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OMG! गीता वाटिका में पचास साल से अनवरत जारी है कीर्तन

raghvendra
Published on: 3 Nov 2017 11:58 AM GMT
OMG! गीता वाटिका में पचास साल से अनवरत जारी है कीर्तन
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर। धूप, धुंध हो या बारिश, बाढ़, आंधी या कोई प्राकृतिक आपदा हो, गोरखपुर के गीता वाटिका में हरे राम, हरे राम, हरे हरे कृष्ण की गूंज चारों पहर सुनाई देती है। सेंकेड, मिनट, दिन, महीने होते हुए साल दर साल का सफर पूरा करते हुए कीर्तन का कारवां 50वें वर्ष में पहुंच चुका है। कीर्तन को 50 वर्षों से अनवरत जारी रखने वाले कर्ताधर्ताओं को न तो लिमका बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज होने की ललक है और न ही गिनीज बुक में शामिल होने की। गोल्डेन जुबिली वर्ष में पहुंच चुके अखंड कीर्तन को कर्ताधर्ता यूं ही अनंतकाल तक इसे जारी रखने को संकल्पित हैं।

पोद्दार के प्रयास से शुरू हुआ कीर्तन

गीता प्रेस की स्थापना के साथ गोरखपुर से देश-दुनिया में अध्यात्मिक संदेश देने वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार के प्रयासों से 1968 में राधाष्टमी के दिन से अखंड कीर्तन का संकल्प लिया गया। खुद हनुमान प्रसाद पोद्दार कीर्तन गाते थे। उनके साथ आसपास के लोग भी कीर्तन में सहभागी बनते थे। धीरे-धीरे देश के कोने-कोने से लोग कीर्तन गाने के लिए पहुंचने लगे। राजस्थान, कोलकाता, मथुरा और वृंदावन से पहुंचने वालों की संख्या काफी अधिक होती है। राजस्थान और कोलकाता से तमाम लोग यहां आए और यहीं के होकर रह गए।

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दुजारी यहीं के होकर रह गए

राजस्थान के बीकानेर से 51 वर्ष पहले पत्नी के साथ गोरखपुर आए हरिकृष्ण दुजारी गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। दुजारी बताते हैं कि हनुमान प्रसाद उर्फ भाई जी और राधा बाबा चैतन्य महाप्रमु के कीर्तन से काफी प्रभावित थे। वह कीर्तन को ईश्वर के करीब पहुंचने का एक बड़ा माध्यम मानते थे।

खुद रोज दो से तीन घंटे कीर्तन करते थे। उन्हीं की प्रेरणा से कीर्तन 50वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। चैतन्य महाप्रभु से प्रेरित होकर भाईजी की नवदीप मंडली के सहयोग से वर्ष 1935 में भी अखंड कीर्तन की शुरूआत की थी, लेकिन साल भर के अल्पकाल में ही यह कीर्तन बंद हो गया। अखंड कीर्तन में बाधा न आने देने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं।

समर्पित है 12 लोगों की मंडली

12 लोगों की कीर्तन मंडली फिलहाल इसके लिए समॢपत है। पिछले तीन दशक से कीर्तन कर रहे चित्रकूट के दिलीप तिवारी कहते हैं कि कीर्तन करते-करते वक्त कैसे गुजर जाता है, यह पता ही नहीं चलता है। कोलकाता निवासी चेतन दास और कृष्णा दास का बताते हैं कि वर्ष 2015 में 25 अप्रैल से लेकर 3 मई के बीच कई बार भूकम्प के झटके आए थे। कीर्तन के वक्त झटकों से चंद सेकेंड के लिए मन विचलित हुआ था, लेकिन सभी से संकल्प ले रखा था कि भूकंप से कोई अनहोनी होती भी है तो वह कीर्तन को खंडित नहीं होने देंगे।

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सुबह और शाम आसपास के लोग भी बड़ी संख्या में कीर्तन के सहभागी बनते हैं। कीर्तन की वास्तविक आभा प्रतिवर्ष दिसम्बर को होने वाले राधाष्टमी के दिन दिखाई देती है। जब देश-दुनिया से जुटे भक्तों की मौजूदगी में हजारों लोग एक साथ कीर्तन में भाग लेते हैं।

13 साल से निकल रही प्रभातफेरी

गीता वाटिका में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की प्रेरणा से पिछले 13 वर्षों से प्रभातफेरी निकाली जाती है। प्रभातफेरी के वक्त विशेष कीर्तन में बड़ी संख्या में लोग सहभागी होते हैं। गीता वाटिका के प्रबंधतंत्र से जुड़े हरिकृष्ण दुजारी बताते हैं कि कीर्तन दिनचर्या में शामिल हो गया है। अखंड कीर्तन में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग प्रतिवर्ष शामिल होते हैं।

32 वर्ष पहले स्थापित हुआ राधाकृष्ण मंदिर

गीता वाटिका पहले कीर्तन और गीता प्रेस के चलते ही पहचान रखता था। कीर्तन में लोगों की सहभागिता को देखते हुए वर्ष 1985 में यहां भव्य राधाकृष्ण मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर नागर शैली में बने स्थापत्य कला की अदभुद नमूना है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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