासना का महत्‍व काफी बढ़ जाता है। साथ ही, इनके पसं एवं नापसंद के पुष्‍पों को लेकर भक्‍तों में फहापोह की स्थिति बनी रहती है। लेकिन, पुष्‍पों के चयन में जरा सी सावधानी रखी जाये तो यह स्थिति भी समाप्‍त हो जाती है। भगवानप शिव की पूजा में जो फूल चढ़ाये जाते हैं वे सभी फूल मां भगवती को चढ़ाये जा सकते हैं, जितने भी लाल पुष्‍प हैं वे सभी आदिशक्ति मां दुर्गा को प्रिय हैं। साथ ही, श्‍वेत सुगंधित पुष्‍प भी इन्‍हें चढ़ाये जा सकते हैं।

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पूजा में सभी तरह के शुद्ध पुष्‍पों का चयन किया जा सकता है

शास्‍त्र में उल्‍लेख है कि केवड़ा, केतकी, आक और मदार को छोड़ कर इनकी पूजा में सभी तरह के शुद्ध पुष्‍पों का चयन किया जा सकता है। सच पूछा जाये तो परमपिता परमेश्‍वर पर अर्पित किए जाने वाले सभी तरह के जल, पुष्‍प एवं अन्‍य पूजन सामग्री केवन मन को शांति पहुंचाने का माध्‍यम भर है, क्‍योंकि उनकी शक्‍ति को हम देख नहीं सकते, स्‍पर्श नहीं कर सकते, मात्र अपनं अंत-करण में महसूसस कर सकते हैं, जो समस्‍त चराचर का स्‍वामी है, दाता है, उसे किसी भी वस्‍तु की आवश्‍यकता नहीं। वह तो भाव का भूखा है। संसार में ऐसा कोई दिव्‍य पदार्थ नहीं है जिससे परमेश्‍वर की पूजा की जा सके।

मैं तुझ पर क्‍या अर्पित करूं

महान संत रविदास कहते हैं-'' हे देव। मैं तुझ पर क्‍या अर्पित करूं, दूध चढ़ाऊं तो वह भी बछड़े का जूठा है और शहद मक्‍खियों का। पुष्‍प पर तो भंवरे पहले से ही मड़रा चुके हैं। चंदन भी तो नहीं चढ़ा सकता, क्‍योंकि उसपर तो सर्पों का वास रहता है। ऐसे में एक हमारा मन ही तो है जिसे मैं आपके चरणों में अर्पित कर सकता हूं।'' इसलिए सभी फूलों से बढ़ कर व्‍यक्‍ति का एकमात्र मन है जिसे वह निस्‍स्‍वार्थ भाव से प्रभु के श्रीचरणों में चढ़ा सकता है।



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Shivakant Shukla

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