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गंडमूल नक्षत्र Gand mool nakshatra 2023 Me Kab kab Padega: क्या होता है गंडमूल नक्षत्र, इसमे जन्मे तो डरे नहीं, शांति के लिए करें उपाय

Gand mool nakshatra 2023 Me Kab kab Padega: ज्योतिष के अनुसार हिन्दू ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें केतु व बुध के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों को गंड मूल कहते हैं. राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर मिलने या उदय होने पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 5 Dec 2022 4:39 AM GMT (Updated on: 5 Dec 2022 5:08 AM GMT)
Gand mool nakshatra 2023 Me Kab kab Padega
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Gand mool nakshatra 2023 Me Kab kab Padega

2023 में गंडमूल नक्षत्र कब -कब पड़ेगा

2023 में बहुत कुछ बदलाव होने वाला है। इस बदलाव में ग्रह-नक्षत्र भी अपनी स्थिति बददल रहे है। इसी क्रम में गंडमूल नक्षत्र भीअपना स्थान बदलेंगे। 2023 में गंडमूल नक्षत्र जनवरी से मई तक कब कब पड़ेंगे। जानते है... भारतीय ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्रों को दोषकारी माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब किसी शिशु का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो इसको गंडमूल दोष कहा जाता है। इसके कारण बालक और उसके माता-पिता एवं भाई-बहिनों के जीवन पर कष्टकारी प्रभाव पड़ता है इसलिए इस नक्षत्र में पैदा हुए शिशु और उसके परिजनों की भलाई के लिए गंडमूल शांति के उपाय कराना अति आवश्यक है। इसे किसी विद्वान तथा योग्य पंडित द्वारा ही करवाना चाहिए जिसे मूल शांति कराने का पूर्ण ज्ञान हो। हालांकि इससे पहले हमें यह जानना ज़रुरी है कि आख़िर यह गंडमूल नक्षत्र क्या होता है?


2023 में गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ एवं समाप्ति काल कब कब है:


2023 में गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ एवं समाप्ति काल कब कब



  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 20 दिसंबर 2022 से रेवती नक्षत्र में 11:24 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-1 जनवरी 2023 को अश्विनी नक्षेत्र में 12:48 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 9 जनवरी 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 6:05 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-11 जनवरी 2023 को मघा क्षेत्र में 11:50 पर समापन

  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 18 जनवरी 2023 से ज्येष्ठा नक्षत्र में 17:30 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-20 जनवरी 2023 को मूल नक्षेत्र में 12:40 पर समापन

  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 26 जनवरी 2023 से रेवती नक्षत्र में 18:57 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-28 जनवरी 2023 को अश्विनी नक्षेत्र में 19:06 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 5 फरवरी 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 12:13 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-7 फरवरी 2023 को मघा नक्षेत्र में 17:45 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 15 फरवरी 2023 से ज्येष्ठा नक्षत्र में 2:02 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-16 फरवरी 2023 को मूल नक्षेत्र में 22:53 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 23 फरवरी 2023 से रेवती नक्षत्र में 4:50 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-25 फरवरी 2023 को अश्विनी नक्षेत्र में 3:27 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 4 मार्च 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 18:41 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-7 मार्च 2023 को मघा नक्षेत्र में 0:05 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 14 मार्च 2023 से ज्येष्ठा नक्षत्र में 18:13 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-16 मार्च 2023 को मूल नक्षत्र में 6:24 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 22 मार्च 2023 से रेवती नक्षत्र में 15:32 से शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-24 मार्च 2023 को अश्विनी नक्षत्र में 13:22 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 1 अप्रैल 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 1:57 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-3 अप्रैल 2023 को मघा नक्षत्र में 7:24 पर समापन

  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 10 अप्रैल 2023 से ज्येष्ठा 13:39 नक्षत्र में 1:57 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-3 अप्रैल 2023 को मघा नक्षत्र में 7:24 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 10 अप्रैल 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 1:57 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-12 अप्रैल 2023 को मूल नक्षत्र में 11:59 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 19 अप्रैल 2023 से रेवती नक्षत्र में 1:01 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-20अप्रैल 2023 को अश्विनी नक्षत्र में 23:11 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 28 अप्रैल 2023 से आश्लेषा नक्षत्र में 9:53 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-30 अप्रैल 2023 को मघा नक्षत्र में 15:30 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 7 मई 2023 से ज्येष्ठा नक्षत्र में 20:21 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-9 मई 2023 को मूल नक्षत्र में 17:45 पर समापन


  • गंडमूल नक्षत्र के प्रारंभ काल 2023 में- 16 मई 2023 से रेवती नक्षत्र में 8:15 शुरू होकर

गंडमूल नक्षत्र के समापन काल 2023 में-18 मई 2023 को अश्विनी नक्षत्र में 7:23 पर समापन


गंडमूल नक्षत्र क्या होता है?

