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Garud Avatar Katha: श्री हरि के वाहन गरुड़जी की रोचक कथा

Garud Avatar Katha: गरूड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है।

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Published on: 5 Feb 2023 6:51 AM IST
Garuda Purana Avatar Katha
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GarudaPurana (Image: Social Media)

Garud Avatar Katha: आखिरकार भगवान विष्णु के वाहन गरूढ़ का क्या रहस्य है?

क्यों हिन्दू में उनको विशेष महत्व दिया जाता है।

क्या है उनके जन्म का रहस्य और कैसे वह एक पक्षी से भगवान बन गए?????

गरूड़ भगवान के बारे में सभी जानते होंगे। यह भगवान विष्णु का वाहन हैं। भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है। गरूड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरूड़ के बारे में कई कहानियां हैं।

माना जाता है कि गरूड़ की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश और व्यक्तियों को इधर से उधर ले जाना होता था। कहते हैं कि यह इतना विशालकाय पक्षी होता था जो कि अपनी चोंच से हाथी को उठाकर उड़ जाता था।

गरूढ़ जैसे ही दो पक्षी रामायण काल में भी थे जिन्हें जटायु और सम्पाती कहा जाता था। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते विचरण करते रहते थे। इनके लिए दूरियों का कोई महत्व नहीं था। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है।

पक्षियों में गरुड़ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह समझदार और बुद्धिमान होने के साथ-साथ तेज गति से उड़ने की क्षमता रखता है। गिद्ध और गरुड़ में फर्क होता है। संपूर्ण भारत में गरुड़ का ज्यादा प्रचार और प्रसार किसलिए है यह जानना जरूरी है। गरुड़ के बारे में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती है। रामायण में तो गरुड़ का सबसे महत्वपूर्ण पात्र है।

आखिरकार भगवान विष्णु के वाहन गरूढ़ का क्या रहस्य है?

पक्षी तीर्थ :चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर एक तीर्थस्थल है जिसे 'पक्षी तीर्थ' कहा जाता है। यह तीर्थस्थल वेदगिरि पर्वत के ऊपर है। कई सदियों से दोपहर के वक्त गरूड़ का जोड़ा सुदूर आकाश से उतर आता है और फिर मंदिर के पुजारी द्वारा दिए गए खाद्यान्न को ग्रहण करके आकाश में लौट जाता है।

सैकड़ों लोग उनका दर्शन करने के लिए वहां पहले से ही उपस्थित रहते हैं। वहां के पुजारी के मुताबिक सतयुग में ब्रह्मा के 8 मानसपुत्र शिव के शाप से गरूड़ बन गए थे। उनमें से 2 सतयुग के अंत में, 2 त्रेता के अंत में, 2 द्वापर के अंत में शाप से मुक्त हो चुके हैं। कहा जाता है कि अब जो 2 बचे हैं, वे कलयुग के अंत में मुक्त होंगे।

गरुड़ हैं देव पक्षी :गरूड़ का जन्म सतयुग में हुआ था, लेकिन वे त्रेता और द्वापर में भी देखे गए थे। दक्ष प्रजापति की विनिता या विनता नामक कन्या का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। विनिता ने प्रसव के दौरान दो अंडे दिए। एक से अरुण का और दूसरे से गरुढ़ का जन्म हुआ। अरुण तो सूर्य के रथ के सारथी बन गए तो गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन होना स्वीकार किया।

सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु तो बीच से लौट आए, किंतु सम्पाती उड़ते ही गए।

सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए। चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया।

सतयुग में देवताओं से युद्ध :पुराणों में भगवान गरूड़ के पराक्रम के बारे में कई कथाओं का वर्णन मिलता है। कहते हैं कि उन्होंने देवताओं से युद्ध करके उनसे अमृत कलश छीन लिया था। दरअस्ल, ऋषि कश्यप की कई पत्नियां थीं जिनमें से दो वनिता और कद्रू थी।

ये दोनों ही बहने थी, जो एक दूसरे से ईर्ष्या रखती थी। दोनों के पुत्र नहीं थे तो पति कश्यप ने दोनों को पुत्र के लिए एक वरदान दे दिया। वनिता ने दो बलशाली पुत्र मांगे जबकि कद्रू ने हजार सर्प पुत्र रूप में मांगे जो कि अंडे के रूप में जन्म लेने वाले थे। सर्प होने के कारण कद्रू के हजार बेटे अंडे से उत्पन्न हुए और अपनी मां के कहे अनुसार काम करने लगे।

दोनों बहनों में शर्त लग गई थी कि जिसके पुत्र बलशाली होंगे हारने वाले को उसकी दासता स्वीकार करनी होगी। इधर सर्प ने जो जन्म ले लिया था लेकिन वनिता के अंडों से अभी कोई पुत्र नहीं निकला था। इसी जल्दबाजी में वनिता ने एक अंडे को पकने से पहले ही फोड़ दिया। अंडे से अर्धविकसित बच्चा निकला जिसका ऊपर का शरीर तो इंसानों जैसा था लेकिन नीचे का शरीर अर्धपक्व था। इसका नाम अरुण था।

अरुण ने अपनी मां से कहा कि 'पिता के कहने के बाद भी आपने धैर्य खो दिया और मेरे शरीर का विस्तार नहीं होने दिया। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको अपना जीवन एक सेवक के तौर पर बिताना होगा। अगर दूसरे अंडे में से निकला उनका पुत्र उन्हें इस श्राप से मुक्त ना करवा सका तो वह आजीवन दासी बनकर रहेंगी।'

भय से विनता ने दूसरा अंडा नहीं फोड़ा और पुत्र के शाप देने के कारण शर्त हार गई और अपनी छोटी बहन की दासी बनकर रहने लगी।

बहुत लंबे काल के बाद दूसरा अंडा फूटा और उसमें से विशालकाय गरुड़ निकाला जिसका मुख पक्षी की तरह और बाकी शरीर इंसानों की तरह था। हालांकि उनकी पसलियों से जुड़े उनके विशालकाय पंक्ष भी थे। जब गरुड़ को यह पता चला कि उनकी माता तो उनकी ही बहन की दासी है और क्यों है यह भी पता चला, तो उन्होंने अपनी मौसी और सर्पों से इस दासत्व से मुक्ति के लिए उन्होंने शर्त पूछी।

सर्पो ने विनता की दासता की मुक्ति के लिए अमृत मंथन ने निकला अमृत मांग। अमृत लेने के लिए गरुड़ स्वर्ग लोक की तरफ तुरंत निकल पड़े। देवताओं ने अमृत की सुरक्षा के लिए तीन चरणों की सुरक्षा कर रखी थी, पहले चरण में आग की बड़े परदे बिछा ररखे थे। दूसरे में घातक हथियारों की आपस में घर्षण करती दीवार थी और अंत में दो विषैले सर्पो का पहरा।

वहां तक भी पहुंचाने से पहले देवताओं से मुकाबला करना था। गरुड़ सब से भीड़ गए और देवताओं को बिखेर दिया। तब गरुड़ ने कई नदियों का जल मुख में ले पहले चरण की आग को बुझा दिया, अगले पथ में गरुड़ ने अपना रूप इतना छोटा कर लिया के कोई भी हथियार उनका कुछ न बिगाड़ सका और सांपों को अपने दोनों पंजो में पकड़कर उन्होंने अपने मुंह से अमृत कलश उठा लिया और धरती की ओर चल पड़े।

लेकिन तभी रास्ते में भगवान विष्णु प्रकट हुए और गरुड़ के मुंह में अमृत कलश होने के बाद भी उसके प्रति मन में लालच न होने से खुश होकर गरुड़ को वरदान दिया की वो आजीवन अमर हो जाएंगे। तब गरुड़ ने भी भगवान को एक वरदान मांगने के लिए बोला तो भगवान ने उन्हें अपनी सवारी बनने का वरदान मांगा। इंद्र ने भी गरुड़ को वरदान दिया की वो सांपों को भोजन रूप में खा सकेगा इस पर गरुड़ ने भी अमृत सकुशल वापसी का वादा किया।

अंत में गरुड़ ने सर्पों को अमृत सौंप दिया और भूमि पर रख कर कहा कि यह रहा अमृत कलश। मैंने यहां इसे लाने का अपना वादा पूरी किया और अब यह आपके सुपूर्द हुआ, लेकिन इसे पीने के आप सभी स्नान करें तो अच्छा होगा।

जब वे सभी सर्प स्नान करने गए तभी वहां अचानक से भगवान इंद्र पहुंचे और अमृत कलश को वापस ले गए। लेकिन कुछ बूंदे भूमि पर गिर गई जो घांस पर ठहर गई थी। सर्प उन बूंदों पर झपट पड़े, लेकिन उनके हाथ कुछ न लगा। इस तरह गरुड़ की शर्त भी पूरी हो गई और सर्पों को अमृत भी नहीं मिला।

त्रेता युग में :जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया था।

गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी नाम के एक कौवे के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया।

लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गरूड़ को सुना दी थी। इससे पूर्व हनुमानजी ने संपूर्ण रामायण पाठ लिखकर समुद्र में फेंक दी थी। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था।

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़ का अभिमान :

भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था।

एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?

भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा- भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है। तभी सुदर्शन से भी रहा नहीं गया और वह भी बोल उठा कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? द्वारकाधीश समझ गए कि तीनों में अभिमान आ गया है। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि इनका अहंकार कैसे नष्ट किया जाए, तभी उनको एक युक्ति सूझी...

भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।

तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई भी प्रवेश न करने पाए। सुदर्शन चक्र ने कहा, जो आज्ञा भगवान और भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गया।

गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए पधारे हैं। आपको बुला लाने की आज्ञा है। आप मेरे साथ चलिए। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए बंधु, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मुझे क्या कभी भी पहुंचे, मेरा कार्य तो पूरा हो गया। मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़ चले।

लेकिन यह क्या? महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम के रूप में श्रीकृष्ण ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे क्या कोई रोक सकता है? इस चक्र ने रोकने का तनिक प्रयास किया था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।

अंत में हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, हे प्रभु! मैं आपको तो पहचानता हूं आप ही श्रीकृष्ण के रूप में मेरे राम हैं, लेकिन आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।

अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त हनुमान द्वारा ही दूर किया। अद्भुत लीला है प्रभु की।

गरूड़ घंटी का महत्व है

मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। यह घंटे या घंटियां 4 प्रकार की होती हैं:-

1.गरूड़ घंटी, 2.द्वार घंटी, 3.हाथ घंटी और 4.घंटा।

1. गरूड़ घंटी :गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।

2. द्वार घंटी :यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।

3. हाथ घंटी: पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।

4. घंटा :यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।

हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख घरों में आपको गरूढ़ घंटी मिल जाएगी। हिन्दू और जैन घरों में तो यह विशेष तौर पर गरूड़ के आकार की ही होती है। छोटी और बड़ी सभी आकार की यह घंटी मिल जाएगी।

गरूड़ ध्वज :महाभारत में गरूड़ ध्वज था। प्राचीन मंदिरों के द्वार पर एक ओर गरूड़, तो दूसरी ओर हनुमानजी की मूर्ति आवेष्ठित की जाती रही है। घर में रखे मंदिर में गरूड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरूड़ ध्वज होता है।

गरुड़ भारत का धार्मिक और अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी है। भारत के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाने वाले गुप्त शासकों का प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही था। कर्नाटक के होयसल शासकों का भी प्रतीक गरुड़ था। गरुड़ इंडोनेशिया, थाईलैंड और मंगोलिया आदि में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है। इंडोनेसिया का राष्ट्रिय प्रतीक गरुड़ है। वहां की राष्ट्रिय एयरलाइन्स का नाम भी गरुड़ है। इंडोनेशिया की सेनाएं संयुक्त राष्ट्र मिशन पर गरुड़ नाम से जाती है। इंडोनेशिया पहले एक हिन्दू राष्ट्र ही था। थाईलैंड का शाही परिवार भी प्रतीक के रूप में गरुड़ का प्रयोग करता है। थाईलैंड के कई बौद्ध मंदिर में गरुड़ की मूर्तियाँ और चित्र बने हैं। मंगोलिया की राजधानी उलनबटोर का प्रतीक गरुड़ है।

गरूड़ पुराण :गरूड़ नाम से एक व्रत भी है। गरूड़ नाम से एक पुराण भी है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो गरूड़ पुराण का पाठ रखा जाता है। गरूड़ पुराण में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं।

गरूड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों का वर्णन मिलता है। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिए अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णनके साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किए जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है।



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Anupma Raj

Anupma Raj

Sports Content Writer

My name is Anupma Raj. I am from Patna. I'm a content writer with more than 3 years of experience.

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