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Ganesh Chaturthi Kab Hai: आ गया विघ्नहर्ता को घर बुलाने का समय, जानें कब है शुभ मुहूर्त, क्या है इसकी पूजा-विधि
Ganesh Chaturthi Kab Hai: चलिए जानते है कि गणेश चतुर्थी कब है, इसका शुभ मुहूर्त क्या है, पूजा करने की विधि क्या है और इस दौरान हमें किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना है।
Ganesh Chaturthi Kab Hai: भारत में कुछ त्यौहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की संस्कृति के परिचायक भी हैं। जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है। उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है।
मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है।
शुभ मुहूर्त (Ganesh Chaturthi Shubh Muhurat)
इस साल चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को सुबह 12:17 बजे शुरू होगी और रात 10 बजे तक रहेगी। 10 सितंबर को रात 9 बजकर 12 मिनट से सुबह 8:53 तक चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए। शुभ मुहुर्त मध्याह्र काल में 11:03 से 13:33 तक है यानी 2 घंटे 30 मिनट तक है। गणेश विसर्जन 19 सितंबर को होगा।
गणेश प्रतिमा की स्थापना व पूजा (Ganesh Chaturthi Ki Puja Vidhi In Hindi)
गणेश चतुर्थी के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। यह प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से अपने सामर्थ्य के अनुसार बनाई जा सकती है। इसके पश्चात एक कोरा कलश लेकर उसमें जल भरकर उसे कोरे कपड़े से बांधा जाता है। तत्पश्चात इस पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार कर उसका पूजन किया जाता है। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। गणेश प्रतिमा के पास पांच लड्डू रखकर बाकि ब्राह्मणों में बांट दिये जाते हैं। गणेश जी की पूजा सांय के समय करनी चाहिये। पूजा के पश्चात दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिये। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें दक्षिणा भी दी जाती है।
गणेश मंत्र (Ganesh Mantra)
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।। ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।। ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।।ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।। ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।।
गणेश जी की आरती (Ganesh ji Ki Aarti Lyrics)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा, लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी, कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा॥
इस बार हैं कुछ ख़ास शुभ संयोग (Ganesh Chaturthi Shubh Sanyog)
- इस बार चतुर्थी पर पांच ग्रह अपनी श्रेष्ठ स्थिति में विद्यमान रहेंगे। इनमें बुध कन्या राशि में, शुक्र तुला राशि में, राहु वृषभ राशि में, केतु वृश्चिक राशि तथा शनि मकर राशि में विद्यमान रहेंगे। बाजार में उन्नति होगी।
- 10 सितंबर को चित्रा-स्वाति नक्षत्र के साथ रवियोग रहेगा। चित्रा नक्षत्र शाम 4.59 बजे तक रहेगा। इसके बाद स्वाति नक्षत्र लगेगा। वहीं सुबह 5.42 बजे से दोपहर 12.58 बजे तक रवि योग रहेगा।
- इस बार मंगल बुधादित्य योग भी रहेगा। सूर्य, मंगल और बुध तीनों ग्रह का एक ही राशि में युति कृत होने से इस योग का निर्माण होता है। यह योग नए कार्य के आरंभ के लिए अति श्रेष्ठ है।
- चतुर्थी पर सुबह 11 बजकर 9 मिनट से रात 10 बजकर 59 मिनट तक पाताल निवासिनी भद्रा रहेगी। कहते हैं कि यह स्थिति धन देने वाली है। भद्रा का असर गणेशजी को विराजित करने और उनकी पूजा करने पर नहीं पड़ेगा।
- भादो मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी शुक्रवार के दिन चित्रा नक्षत्र, ब्रह्म योग, वणिज करण व तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी में आ रही है। वणिज करण की स्वामिनी माता लक्ष्मी हैं। अर्थात गणेश के साथ माता लक्ष्मी का आगमन होगा। भगवान गणेश रिद्धि सिद्धि व शुभ लाभ के प्रदाता माने गए हैं।
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
गणेशजी को प्रसन्न करना है तो प्रसन्नतापूर्वक और विधिवत रूप से श्री गणेशजी का घर में मंगल प्रवेश होना चाहिए। गणेशजी के आगमन के पूर्व घर और द्वार को सजाया जाता है । जहां उन्हें स्थापित किया जाएगा उस जगह की सफाई करके कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और हल्दी से चार बिंदी बनाएं। फिर एक मुट्ठी अक्षत रखें और इस पर छोटा बाजोट, चौकी या लकड़ी का एक पाट रखकर उस पर पीला, लाल या केसरिया वस्त्र बिछाएं।
मतलब यह कि स्थापित करने वाली जगह को पहले से ही सजाकर रखें, जहां पर पूजा और आरती का सामान भी पहले से ही रखा हो। बाजार जाने से पहले नवीन वस्त्र धारण करें, सिर पर टोपी या साफा बांधें, रुमाल भी रखें। पीतल या तांबे की थाली साथ में ले जाएं नहीं तो लकड़ी का पाट ले जाएं जिस पर गणेशजी विराजमान होकर घर में पधारेंगे। इसके साथ ही घंटी और मंजीरा भी ले जाएं। बाजार जाकर जो भी गणेशजी पसंद आए उसका मोलभाव न करें उसे आगमन के लिए निमंत्रित करके दक्षिणा दे दें। गणेशजी की प्रतिमा को धूम-धाम से घर के द्वारा पर लाएं। वार पर ही उनकी आरती उतारें। मंगल गीत गाएं या शुभ मंत्र बोलें।
इसके बाद बप्पा के नारे लगाते हुए उन्हें अंदर लेकर आएं। पहले से तैयार स्थान पर विराजित करें। मंगल प्रवेश के बाद विधिवत पूजा और आरती करें। इस तरीके से किए गए मंगल प्रवेश से सभी तरह के विघ्न दूर होकर जीवन में भी मंगल ही मंगल हो जाता है, क्योंकि गणेशजी विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता हैं। ध्यान रखें कि गणेश जी की प्रतिमा बैठी हुई हो, उनके साथ वाहन चूहा हो, रिद्धि सिद्धि हो, रंग सफेद या सिंदूरी हो, सूंड़ बाएं तरफ हो, उन पर पीताम्बर या लाल परिधान हो और लड्डुओं का थाल हो। इसलिए गणेश जी की मूर्ति सोच समझ कर लें।
गणेशजी के जन्म के दो सिद्धांत
गणेश जी के जन्म के बारे में एक मान्यता तो यह है कि माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास या व्रत किया था। इसी उपवास के चलते माता पार्वती को श्री गणेश पुत्र रूप में प्राप्त हुए। बाद में जब सभी पुत्रों को देखने आए तो शनि की दृष्टि पड़ने से उनका मस्तक कटकर चंद्रलोक में चला गया। तब उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का मस्तक लगाया गया।
दूसरी कथा के अनुसार माता पार्वती ने जया और विजया के कहने पर अपने मेल से गणेशजी की उत्पत्ति की। उन्हें द्वार पर पहरा देने के लिए नियुक्त कर दिया। वहां शिवजी पहुंचे और गणेशजी ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया। तब शिवजी ने उनका मस्तक काट दिया। माता पार्वती के क्रोध के बाद उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का सिर लगाया गया।