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Honduras Hanuman: दक्षिण अमेरिका के होंडुरास में प्राप्त हनुमान जी की मूर्ति का महात्म्य

Honduras Hanuman: वह कुछ समय मकरध्वज के पास आज के दक्षिण अमेरिका के होंडूरास (पूर्व माया सभ्यता ) में भी रहे। कुछ समय तक अफ्रीका के कुछ जगहों पर भी उनका निवास हुआ। त्रेता युग के समापन के बाद हनुमान जी किम्पुरुष वर्ष में निवास करने लगे।

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Published on: 4 May 2023 12:55 AM IST
Honduras Hanuman: दक्षिण अमेरिका के होंडुरास में प्राप्त हनुमान जी की मूर्ति का महात्म्य
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Honduras Hanuman (Pic: Social Media)

Honduras Hanuman: हनुमान जी वानरराज सुग्रीव के साथ पहले किष्किंधा रहते थे। पर प्रभु राम के साथ बाद में अयोध्या आ गए। वह कुछ समय मकरध्वज के पास आज के दक्षिण अमेरिका के होंडूरास (पूर्व माया सभ्यता ) में भी रहे। कुछ समय तक अफ्रीका के कुछ जगहों पर भी उनका निवास हुआ। त्रेता युग के समापन के बाद हनुमान जी किम्पुरुष वर्ष में निवास करने लगे। किम्पुरुष वर्ष हिमालय के उत्तर में हेमकीता के निकट का क्षेत्र है जिसका वर्णन पौराणिक आख्यायनों किया गया है। ऐसा माना जाता है यहाँ के लोगों की आयु सामान्यत: दस हजार वर्ष की होती है। यहाँ यति, नरसिंघ, रीछ, वानर गण के लोग रहते हैं। एशिया के अतिरिक्त हनुमान जी की आज भी लैटिन अमेरिका अफ्रीका के देशों में उपासना होती है। उनकी मूर्तियां जो हजारों बरस पुरानी हैं, प्रायः पुरानी सभ्यता वाली जगहों पर मिलती हैं।

हनुमान जी व्याकरण (शब्द शास्त्र) के आचार्य हैं, क्योंकि बातचीत के समय उनके मुख से कोई त्रुटि नहीं होती है। सुर, नर, नाग, गन्धर्व से भी बढ़कर हनुमान जी ने अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण किया हुआ है। कर्नाटक में एक जगह हनुमान जी की पत्नी के साथ पूजा होती है। किंतु वह विवाह प्रतीकात्मक था जो उन्होंने सूर्य की पुत्री के साथ किया था।

हनुमान जी शैव और वैष्णव के मध्य सेतु हैं। वह एकादश रूद्र हैं। जो विष्णु अवतार भगवान राम के अनन्य भक्त हैं। हनुमान जी की पूजा के बिना भगवान श्रीराम की पूजा पूर्ण फलदाई नहीं होती है। हनुमान जी तेज एवं बल में श्रीराम और लक्ष्मण के समान है। हनुमान जी ऐसा कोई पराक्रम प्रकट नहीं करते हैं, जिससे प्रभु श्रीराम के यश - कीर्ति का क्षय हो। हनुमान जी ऐसे एकमात्र राम के सेवक हैं जिन्हें माता सीता ने अपना पुत्र कहा था। भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय हनुमान जी चार समुद्र और 500 नदियों से जल लाए थे। यह उनकी असाधारण शक्ति का द्योतक है। हनुमान जी की कृपा से समस्त व्याधियों से छुटकारा प्राप्त होता है।

हनुमान जी बुद्धि, विवेक, धैर्य और विनम्रता के स्रोत हैं। छोटे बालक से लेकर वयोवृद्ध के हृदय में एक समान भाव के साथ विद्यमान बजरंग बली हर उस स्थान पर रहते हैं जहाँ राम कथा का पारायण होता है। राम कथा कहने से पहले बजरंगी का आह्वान किया जाता है। उनके लिए अलग चौकी रखी जाती है। जिस पर बैठ कर वह कथा सुनते हैं। हर सनातनी के कंठ और घर में हनुमान चालीसा स्थापित है। हर भय से अभय होने का राम बाण उपाय हनुमान चालीसा का पाठ है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन माता अंजनी की गोद में हनुमान जी बालरूप में प्रकट हुए थे।

हनुमान जी की पूंछ

हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। रावण उनका कुछ नहीं कर सकता है। वह सोचते-सोचते परेशान हो जाता है कि आखिर उस हनुमान में इतनी शक्ति आई कहां से।परेशान हो कर वह महल में ही स्थित शिव मंदिर में जाकर शिवजी की प्रार्थना आरम्भ करता है। शिव प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं। रावण अभिभूत हो कर उनके चरणों में गिर पड़ता है।

कहो दशानन कैसे हो ? आप अंतर्यामी हैं महादेव। सब कुछ जानते हैं प्रभु। एक अकेले बंदर ने मेरी लंका को और मेरे दर्प को भी जला कर राख कर दिया। मैं जानना चाहता हूं कि यह बंदर जिसका नाम हनुमान है आखिर कौन है ? प्रभु उसकी पूंछ तो और भी ज्यादा शक्तिशाली थी। किस तरह सहजता से मेरी लंका को जला दिया। मुझे बताइए कि यह हनुमान कौन है?

शिव जी मुस्कुराते हुए रावण की बात सुनते रहते हैं। और फिर बताते हैं कि रावण यह हनुमान और कोई नहीं मेरा ही रूद्र अवतार है। विष्णु ने जब यह निश्चय किया कि वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे और माता लक्ष्मी भी साथ ही अवतरित होंगी। तो मेरी इच्छा हुई कि मैं भी उनकी लीलाओं का साक्षी बनूं और जब मैंने अपना यह निश्चय पार्वती को बताया तो वह हठ कर बैठी कि मैं भी साथ ही रहूंगी। लेकिन यह समझ नहीं आया कि उसे इस लीला में किस तरह भागीदार बनाया जाए।

तब सभी देवताओं ने मिलकर मुझे यह मार्ग बताया। आप तो बंदर बन जाइये और शक्ति स्वरूपा पार्वती देवी आपकी पूंछ के रूप में आपके साथ रहें, तभी आप दोनों साथ रह सकते हैं। उसी अनुरूप मैंने हनुमान के रूप में जन्म लेकर राम जी की सेवा का व्रत रख लिया। शक्ति रूपा पार्वती ने पूंछ के रूप में और उसी सेवा के फल स्वरूप तुम्हारी लंका का दहन किया।

अब सुनो रावण! तुम्हारे उद्धार का समय आ गया है। अतः श्री राम के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा। तुम युद्ध के लिए सबसे अंत में प्रस्तुत होना। जिससे कि तुम्हारा समस्त राक्षस परिवार भगवान श्री राम के हाथों से मोक्ष को प्राप्त करें और तुम सभी का उद्धार हो जाए। रावण को सारी परिस्थिति का ज्ञान होता है। उस अनुरूप वह युद्ध की तैयारी करता है और अपने पूरे परिवार को राम जी के समक्ष युद्ध के लिए पहले भेजता है। सबसे अंत में स्वयं मोक्ष को प्राप्त होता है।

(कंचन सिंह)

(लेखिका ज्योतिषाचार्य हैं।)



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