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जानिए क्यों मनाई जाती है बैसाखी, क्या है इस त्योहार का महत्व
हर साल बैसाखी 13 अप्रैल को मनाया जाता है। यह पावन पर्व सिख समुदाय के लिए सबसे खास होता है। यही कारण..
नई दिल्लीः हर साल बैसाखी 13 अप्रैल को मनाया जाता है। यह पावन पर्व सिख समुदाय के लिए सबसे खास होता है। यही कारण है कि देश विदेश में रहने वाले सिख इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन किसान अपने फसलों की कटाई करता है और शाम को सभी सिख सुमदाया के लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं। आग जलाकर उसके चारो ओर फेरे लेते हैं।
बता दें कि इस दिन से हिंदू नव वर्ष का दिन आरंभ होता है। सिख समुदाय इस पर्व के दिन गुरु गोविंद सिंह के योद्धा खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक है।
इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसे मेष संक्रान्ति भी कहा जाता है। इस दिन गुरुद्वारा में लंगर का भव्य आयोजन किया जाता है। सिख इस दिन कीर्तन जुलूस निकालते हैं।
क्या आप जानते हैं इस दिन गुरु गोविंद सिंह ने किया था स्थापनाः
13 अप्रैल 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापाना किया था। इसलिए यह दिन सिख लोगों के लिए सबसे खास होता है।
बैसाखी का महत्वः
इस दिन धर्म की रक्षा करना और समाज की भलाई करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की गई थी। यह मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इतना ही नहीं बैसाखी बंगाली कैलेंडर का पहला दिन माना गया है इसलिए बंगाल में भी इस दिन को शुभ माना जाता।
सिख समुदाय एक दूसरे को देते है बधाईयांः
यह दिन सिख समुदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन सभी सिख लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं। आग के चारो ओर घूमते हैं। और नई फल की खुशियां मनाते हैं। इस दिन पंजाब में भांगड़ा और गिद्द किया जाता है।
इस दिन सिख लोग करते है यह कामः
आपको बता दें कि इस दिन सभी लोग गुरु ग्रंथ साहिब को दूध और जल से स्नान करते हैं और तख्त पर बैठाकर पंचबानी गाते हैं। गुरु को कड़ा प्रसाद भोग लगाया जाता है। प्रसाद लेने के बाद लोग गुरु के लंगर में शामिल होते हैं। दिनभर गुरु गोविंदसिंह के लिए शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं।
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