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Hindu Nav Varsh 2025 : 30 मार्च से शुरू होगा नया साल, जानें किसे मिलेगा धन, सफलता, किसे रहना होगा सावधान!"किसकी चमकेगी किस्मत

Hindu Nav Varsh 2025 : 30 मार्च से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2082 की शुरुआत हो रही है। इस साल के संवत का नाम, इसके राजा, मंत्री कौन है। इन सबसे जुड़ी जानकारी मिलेगी।

Suman  Mishra
Published on: 28 March 2025 10:35 AM IST
Hindu Nav Varsh 2025 : 30 मार्च से शुरू होगा नया साल, जानें किसे मिलेगा धन, सफलता,  किसे रहना होगा सावधान!किसकी चमकेगी किस्मत
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Hindu Nav Varsh 2025 : विक्रम संवत 2082: हिंदू नववर्ष का शुभारंभ और प्रभाव भारत में हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत के रूप में मनाया जाता है, जो इस वर्ष 30 मार्च 2025, रविवार से प्रारंभ होगा।हिंदू नववर्ष का आरंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है। संवत्सर का मतलब 12 महीने की काल अवधि है। शास्त्रों के अनुसार है। इस बार नव संवत्सर के राजा सूर्य होंगे, जबकि मंत्री सूर्य रहेंगे।विक्रम संवत 2082 के राजा और मंत्री दोनों ही सूर्य देव हैं। यह समय ऋतु परिवर्तन और प्रकृति में बदलाव का सूचक होता है, जब पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं और चारों ओर सृजन का वातावरण बनता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था, और मां दुर्गा की उपासना हेतु चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस वर्ष मां दुर्गा हाथी की सवारी करते हुए धरती पर आएंगी और भैंस पर सवार होकर वापस जाएंगी।

विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त

शक सम्वत - 1947, विश्वावसु

नव वर्ष में ग्रहों की विशेष स्थिति और योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस वर्ष विक्रम संवत के पहले दो सप्ताह में कई विशेष योग बन रहे हैं, जैसे कि:

शश योग

पंचग्रही योग

गजकेसरी योग

अमृत सिद्धि योग

इसके अलावा, 30 मार्च 2025 को बृहस्पति मीन राशि में रहेंगे, और 29 मार्च 2025 को शनि कुंभ राशि से निकलकर मीन में प्रवेश करेंगे। इस समय सूर्य, राहु, बुध और शुक्र पहले से ही मीन राशि में होंगे, जिससे एक दुर्लभ योग बनेगा। इस ग्रह संयोग का प्रभाव विभिन्न राशियों पर पड़ेगा, जिसका शुभ और अशुभ प्रभाव देखा जा सकता है।

शनि गोचर और साढ़ेसाती का प्रभाव

29 मार्च 2025 को शनि के राशि परिवर्तन से कुछ राशियों को साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत मिलेगी, जबकि कुछ राशियों पर इसका नया प्रभाव पड़ेगा।

मकर राशि: साढ़ेसाती समाप्त होगी।

कर्क और वृश्चिक राशि: ढैय्या समाप्त होगी।नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा:

धनु राशि: ढैय्या शुरू होगी।

मेष राशि: साढ़ेसाती का आरंभ।

कुंभ राशि: अंतिम चरण की साढ़ेसाती।

मीन राशि: मध्य चरण की साढ़ेसाती।

ग्रह गोचर का 12 राशियों पर प्रभाव

वृषभ, कन्या, मिथुन और तुला राशि

करियर में उन्नति होगी।

विवाह संबंधी समस्याएं हल होंगी।

विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता मिलेगी।

नौकरी में बदलाव के योग हैं।

रुके हुए कार्य पूरे होंगे।

कन्या राशि

सेहत का ध्यान रखना आवश्यक है।

पारिवारिक जीवन में सुधार आएगा।

आर्थिक स्थिति में मजबूती आएगी।

सिंह राशि

हड्डी, किडनी और पेशाब संबंधी समस्याओं की संभावना।

पारिवारिक तनाव बढ़ सकता है।

स्थान परिवर्तन के योग बन रहे हैं।

धनु राशि

चोट लगने की संभावना है, सावधानी रखें।

व्यापार में जोखिम न लें।

विवाह से पहले सोच-विचार करें।

संपत्ति खरीदने से पहले अच्छे से जांच-पड़ताल करें।

मकर राशि

मानसिक तनाव समाप्त होगा।

आर्थिक समस्याएं दूर होंगी।

करियर में उन्नति होगी।

जोश में निर्णय लेने से बचें।

कुंभ राशि

साढ़ेसाती का अंतिम चरण शुरू होगा।

स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें।

नौकरी में बदलाव हानिकारक हो सकता है।

व्यापार में जोखिम उठाना सही नहीं रहेगा।

वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है।

मीन राशि

खान-पान का ध्यान रखें, स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

धार्मिक और आध्यात्मिक रुचि बढ़ेगी।

मेहनत करने से पीछे न हटें।

निर्धनों की मदद करने से लाभ मिलेगा।

मई 2025 से सितंबर 2025 के बीच रुके हुए कार्य पूरे होंगे।

विक्रम संवत 2082 का आरंभ 30 मार्च 2025 को होगा, जो विभिन्न राशियों के लिए नए अवसर और चुनौतियां लेकर आएगा। ग्रहों की स्थिति के अनुसार, कुछ राशियों को करियर, आर्थिक स्थिति और पारिवारिक जीवन में लाभ मिलेगा, जबकि कुछ को स्वास्थ्य और वित्तीय मामलों में सतर्क रहने की आवश्यकता होगी। इस दौरान पूजा-पाठ, दान और शुभ कर्म करने से नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

विक्रम संवत कैसे हुई शुरूआत

विक्रम संवत (vikram-samvat) से पूर्व 6676 ईसवी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है। सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलियुग संवत का। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी। विक्रम सवंत इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई। इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे हिंदू धर्म के अनुयायी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर यानि नववर्ष मनाते हैं। माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था।

12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए। मार्च माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है। 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है, उस वक्त दिन और रात बराबर होते हैं।

जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह की शुरुआत भी हो जाती है। सूर्य का भ्रमण इस वक्त किसी अन्य राशि में हो सकता है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है। सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है।

Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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