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हापुड़ : महाभारत के बाद शुरू हुआ था कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन, पढ़े पूरी खबर
हापुड़: यूपी के जनपद हापुड़ में महाभारत काल से गंगा किनारे रेतीले मैदान में कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आयोजित होने वाला गंगा मेले की गिनती प्राचीनतम मेलों में होती है। पतित पावनी गंगा के किनारे खादर क्षेत्र के रेतीले मैदान में लगने वाले इस मेले का इतिहास भी लगभग पांच हजार वर्ष पुराना है।
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महाभारत के विनाशकारी युद्व के बाद धर्मराज युधिष्ठिर, अर्जुन तथा योगीराज कृष्ण के मन में युद्ध की विभिषिका तथा नरसंहार को देखकर भारी ग्लानि हुई थी। युद्ध में मारे गए कुटुंबियों, बंधुओं एवं निर्दोष व्यक्तियों की आत्माओं को शांति दिलाने पर गंभीर चर्चा की गई। भगवान श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में सभी विद्वानों ने सर्वसम्मति से विशेष पूजा करने का निर्णय लिया।
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खांडवी वन में भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिवबल्लभपुर नामक स्थान पर मुक्तेश्वर महादेव की पूजा की गई। पूजा के बाद यज्ञ किया गया। विद्वानों ने बताया कि पतित पावनी गंगा में स्नान करके पिंडदान करने से सभी संस्कार पूर्ण हो जाएंगे। इस निर्णय का सभी विद्वानों ने एक मत से समर्थन किया। तत्पश्चात शुभ मुहुर्त निकाला गया।
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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गौ पूजन करके गंगा में स्नान किया गया। एकादशी को गंगा के रेतीले मैदान में अपने सभी देवतुल्य पूर्वजों के उत्थान के लिए आवश्यक सभी कर्म कर पिंडदान किया गया। यही एकादशी देवोत्थान एकादशी (देव उठान) कहलाई। एकादशी से चतुर्दशी तक युद्व में मारे गए सभी योद्धाओं की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ किया गया।
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चतुदर्शी की संध्या को यज्ञ संपन्न होने के बाद स्वर्गीय आत्माओं को दीप दान कर श्रद्वांजलि अर्पित की गई। अगले दिन पूर्णिमा को स्नान करके पूजा अर्चना की गई। इस प्रकार एक सप्ताह तक यह धार्मिक कार्यक्रम संपन्न होने पर संतोष व्यक्त किया गया।
भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से कराया था दीपदान
कार्तिक माह में भैया दूज पर्व संपन्न होने पर भगवान श्रीकृष्ण पांडवों का गढ़ में गंगा किनारे लेकर आए थे। कई दिनों तक यहां पड़ाव डालकर श्रीकृष्ण ने पांडवों से विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराए थे।
प्राचीन गंगा मंदिर के कुल पुरोहित पंडित संतोष कौशिक एवं पंचायती मंदिर के पुरोहित सुरेंद्र तिवारी का कहना है कि महाभारत के युद्ध में जान गंवाने वालों की आत्मा की शांति के लिए चतुर्दशी की संध्या में दीपदान करने पर पांडवों के व्याकुल मन को शांति मिल गई।
इसके उपरांत कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में डुबकी लगवाकर श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर वापिस लौट गए थे। तभी से प्रतिवर्ष गढ़ के खादर क्षेत्र में कार्तिक मास की पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता रहा है।