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Holi Kyu Manai Jati Hai: होली क्यों मनाई जाती है, जानिए इससे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाक्रम

Holi Kyu Manai Jati Hai: होली का त्योहार आने वाला है, जानते हैं यह त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसका इतिहास क्या है....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 25 March 2024 7:00 AM IST (Updated on: 25 March 2024 6:55 AM IST)
Holi Kyu Manai Jati Hai: होली क्यों मनाई जाती है, जानिए इससे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाक्रम
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Holi Kyu Manai Jati Hai: होली, भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो खुशियों और रंगों का त्योहार है। यह 'रंग महोत्सव' के रूप में प्रसिद्ध है, जो लोगों के जीवन को रंगीन बनाता है और एकता और प्यार की भावना को उत्तेजित करता है। इस त्योहार में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश होता है, जो लोगों को एक-दूसरे के प्रति सहयोग और समर्थन की दिशा में प्रेरित करता है। होली के दिन लोग अपने मनोविशेष को रंगों के साथ व्यक्त करते हैं और साथ ही वैष्णव समुदाय में इसे 'फागुन पूर्णिमा' के रूप में भी जाना जाता है।

होली क्यों मनाई जाती है...

भारत में होली का त्योहार विविधता और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस पर्व की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं, जो सामूहिक रूप से होलिका दहन के उत्सव के साथ शुरू होती हैं। लोग लकड़ी, गोबर के उपले, और ब्राजील के बाली बनाकर जगह-जगह इकट्ठा हो रहे हैं, तैयारी करते हैं और अगले दिन के रंग-बिरंगे उत्सव के लिए उत्साहित हो रहे हैं। इसके साथ ही, घरों में महिलाएं पकवान और मिठाइयों की तैयारी में लगी हैं, जो इस पर्व का महत्व और आनंद बढ़ाते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। कहते हैं कि यह सबसे प्राचीन उत्सव में से एक है। हर काल में इस उत्सव की परंपरा और रंग बदलते रहे हैं। आओ जानते हैं इसका इतिहास।

होली से जुड़ी प्रहलाद कथा : होली के पर्व से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्‍लाद की। प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप में अपनी बहन होलिका की गोद में प्रहलाद को बैठाकर उसे अग्नि में जलाकर मारने का प्रयास किया था। होलिका को ब्रह्मा द्वार यह वरदान था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी परंतु वह जल गई और प्रहलाद श्रीहरि विष्णु की कृपा से बच गया। इसी घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है। कहते हैं कि भक्त प्रहलाद सतयुग में हुए थे।

होली से जुड़ी कामदेव कथा : सतयुग में ही इसी दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद रति तो श्रीकृष्ण के यहां कामदेव के जन्म होने का वरदान दिया था। इसीलिए होली को 'वसंत महोत्सव' या 'काम महोत्सव' भी कहते हैं।प्राचीन काल में तारकासुर नाम का एक राक्षस था जिसके अत्याचारों से देव काफी परेशान थे। एक वरदान के अनुसार तारकासुर का अंत भगवान शिव और पार्वती की संतान ही कर सकती थी। लेकिन, भगवान शिव तो अनंत तपस्या में लीन थे और उनकी तपस्या खत्म होने तक उनका पार्वती से विवाह होना और पुत्र की उत्पत्ति मुमकिन नहीं थी. ऐसे में कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग की और नाराज शिव भगवान ने कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति के लिए भगवान शिव से गुहार लगाई और उन्हें पूरी बात समझाई।रति (Rati) की गुहार सुनकर शिव भगवान ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया। ये फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था और इसी के बाद से इस दिन को होली के रूप में मनाया जाने लगा।माना जाता है बाद में शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर देवों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई।

होली से जुड़ी राजा पृथु कथा : यह भी कहते हैं कि इसी दिन राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था।पौराणिक काल में माना जाता है कि पृथु नाम के एक राजा हुआ करते थे. उनके राज्य में ढुंढी नाम की राक्षसी हुआ करती थी जो बच्चों को मार देती थी। ढुंढी को मारना लगभग असंभव था क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसे किसी अस्त्र, शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था। उसी समय राजा पृथु के राजपुरोहितों ने राक्षसी को मारने का एक अनोखा उपाय बताया. उपाय के अनुसार बच्चों ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ियां एकत्रित कर उन्हें प्रज्वलित किया। राजपुरोहितों के मुताबिक बच्चों को देखकर राक्षसी आएगी और बच्चों के हंसने, शोर, नगाड़ों और हुडदंग की आवाजें उसके लिए काल साबित होंगी। ऐसा ही हुआ भी, होली के दिन इस योजना के अनुसार पृथु के राज्य को राक्षसी ढुंढी से मुक्ति मिली. तभी से फागुन पूर्णिमा को ये रस्में निभाई जाती हैं।

होली से जुड़ी श्रीकृष्‍ण के प्रारंभ किया फाग उत्सव : त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।

होली से जुड़ें प्राचीन साक्ष्य

प्राचीनकाल में होली को होलाका के नाम से जाना जाता था और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। इस पर्व में होलका नामक अन्य से हवन करने के बाद उसका प्रसाद लेने की परंपरा रही है। होलका अर्थात खेत में पड़ा हुआ वह अन्य जो आधा कच्चा और आधा पका हुआ होता है। संभवत: इसलिए इसका नाम होलिका उत्सव रखा गया होगा। प्राचीन काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है। इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह त्योहार वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा है।फागुन शुक्ल पूर्णिमा को आर्य लोग जौ की बालियों की आहुति यज्ञ में देकर अग्निहोत्र का आरंभ करते हैं, कर्मकांड में इसे ‘यवग्रयण’यज्ञ का नाम दिया गया है। बसंत में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाता है इसलिए होली के पर्व को ‘गवंतरांभ’भी कहा गया है। होली का आगमन इस बात का सूचक है कि अब चारों तरफ वसंत ऋतु का सुवास फैलने वाला है।

जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र (लगभग 400-200 ईसा पूर्व) के अनुसार होली का प्रारंभिक शब्द रूप 'होलाका' था। जैमिनी का कथन है कि इसे सभी आर्यों द्वारा संपादित किया जाना चाहिए। ज्ञात रूप से यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता रहा है।

होली से जुड़ी मंदिरों में अंगित होली : प्राचीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर होली उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। 16वीं शताब्दी के अहमदनगर के चित्रों और मेवाड़ के चित्रों में भी होली उत्सव का चित्रण मिलता है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने के सबूत मिलते हैं।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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