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Hal Chhat 2023 mein kab hai date: कब है हलछठ का त्योहार, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व
Hal Chhat 2023 mein kab hai date: हल छठ हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि मनाई जाती है। इस दिन बलराम जयंती मनाई जाती है। जानते हैं कब है हल छठ...
Hal Chhat 2023 Mein Kab hai Dateहलषष्ठी व्रत कब है : जन्माष्टमी से दो दिन पहले बलदाऊ यानि बलराम जी की जयंती होती है। हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष को हल छठ का पर्व है। इसे अनेक नामों से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संतान की लंबी उम्र के लिए हल छठ का व्रत किया जाता है
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महिलाएं हल छठ व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से पुत्र को कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में महिलाएं प्रत्येक पुत्र के आकार के आधार पर छह छोटे मिट्टी के बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या सूखे मेवे भरती हैं।
हल छठ व्रत 2023 का शुभ मुहूर्त
2023 में हलषष्ठी व्रत 5 सितंबर 2023, दिन मंगलवार को हल छठ व्रत किया जाएगा। हलछठ का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 5 सितंबर 2023 दिन मंगलवार को शाम 6.50 बजे शुरू होगी।
6 सितंबर 2023 को रात्रि 8.55 बजे तक रहेगी ।
अभिजीत मुहूर्त - 12:00 PM से 12:50 PM
अमृत काल - नहीं
ब्रह्म मुहूर्त - 04:37 AM से 05:25 AM
त्रिपुष्कर योग - Sep 05 03:46 PM - Sep 06 06:14 AM
सर्वार्थसिद्धि योग - Sep 05 09:00 AM - Sep 06 09:20 AM
हल षष्ठी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं व कन्याओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है। इस व्रत में हल से जोते हुए बागों या खेतों के फल और अन्न खाना वर्जित माना गया है। इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है।
हलछठ पूजा विधि
इस शुभ दिन दीवार पर गाय के गोबर से हरछठ का चित्र भी बनाया जाता है. इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं. इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा रखते हैं. इस पूजा में सात प्रकार के भुने हुए अनाज का भोग लगाया जाता है. इसमें भुना हुआ गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं. इसके बाद कथा सुनते हुए व्रत को पूण किया जाता है.
हलछथ व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था।भगवान बलराम की जयंती को हल षष्ठी या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है। बलराम भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे। भगवान बलराम को आदिश के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है।शेषनाग जिस पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, उन्हें आदिश के नाम से भी जाना जाता है. बलराम को बलदेव, बलभद्र और हलुध के नाम से भी जाना जाता है।
महिलाएं इस व्रत को अपनी संतान की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। भगवान बलराम को भगवान विष्णु के 8वें अवतार के भ्राता रूप में पूजा जाता है।
इस त्योहार को हरछठ व्रत कथा और ललही छठ व्रत कथा के रूप में भी जाना जाता है। क्षेत्रीय स्तर पर कई कहानियां सुनाई जाती हैं, लेकिन यह कहानी विशेष रूप से लोकप्रिय है। एक ग्वालिन थी जो दूध और दही बेचकर अपना जीवन यापन कर रही थी। एक बार वह गर्भवती थी और दूध बेचने जा रही थी कि रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहां एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी, इसलिए उसने अपने बेटे को एक पेड़ के नीचे सुला दिया और पास के एक गाँव में दूध बेचने चली गई। उस दिन हर छठ व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था, लेकिन ग्वालिन ने गाय के दूध को भैंस का दूध बताकर सभी को दूध बेच दिया। इससे छठ माता नाराज हो गईं और उन्होंने अपने बेटे की जान ले ली. जब ग्वालिन वापस आई, तो वह रोने लगी और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।इसके बाद उन्होंने सबके सामने अपना गुनाह कबूल करते हुए पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को जीवित कर दिया. इसी वजह से इस दिन पुत्र की लंबी उम्र के लिए हर छठ व्रत और पूजा की जाती है।