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Balaram Jayanti 2024: हलषष्ठी व्रत कथा
Balaram Jayanti 2024: बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मुसल है।इसलिए उन्हें हलधर के नाम से भी पुकारा जाता है,और उन्ही के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है।हलषष्ठी के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर,दीवार पर गोबर से हरछठ चित्र मनाया जाता है।
Balaram Jayanti 2024: भगवान श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता हलधर भगवान बलराम जी जयंती हलषष्ठी के रुप में मनाई जाती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हलछठ या हरछठ के रूप में मनाया जाता है।इसे पीन्नी छठ,खमर छठ,राधन छठ,चन्दन छठ,तिनछठी,तिन्नी छठ,ललही छठ,हलछठ,हरछठ के रूप में भी जाना जाता है। बलराम जी को शेषावतार भी कहते हैं। शेष अर्थात सिर्फ शेषनाग नहीं,अपितु जगत से पहले,और जगत प्रलय के बाद भी,जो सत्ता विद्यमान रहती है,प्रत्येक काल में जिस सत्ता का अस्तित्व रहता है,भगवान की वही शक्ति ‘शेष’ कहलाती है।
बल की अधिकता के कारण भी इनको बलराम कहा जाता है।माँ देवकी के गर्भ से इनको खींचकर,यानि कर्षण कर,माँ रोहणी के गर्भ में प्रतिस्थापित किया गया,इसलिए इनको ‘संकर्षण’ भी कहा जाता है।यह बलराम जी की सेवा का ही परिणाम था कि,स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने पूर्व जन्म में, इनकी सेवा की इच्छा प्रकट की थी।सेवा से ही प्रभु को अपना बनाया जा सकता है। जो बल गौ-ब्राह्मण को कष्ट देने में,परस्पर द्वेष में,दूसरों के अहित में,धर्म की उपेक्षा में,अन्याय में ,अत्याचार में ,दुष्कृत्यों में,और अधर्म में प्रयोग किया जाता है,वही अभिमान है।और जो बल गौ-ब्राह्मणों की सेवा में,परस्पर मैत्रीभाव में,समाज के उत्थान में,सत्संगति में,दीनजनों की सेवा में, परोपकार में,परमार्थ में,परहित में,और सतत धर्म में,प्रयोग किया जाता है,बस वही बल ही तो ‘बलराम’ है।
बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मुसल है।इसलिए उन्हें हलधर के नाम से भी पुकारा जाता है,और उन्ही के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है।हलषष्ठी के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर,दीवार पर गोबर से हरछठ चित्र मनाया जाता है।इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चन्द्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं।इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें।हलषष्ठी की पूजा में पसाई के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज चढ़ाया जाता है।इसमें भूने हुए गेहूँ, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं।इसके बाद हलषष्ठी माता की कथा सुनने का भी विधान है।
हलषष्ठी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी।उसका प्रसवकाल अत्यन्त निकट था।एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी,तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस ( दूध-दही ) बेचने में लगा हुआ था।उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे,और बेचने के लिए चल दी,किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई।वह एक झरबेरी की ओट में चली गई,और वहाँ एक बच्चे को जन्म दिया।वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गाँवों में दूध-दही बेचने चली गई।संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी।गाय-भैंस के मिश्रित दूध को,केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गाँव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था,उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था।अचानक उसके बैल भड़क उठे,और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ,फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया।उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए,और उसे वहीं छोड़कर चला गया।कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची।बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि,यह सब उसके पाप की सजा है।
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता,और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती।अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुँची,जहाँ उसने दूध-दही बेचा था।वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत,और उसके फलस्वरूप मिले दण्ड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया, और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो,यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि,वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है।तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा,और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।
( लेखक ज्योतिषाचार्य हैं ।)