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Govardhan Puja Vrat Katha आज करेंगे गोवर्धन पूजा, यहां पढ़िये कथा बनी रहेगी सालभर कान्हा की कृपा
Govardhan Puja Vrat Katha :गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक की प्रतिपदा को दिवाली के बाद होती है, जानते हैं इसकी कथा और गोवर्धन परिक्रमा का महत्व..
Govardhan Puja Vrat Katha गोवर्धन पूजा कथा इन हिंदी : आज शनिवार को गोवर्धन पूजा है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाते हैं। इस दिन सुबह शरीर पर तेल के बाद ही स्नान करना चाहिए। घर के दरवाजे पर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर। इस पर्वत के बीच में भगवान श्रीकृष्ण की फोटो रखें। उसके बाद तरह-तरह के पकवान व मिठाई से भोग लगाएं। साथ में इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की पूजा करें। पूजा के बाद कथा सुनें। प्रसाद के रूप में दही व चीनी सब में बांट दें।
गोवर्धन पूजा क्यों करते हैंजानिए कथा...
एक बार श्रीकृष्ण अपने सखाओं, ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा- मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।
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तब श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात जब देवराज इंद्र को पता चली तो सुनकर इंद्र को बहुत गुस्सा आया। इंद्र ने मूसलधार बारिश शुरू कर दी। बारिश से परेशान सब श्रीकृष्ण के पास गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। उसके बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
गांववाले सात दिन तक उसी पर्वत की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर इंद्रदेव को अपनी मूर्खता पर पश्चाताप हुआ और वो कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि- अब तुम हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।
गोवर्धन परिक्रमा के नियम
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से विशेष फल मिलता है।गोवर्धन पर्वत की पूरी परिक्रमा लगभग 23 किलोमीटर लंबी होती है और इसे पूरा करने में लगभग 5-6 घंटे लगते हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के खास नियम हैं। जिनका पालन न करने पर व्यक्ति को फल नहीं मिलता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय भूलकर भी न करें काम...
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जहां से परिक्रमा करनी शुरू की है वहीं से गोवर्धन परिक्रमा समाप्त भी करनी है। माना जाता है कि ऐसा करने पर ही व्यक्ति को गोवर्धन परिक्रमा का फल प्राप्त करता है।
परिक्रमा शुरु करने से पहले मानसी गंगा में स्नान अवश्य करना चाहिए। अगर ऐसा करना संभव न हो तो हाथ मुंह धोकर भी परिक्रमा शुरु कर सकते हैं।
विवाहित लोगों को परिक्रमा हमेशा जोड़े में करनी चाहिए। इसके अलावा गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय हमेशा पर्वत को अपने दाईं और ही रखें।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कभी भी अधूरी छोड़नी नहीं चाहिए। शास्त्रों में कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पाप का भागीदार बनता है। यदि किसी कारण से परिक्रमा अधूरी छोड़नी पड़े तो जहां से परिक्रमा अधूरी छोड़ रहे हैं वहीं जमीन पर माथा टेककर भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगकर उन्हें प्रणाम कर उनसे परिक्रमा समाप्ति की अनुमति लें।
पर्वत की परिक्रमा जहां तक हो सके सांसारिक बातों को त्याग कर पवित्र अवस्था में हरिनाम व भजन कीर्तन करते हुए ही करनी चाहिए।
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परिक्रमा करते समय किसी भी प्रकार का धूम्रपान नशीली वस्तु का सेवन न करें।
महिलाओं को पीरियड्स के समय पर्वत की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। लेकिन परिक्रमा करते समय यदि किसी महिला को मासिक धर्म आए तो वह परिक्रमा अधूरी नहीं पूरी ही मानी जाती है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से लाभ
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, जो लोग जीवन में सात बार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर लेते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
गोवर्धन पर्वत पर भगवान कृष्ण और राधा रानी का आशीर्वाद मिलता है।
गोवर्धन पर्वत को योगेश्वर भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज की उपाधि प्राप्त होती है।