ज्योतिष के अनुसार हिन्दू ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें केतु व बुध के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों को गंड मूल कहते हैं. राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर मिलने या उदय होने पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। यदि कर्क राशि तथा अश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति साथ होती है। वही सिंह राशि का प्रारंभ और मघा नक्षत्र का उदय एक साथ हो तो इसे अश्लेषा गण्ड संज्ञक और मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है.यदि वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ हो तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यही से हो तो इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और'मूल' मूल नक्षत्र कहा जाता है. यदि मीन राशि औररेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त हो तथा मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरुआत एक साथ हो तो इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनी मूल नक्षत्र कहा जाता है

नक्षत्र, लग्न और राशि के संधि काल को अशुभ माना जाता है और गंड मूल नक्षत्र संधि नक्षत्र होते हैं, इसलिए जातक पर इसके अशुभ प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इसके साथ ही गंडमूल नक्षत्रों के देवता भी बुरे प्रभाव देने वाले होते हैं। ये नक्षत्र मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन राशी के आरम्भ व अंत में आते हैं। काल पुरुष चक्र के अनुसार इन राशियों का प्रभाव जातक के शरीर, मन, बुद्धि, आयु, भाग्य आदि पर पड़ता है और गंडमूल का प्रभाव भी इन्हीं के ऊपर देखने को मिलता है।

यदि कोई बालक गंडमूल नक्षत्र में पैदा होता है तो उसे तथा उसके परिजनों को निम्न कष्टों का सामना करना पडता है। जातक को स्वास्थ्य संबंधी कष्टों का सामना करना पड़ता है, माता-पिता एवं भाई-बहिनों के जीवन पर बाधाएं आती हैं, जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जातक को जीवनयापन में संघर्ष करना पड़ता है, जातक के परिवार में दरिद्रता आती है, दुर्घटना का भय बना रहता है, जातक भाग्यहीन हो जाता है।

गंडमूल नक्षत्र या मूल नक्षत्र ज्योतिष शास्त्र में इसका अलग ही महत्व है। मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला शिशु माता-पिता, व्यवसाय, उन्नति, के लिए अशुभ होते हैं। इसलिए मूल नक्षत्र में पैदा हुए शिशु का मूल कटवाना होता है पूजा पाठ करवाना होता है शांति पाठ करवानी होती है। पिता को इस दौरान शिशु का चेहरा नहीं देखना होता है। शांति पाठ करवाने के बाद ही पिता को अनुमति होती है शिशु का चेहरा देखने की। आइए जानते हैं मूल नक्षत्र के बारे में, आप खुद भी यह जान सकते हैं कि नवजात शिशु मूल नक्षत्र में है या नहीं है।

गंडमूल नक्षत्र में कौन कौन से नक्षत्र होते हैं?

रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, एवं मूल इन 6 नक्षत्रों को गंड मूल नक्षत्र कहते हैं।

इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक स्वयं के लिए या अपने माता-पिता के लिए अशुभ फल देता है इस वजह से गंडमूल नक्षत्र में उत्पन्न जातक के नक्षत्र के लगभग 27 दिन के जन्मदिन के निकट उसी नक्षत्र में दान पूजन करवा लेना शुभ कारक माना जाता है। इस दोष को कटवाना बहुत जरूरी है। मूल दोस्त करवाने के बाद माता-पिता और नवजात पर किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं रहती है।

गंडमूल शांति के उपाय

यदि किसी शिशु का जन्म गंडमूल में हुआ है तो जन्म के 27वें दिन ठीक उसी नक्षत्र के आने पर शांति करनी चाहिए। इसके लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:- सर्प को दूध पिलायें, नाग देव का पूजन करें, पितृों के निमित्त दान करें घर में गंडमूल शांति के लिए यज्ञ करें, अमावस्या के दिन ब्राह्मण भोजन कराएं, किसी मंदिर में शिवलिंग को स्थापित करें, प्रत्येक अमावस्या को गौ, स्वर्ण, अन्न आदि का दान करें, माता या पिता 6 माह तक विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। यदि गंडमूल शांति के उपाय शिशु के जन्म से ठीक 27वें दिन न हो पाएं अथवा किसी कारण से गंडमूल दोष के बारे में आपको विलम्ब से पता चले तो भी आप इसकी शांति के उपाय कर सकते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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