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90 साल बाद ऐसा संयोग: जानिए क्या कुछ कह रहा विक्रम सवंत 2078
मेष राशि में नया चंद्रमा उदय हो जाएगा। राजा, मंत्री और वर्षा इन तीनों का अधिकार मंगल के पास हैं।
लखनऊ: नवरात्रि ( Navratri) के पहले दिन से ही हिंदू नववर्ष ( Hindu New Year).. की शुरुआत हो गई। हिंदू नववर्ष का आरंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। संवत्सर का मतलब 12 महीने की काल अवधि है। शास्त्रों के अनुसार इस बार विक्रम संवत 2078 का नाम आनंद होगा। इसके प्रभाव से लोगों के जीवन में खुशहाली आएगी। कोरोना महामारी का प्रकोप कम होगा।
वैसे भी मार्च माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है। 21 मार्च ( March) को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है, उस वक्त दिन और रात बराबर होते हैं।
शुरुआत से पूरे साल की स्थिति
आनंदी संवत्सर ( Anandi Samvatsar )के स्वामी मंगल है। इनके आगमन से लोगों के बीच खुशियां आएगी। इस संवत्सर के राजा मंगल है। नया विक्रम संवत 2078 वृषभ लग्न और आश्विन नक्षत्र में शुरू हुआ है। इस बार अमावस्या और नव संवत्सर के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों मेष राशि में ठीक एक ही अंश पर रहेंगे। यानी मेष राशि में नया चंद्रमा उदय हो जाएगा। वृषभ राशि में मंगल और राहु दोनों ही मौजूद रहेंगे। राजा, मंत्री और वर्षा इन तीनों का अधिकार मंगल के पास हैं।
ऐसे अपनाया गया विक्रम संवत
विक्रम संवत (vikram-samvat) से पूर्व 6676 ईसवी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है। सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलियुग संवत का। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी।
विक्रम सवंत इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई। इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे हिंदू धर्म के अनुयायी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर यानि नववर्ष मनाते हैं। माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था। तकरीबन 90 वर्ष बाद ऐसा संयोग बन रहा है, जब संवत 2078 राक्षस नाम से जाना जाएगा।
12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
मार्च माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है। 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है, उस वक्त दिन और रात बराबर होते हैं।
ऐसे होती है इस सवंत की गणना
मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह की शुरुआत भी हो जाती है। सूर्य का भ्रमण इस वक्त किसी अन्य राशि में हो सकता है।
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।
हर क्षेत्र में शुरूआत
पूरा देश चैत्र माह से ही नववर्ष की शुरुआत मानता है और इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।
इतने शुभ काम
ब्रह्म पुराण अनुसार इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन से नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन को भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
रात में नहीं दिन में ऐसे करें शुरुआत
नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है।ब्राह्मण, कन्या, गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराया जाता है। फिर सभी एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। एक दूसरे को तिलक लगाते हैं। मिठाइयाँ बाँटते हैं। नए संकल्प लिए जाते हैं।
शुभ- अशुभ प्रभाव
विक्रम संवत 2078 में बहुत ज्यादा गर्मी पडऩे वाली है। बारिश थोड़ी कम होगी। इस संवत्सर का राजा और मंत्री दोनों का पदभार मंगल पर होगा। मंगल को एक क्रूर और उग्र ग्रह माना गया है, इसलिए माना जा रहा है कि यह वर्ष थोड़ा उठापटक भरा रह सकता है। इस वर्ष दुर्घटना, संक्रामक रोग और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने की संभावना है। इस संवत्सर के अशुभ प्रभाव होने के साथ ही शुभ प्रभाव भी होंगे। इस बार वित्त का अधिकार बृहस्पति के पास होगा, इसलिए लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। लेकिन इस साल ग्रहो और नक्षत्रों के परिवर्तन से धीरे धीरे कोरोना की दूसरी लहर का भी असर खत्म होने लगेगा, लेकिन उससे पहले थोड़ा सयंम और धैर्य रखना पड़ेगा। ।