TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Gangaur Puja Kab Se Shuru Hoga प्रेम और विवाह का प्रतीक गणगौर कब, क्यों और कैसे मनाते हैं?

Gangaur Puja Kab Se Shuru Hoga: गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन को भगवान शिव ( lord shiva) और देवी पार्वती ( Goddess Parvati) के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 27 March 2024 10:51 AM IST
Gangaur Puja  Kab Se Shuru Hoga  प्रेम और विवाह का प्रतीक गणगौर कब, क्यों और कैसे मनाते हैं?
X

Gangaur Puja Kab Se Shuru Hogi गणगौर 2024 में कब है?

गणगौर का त्योहार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है। इस साल तृतीय तिथि 11 अप्रैल, 2024 को पड़ रही है।गणगौर का त्योहार न केवल महिलाओं के लिए बल्कि समाज के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार प्रकृति के नवजीवन का प्रतीक है और हमें जीवन में खुशियां लाने की सीख देता है। गणगौर का उत्सव आपसी प्रेम और समर्पण का भाव जगाता है ।

आज चैत्र शुक्ल तृतीया का पावन पर्व हैं जिसे गौरी तीज या गणगौर (Gangaur) के रूप में जाना जाता हैं। 'गण' का अर्थ है शिव और 'गौर' का अर्थ पार्वती है। इस दिन को सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग के प्यार के लिए और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर के लिए यह व्रत रखती हैं। मुख्य तौर पर यह पर्व राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में मनाया जाता हैं। होली के दूसरे दिन से चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होती है। गणगौर पूजा भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन को भगवान शिव ( lord shiva) और देवी पार्वती ( Goddess Parvati) के प्रेम और विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है।

गणगौर पूजा का शुभ मुहूर्त

नवरात्रि के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता यानि की मां पार्वती की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता और भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।

प्रातःकाल मुहूर्त - प्रातः 6:29 से 8:24 तक

अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:04 से 12:52 तक

गणगौर पूजा : गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

तृतीया तिथि प्रारम्भ – 10 अप्रैल, 2024 को शाम 05:32 बजे

तृतीया तिथि समाप्त – 11 अप्रैल, 2024 को अपराह्न 03:03 बजे

गणगौर उत्सव चैत्र के पहले दिन से शुरू होता है और अगले 18 दिनों तक मनाया जाता है। गणगौर 2024 हिंदू कैलेंडर के अनुसार कृतिका नक्षत्र में आएगा।

गणगौर से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए प्रायश्चित किया था। उनकी तपस्या के परिणामस्वरूप, उनका विवाह भगवान शिव से हुआ। बाद में जब वह अपने माता-पिता से मिलने आई तो उसने वहां की महिलाओं और लड़कियों को वैवाहिक सुख का आशीर्वाद दिया। 18 दिनों के बाद उनके जाने पर उनके परिवार द्वारा उन्हें भव्य विदाई दी गई। तभी से गणगौर में देवी पार्वती की पूजा करने और उन्हें विदा करने की रस्म चली आ रही है।

गणगौर क्यो मनाते हैं?

ये पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से कुंवारी और सुहागिनें हर दिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी में जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। इस व्रत के करने से सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है।

होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से 16 दिवसीय गणगौर पूजा का पर्व शुरू होता है। इस पर्व के दिनों में कुंआरी और विवाहित महिलाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं और वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह पर्व विशेष तौर पर केवल सुहागिन महिलाओं के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को और पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। ‍स्त्रियां नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं। कुंआरी कन्याएं भी सुयोग्य वर पाने के लिए गणगौर माता का पूजन करती है।

गणगौर तीज कैसे मनाते हैं?

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एक समय भोजन (एकासना ) करना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईशर का रूप माना जाता है।इस दौरान सुहागिनें 16 श्रृंगार की सामग्री को चंदन, धूप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण करती है। इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है। फिर कथा सुनकर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियां मांग भरती है।

गणगौर की पूजा का महत्व विवाहित महिलाओं के सौभाग्य और अविवाहित लड़कियों के अच्छे वर की प्राप्ति के लिए माना जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:गणगौर माता की प्रतिमा को स्नान कराकर सुंदर वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार करें।प्रतिमा के सामने चौकी पर गेहूं के अंकुरित दाने सजाएं। लाल रोली, चावल, फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

Next Story