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''गुरु आपको सिर्फ ज्ञान से नहीं भर देते, बल्कि आपके भीतर प्राण शक्ति को जगाते हैं''

गुरु दीक्षा देते हैं। दीक्षा केवल किसी विषय को लेकर कोई सूचना नहीं है, बल्कि यह सजगता और बुद्धिमत्ता की चरम सीमा है। गुरु आपको केवल ज्ञान से नहीं भर देते हैं,बल्कि आपके भीतर प्राण शक्ति को जगाते हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 26 Jun 2020 7:04 PM GMT
गुरु आपको सिर्फ ज्ञान से नहीं भर देते, बल्कि आपके भीतर प्राण शक्ति को जगाते हैं
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जय गुरुदेव

गुरु दीक्षा देते हैं। दीक्षा केवल किसी विषय को लेकर कोई सूचना नहीं है, बल्कि यह सजगता और बुद्धिमत्ता की चरम सीमा है। गुरु आपको केवल ज्ञान से नहीं भर देते हैं,बल्कि आपके भीतर प्राण शक्ति को जगाते हैं। गुरु की उपस्थिति में क्या होता है? आप थोड़ा और अधिक सजीव हो जाते हैं। आपके शरीर की प्रत्येक कोशिका थोड़ा और अधिक सजीव हो जाती है।गुरु केवल बुद्धि का ही नहीं,बल्कि बुद्धिमत्ता का आवाहन एवम् जागरण करते हैं। बुद्धि की चरम सीमा बुद्धिमत्ता है।

मन चंद्रमा से जुड़ा हुआ है और पूर्ण चंद्रमा पूर्णता, उत्सव एवम् चरम सीमा का प्रतीक है।गुरु पूर्णिमा वह दिन है, जब शिष्य पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है। और उस पूर्णता में, शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होता है। कृतज्ञता आपकी और मेरी ( द्वैत ) नहीं होती है। बल्कि,यह अद्वैत होती है। यह एक नदी की तरह नहीं है, जो दूसरी नदी में जाकर मिल रही है, बल्कि यह एक सागर है,जो अपने आप में ही घूम रहा है।

नदी और सागर,दोनों ही कहीं ना कहीं जाते हैं।एक नदी एक जगह से दूसरी जगह जाती है।लेकिन,सागर कहां जाता है?यह अपने आप में ही घूमता है।और गुरु पूर्णिमा विद्यार्थी या शिष्य की पूर्णता का प्रतीक है।शिष्य कृतज्ञता का उत्सव मनाता है। सबसे पहले गुरु दक्षिणामूर्ति हैं। वह एक अवतार हैं,जिसमें अनंत को सीमितता में बड़ी कुशलता से पिरोया गया है। इस अवतार में अंत और अनंत एक साथ मौजूद हैं।

गुरु सिद्धांत

हमारे शरीर में अरबों कोशिकाएं हैं।प्रत्येक कोशिका का अपना जीवन है। बहुत सारी कोशिकाएं प्रत्येक क्षण जन्म ले रही हैं और मर रही हैं। आपका शरीर एक नगर के समान है। जिस प्रकार से बहुत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं,उसी प्रकार से आपके शरीर में बहुत सारी कोशिकाएं घूम रही हैं। आप मधुमक्खी के छत्ते के जैसे एक नगर हैं।छत्ते में बहुत सारी मधुमक्खियां होती हैं,जो बैठी रहती हैं, लेकिन इनमें से केवल एक रानी मक्खी होती है।यदि वह रानी मक्खी कहीं चली जाती है,तब बाकी सारी मक्खियां भी चली जाती हैं। छत्ता खत्म हो जाता है।

इसी प्रकार से हमारे शरीर में एक अणु है। वह सबसे छोटे से भी छोटा अणु है, जो आत्मा है, जो सब जगह पर है,फिर भी कहीं नहीं है। वही रानी मक्खी है,जो आप हैं। वही रानी मक्खी ईश्वर है। वही रानी मक्खी गुरु सिद्धांत है।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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