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Guru Purnima 2023 Kab Hai: गुरु पूर्णिमा कब है 2023 में ,जानिए पूजा विधि और मुहूर्त महत्व

Guru Purnima 2023 Kab Hai: आषाढ़ के पूर्णिमा के दिन वेदों के ज्ञाता और महाकाव्य महाभारत के रचियेता वेदव्यास जी का प्राक्ट्य दिवस भी मानते है और उनकी जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाते हैं। व्यास ने 18 पुराणों को रचा थी उनको आदिगुरु माना जाता है।

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 5 Jun 2023 6:31 PM IST (Updated on: 1 July 2023 9:43 AM IST)
Guru Purnima 2023 Kab Hai: गुरु पूर्णिमा  कब है 2023 में ,जानिए पूजा विधि और मुहूर्त महत्व
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Guru Purnima 2023 Kab Hai

Guru Purnima 2023 Kab Hai गुरु पूर्णिमा कब है : हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। इस साल 3 जुलाई 2023 को आषाढ़ी पूर्णिमा है और इसी दिन अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरुओं को सम्मान के साथ पूजा की जाती है।

धर्म जीवन को देखने का काव्यात्मक ढंग है। सारा धर्म एक महाकाव्य है। अगर यह खयाल में आए, तो आषाढ़ की पूर्णिमा बड़ी अर्थपूर्ण हो जाएगी। अन्यथा आषाढ़ में पूर्णिमा दिखाई भी न पड़ेगी। बादल घिरे होंगे, आकाश खुला न होगा।

और भी प्यारी पूर्णिमाएं हैं, शरद पूर्णिमा है, उसको क्यों नहीं चुन लिया? ज्यादा ठीक होता, ज्यादा मौजूं मालूम पड़ता। नहीं, लेकिन चुनने वालों का कोई खयाल है, कोई इशारा है। वह यह है कि गुरु तो है पूर्णिमा जैसा और शिष्य है आषाढ़ जैसा। शरद पूर्णिमा का चांद तो सुंदर होता है, क्योंकि आकाश खाली है। वहां शिष्य है ही नहीं, गुरु अकेला है। आषाढ़ में सुंदर हो, तभी कुछ बात है, जहां गुरु बादलों जैसा घिरा हो शिष्यों से।

शिष्य सब तरह के हैं, जन्मों-जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल हैं, आषाढ़ का मौसम हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी रोशनी पैदा कर सके, तो ही गुरु है। इसीलिए आषाढ़ की पूर्णिमा! वह गुरु की तरफ भी इशारा है और उसमें शिष्य की तरफ भी इशारा है। और स्वभावत: दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।

गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त ( Guru Purnima shubh muhurat)

इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन सूर्य कर्क राशि में रहेगा। उत्तरषाढ़ा नक्षत्र और विष्कुंभ योग बनेगा। जानिए इस दिन का शुभ मुहूर्त और योग।

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 2 जुलाई 02 08:21 PM

पूर्णिमा तिथि समाप्त - 3 जुलाई, 03 05:08 PM

अभिजीत मुहूर्त - 12:04 PM – 12:57 PM

अमृत काल -04:08 AM – 05:34 AM

ब्रह्म मुहूर्त - 04:13 AM – 05:01 AM

सर्वार्थसिद्धि योग - 2 जुलाई 12:40 PM - 3 जुलाई 2 05:58 AM

गुरु पूर्णिमा आदिगुरु वेदव्यास जी का जन्मदिवस

धर्मानुसार आषाढ़ के पूर्णिमा के दिन वेदों के ज्ञाता और महाकाव्य महाभारत के रचियेता वेदव्यास जी का प्राक्ट्य दिवस भी मानते है और उनकी जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाते हैं। व्यास ने 18 पुराणों को रचा थी उनको आदिगुरु माना जाता है।

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥ कबीर दास ने अपने दोहे से गुरु की महिमा का बखान किया थी।

गुरु-शिष्य की परपंरा अनादिकाल से चली आ रही है। वैसे तो हर धर्म में पथ प्रर्दशक गुरु को ऊंच स्थान मिला है, लेकिन हिंदू धर्म में भगवान से गुरु की तुलना की गई। कहते हैं कि गुरु के ज्ञान से भक्ति, मोक्ष और ज्ञान का भंडार मिलता है।

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

धर्म ग्रंथों मे गुरु की परब्रह्म माना गया है जिसकी महिमा उपरोक्त श्लोक से साफ झलकती है। इसलिए इस दिन को हम सभी को गुरु की पूजा करनी चाहिए।

गुरु पूर्णिमा की विधि

इस दिन सबसे पहले सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद वेदव्यास जी पूजा 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाकरकरने के साथ हम सबको अपने गुरुओं का ध्यान करना चाहिए, जिससे हमने कुछ सीखा हो। साथ ही माता-पिता के भी चरण स्पर्श और पूजन करना चाहिए। जीवन में गुरु के सीखाएं मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए और मानवता को जिंदा रखना चाहिए। धार्मिक महापुराणों और महाकाव्यों की पूजा करना चाहिए। इस दिन गंगा यमुना या किसी भी पवित्र नदी स्नान और दान का महत्व है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते यह संभव नहीं हो पाया है। तो आप घर पर ही गंगा की कुछ बुंदे पानी में डालकर स्नान करें।

धर्मानुसार गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, लेकिन आपके जीवन में कोई गुरु नहीं तो आप इस दिन शिव जी या ब्रह्मा जी को गुरु मान कर आपना कल्याण कर सकते है। गुरु की कृपा से ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता सुख, संपन्नता का समावेश होता है। गुरु अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जातक हमें ज्ञान देते है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व (Guru Purnima Importance)अगर यह समझ में आ जाए काव्य-प्रतीक, तो आषाढ़ की तरह हो, अंधेरे बादल हो। न मालूम कितनी कामनाओं और वासनाओं का जल हम में भरा है, और न मालूम कितने जन्मों-जन्मों के संस्कार लेकर हम चल रहे हैं, हम बोझिल हैं। हमें अंधेरे से घिरे हृदय में रोशनी पहुंचानी है। इसलिए पूर्णिमा की जरूरत है!

चांद जब पूरा हो जाता है, तब उसकी एक शीतलता है। चांद को ही हमने गुरु के लिए चुना है। सूरज को चुन सकते थे, ज्यादा समानांतर होता, तथ्यगत होता, क्योंकि चांद के पास अपनी रोशनी नहीं है। इसे थोड़ा समझना होगा।

चांद की रोशनी उधार है। सूरज के पास अपनी रोशनी है। चांद पर तो सूरज की रोशनी का प्रतिफलन होता है। जैसे कि दीये को आईने के पास रख दो, तो आईने में से भी रोशनी आने लगती है। वह दीये की रोशनी का प्रतिफलन है, वापस लौटती रोशनी है। चांद तो केवल दर्पण का काम करता है, रोशनी सूरज की है।



Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

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