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देवी दुर्गा ने शाक से देवताओं की मिटाई थी भूख
महेश कुमार
सहारनपुर: जनपद मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर शिवालिक पहाडिय़ों में सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र हैं। यहां शीश नवाने वाले भक्त सर्वसुख संपन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, पद्म पुराण, कनक धारा स्रोत आदि में मिलता है। मां भगवती का नाम शाकंभरी देवी प्रचलित होने के बारे में मान्यता है कि प्राचीन काल में दुर्ग नामक दैत्य ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर वरदान में चारों वेद मांग लिए। दैत्यों के हाथ चारों वेद लगने से सभी वैदिक क्रियाएं लुप्त हो गईं और 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। इस कारण तीनों लोकों में अकाल पड़ गया। त्राहि-त्राहि मचने पर देवताओं ने शिवालिक पर्वत की प्रथम शिखा पर मां जगदंबा की घोर तपस्या की। देवताओं की करुण पुकार सुनकर करुणामयी मां भगवती से रहा नहीं गया और वह देवताओं के समक्ष प्रकट हो गर्इं। व्याकुल देवताओं ने उनसे तीनों लोकों का अकाल मिटाने की प्रार्थना की। इस पर मां जगदंबा ने अपने शत नेत्रों से नौ दिन एवं नौ रात तक अश्रुवृष्टि की जिससे सूखी धरा तृप्त हो गई। सभी सागर एवं नदियां जल से भर गईं। तभी से नवरात्रों की पूजा का प्रावधान बना और मां जगदंबा को शताक्षी कहा जाने लगा। मां भगवती ने देवताओं की भूख मिटाने के लिए अपनी शक्ति से पहाडिय़ों पर शाक व फल उत्पन्न किए। जिसके बाद वो माता शाकंभरी कहलाईं।
श्री दुर्गा सप्तशती में मिलता है उल्लेख
श्री दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में मां शाकंभरी देवी का वर्णन मिलता है। मां दुर्गा ने देवताओं से कहा कि मैं अपने शरीर से उत्पन्न हुए प्राणों की रक्षा करने वाले शाकों (शाक भाजी) द्वारा सभी प्राणियों का पालन करुंगी और तब इस पृथ्वी पर शाकंभरी के नाम से विख्यात होऊंगी। इस अवतार में मैं दुर्ग नामक महाअसुर का वध करुंगी और मैं दुर्गा देवी के नाम से प्रसिद्ध होऊंगी।
यहां किया था महिषासुर का वध
मंदिर गर्भ गृह में मां शाकंभरी के साथ भीमा देवी, भ्राबंरी व शताक्षी देवी सहित गणेश जी की प्रतिमा भी मौजूद है। इस पावन तीर्थ के निकट गौतम ऋषि की गुफा, प्रेतशिला पंच महादेव के रूप में बडक़ेश्वर महादेव, मटकेश्वर महादेव, शाकेश्वर महादेव, कमलेश्वर महादेव, इन्द्रेश्वर महादेव के भव्य मंदिरों के अलावा भूरा देव मंदिर, छिन्नमिस्ता देवी मंदिर, रक्त दंतिका मंदिर आदि पवित्र स्थल स्थित हैं। इसके अलावा सिद्धपीठ परिक्षेत्र से लगभग 5 किमी दूर पहाडिय़ों पर संहस्रा ठाकुर का मंदिर भी स्थापित है। यह प्राचीन मंदिर एक ही पत्थर से तराश कर बनाया गया है। मंदिर के निकट वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध एक मैदान है। इसके बारे में मान्यता है कि यहां मां भगवती एवं दैत्यों के बीच घोर युद्ध हुआ था। बताया जाता है कि इसी मैदान पर माता ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।
सराल है मां शाकंभरी का प्रमुख प्रसाद
सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी मंदिर पर हलवा पुरी, इलायची दाना, नारियल-चुनरी, मेवे और मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाया जाता है, लेकिन पौराणिक कथाओं में सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी का प्रमुख प्रसाद सराल बताया गया है। सराल एक विशेष प्रकार का फल है, जो शिवालिक पहाडिय़ों पर ही पाया जाता है। देखने में यह शकरकंद जैसा होता है। देवताओं की भूख मिटाने के लिए मां शाकंभरी देवी ने शाक-सराल आदि फल उत्पन्न किए थे। जिसमें सराल का प्रसाद प्रमुख माना जाता है। वर्तमान में मां भगवती के काफी भक्त सराल का प्रसाद चढ़ाते हैं।
मां के दर्शनों से पहले बाबा भूरादेव की महत्ता
देवताओं एवं दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान धर्म की रक्षा के लिए मां भगवती का परम भक्त भूरादेव अपने साथियों के साथ युद्ध में उतरा था। युद्ध के दौरान अपने भक्त भूरादेव को घायल देखकर करुणामयी माता ने भूरादेव को वचन दिया था कि जो भक्त मेरे दर्शन से पूर्व भूरादेव के दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होगी। यही कारण है कि आज भी श्रद्धालु भूरादेव मंदिर पर प्रसाद चढ़ाने के बाद ही मां शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं।