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Ramayana: क्या रामायण का उत्तर कांड प्रक्षिप्त है

Ramayana: क्या राम ने सीता का त्याग किया था? शुद्र तपस्वी शम्बुक वध क्यों?? प्रभु श्री राम के सन्दर्भ में कुछ भ्रांतियां अर्थात गलत बाते फैलाई गयी हैं । उनका तार्किक निवारण। भ्रान्ति: क्या श्रीराम जी शूद्र विरोधी थे? क्या उन्होने शंबूक का वध किया था ? क्या उन्होने गर्भवती सीता को छोड़ दिया था? क्या उनका या उनके भाइयों का लवकुश से युद्ध हुआ था? क्या सीता जी धरती मे समा गई थी?

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Published on: 4 Dec 2023 7:11 AM IST (Updated on: 4 Dec 2023 7:11 AM IST)
Is Uttar Kand of Ramayana projected
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क्या रामायण का उत्तर कांड प्रक्षिप्त है: Photo- Social Media

Ramayana: क्या राम ने सीता का त्याग किया था? शुद्र तपस्वी शम्बुक वध क्यों?? प्रभु श्री राम के सन्दर्भ में कुछ भ्रांतियां अर्थात गलत बाते फैलाई गयी हैं । उनका तार्किक निवारण। भ्रान्ति: क्या श्रीराम जी शूद्र विरोधी थे? क्या उन्होने शंबूक का वध किया था ? क्या उन्होने गर्भवती सीता को छोड़ दिया था? क्या उनका या उनके भाइयों का लवकुश से युद्ध हुआ था? क्या सीता जी धरती मे समा गई थी?

निवारण: आजकल 2 पुस्तकें रामायण के नाम से जानी जाती है……..

1.वाल्मीकि रामायण

2.तुलसीदास जी की रामचरित मानस। इसमें से वाल्मीकि रामायण श्रीराम जी के समय मे लिखी गई है। आजकल प्राप्त वाल्मीकि रामायण मे 7 काण्ड (Chapter) हैं। अंतिम काण्ड उत्तर काण्ड है।

तपस्वी शंबूक का वध, लवकुश से युद्ध तथा गर्भवती माता सीता जी का त्याग दोनों इसी काण्ड मे आते है। परंतु सच्चाई यह है कि महर्षि वाल्मीकि ने जो रामायण लिखी थी उसमे 6 काण्ड ही थे। सातवा उत्तर काण्ड बाद मे (17 वी -18 वी शताब्दी मे ) मिलाया गया है। क्योकि उत्तर काण्ड महर्षि वाल्मीकि जी की रचना नहीं है इसलिए श्रीराम जी को तपस्वी शम्बूक का हत्यारा नहीं कहा जा सकता। ऐसा भ्रम फैलाया गया की श्री राम शम्बूक को पुष्पक विमान से ढूंढ कर उसका वध करते हैं । जबकि

श्री राम का पुष्पक विमान लेकर शम्बूक को खोजना एक और असत्य कथन हैं क्यूंकि पुष्पक विमान तो श्री राम जी ने अयोध्या वापिस आते ही उसके असली स्वामी कुबेर को लौटा दिया था। (सन्दर्भ- युद्ध कांड 127/62)

प्रभु श्री राम को गर्भवती स्त्री माता सीता जी के त्याग का अपराधी भी नहीं कहा जा सकता। अतः सनातन धर्म के आदर्श मर्यादा पुरूषोंत्तम श्रीराम जी को बदनाम करने के लिए किसी दुष्ट ने ये उत्तर काण्ड बाद में मिलाया है।

इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं

1- “THE ILIAD OF THE EAST” “दी इलियड ऑफ दी ईस्ट” रामायण का इंगलिश मे संक्षिप्त अनुवाद है जो FREDERIKA RICHARDSON ने किया था। इसे MACMILLAN AND CO ने 1870 मे प्रकाशित किया था। इसमे केवल पहले 6 काण्डों का ही विवरण है। यदि इस अनुवादक के सामने उत्तरकाण्ड होता तो क्या वह उत्तरकाण्ड का अनुवाद न करता।

2 RALPH T. H. GRIFFITH ने 1874 में रामायण का इंगलिश मे अनुवाद किया है। इसे लंदन मे TRUBNER AND CO ने तथा भारत मे बनारस मे Lazarus And Co ने छापा था। इसमे भी पहले 6 भागों का अनुवाद है। युद्धकाण्ड के अंत मे अनुवादक उत्तरकांड के विषय मे लिखता हैं –

The Ramayan ends epically complete, with the triumphant return of Rama and his rescued queen to Ayodhya and his consecration and coronation in the capital of his forefathers. Even if the story were not complete, the conclusion of the last canto of the sixth Book evidently the work of a later hand than Valmiki’s, which speaks of Rama’s glorious and happy reign and promises blessings to those who read and hear the Ramayan, would be sufficient to show that, when these verses were added, the poem was considered to be finished.

अर्थात एक महाकाव्य के रूप मे रामयण विजयी राम की अपनी रानी को बचाने और अपने पूर्वजो की राजधानी मे राज्याभिषेक के साथ पूरी हो जाती है। छठे अध्याय के अंतिम खंड मे वाल्मीकि राम के गौरवशाली और खुशहाल शासन की बात करते हैं और उनके लिए आशीर्वचन कहते हैं जो रामायण को पढ़ते और सुनते हैं। इससे यह निश्चित हो जाता है कि महाकाव्य यहाँ समाप्त हो जाता है। उत्तरकाण्ड बाद की रचना है जो किसी दूसरे द्वारा लिखी गई है।

3- वाल्मीकि रामायण की संस्कृत में 3 टीका मिलती है। उसमे से सबसे मुख्य तथा पुरानी टीका श्री गोविन्दराज जी की है। गोविन्दराज जी ने अपना व् अपने गुरु का परिचय बालकाण्ड में रामयण के आरम्भ में तथा युद्ध काण्ड के अंत में दिया है। बीच में कहीं पर ही अपना परिचय नहीं दिया है। यदि गोविन्दराज जी के सामने उत्तर काण्ड होता तो वह अपना परिचय युद्ध काण्ड में न देकर उत्तर काण्ड में देते।

4- सन 1900 के आसपास तक जो भी गोविन्दराज की टीका सहित वाल्मीकि रामायण छपी है उनमे उत्तरकाण्ड की टीका नहीं है। परन्तु 1930 के संस्करण में गोविन्दराज की उत्तर काण्ड पर टीका मिलती है। उसके उत्तर काण्ड पर जो टीका दी गई है वह पिछले 6 काण्डों की टीका से बिलकुल अलग है और उत्तर काण्ड को रामायण का हिस्सा दिखाने के लिए बनाई है.य।

5- भारत में वाल्मीकि रामायण को आधार बना कर कई प्रादेशिक भाषाओं में रामायण लिखी गई है। जैसे कम्ब रामायण (तमिल में), रंगनाथ तेलुगु (तेलुगु में), तोरवे रामायण (कन्नड़ में) तथा तुलसीदास जी की रामचरित मानस (अवधि में)। अब हम क्रम से इन पर विचार करते हैं।

[1]- कम्ब रामायण – इसका रचना काल लगभग बारहवी शताब्दी है। संस्कृत से भिन्न उपलब्ध भाषाओ में यह सबसे पुरानी रामायण है। इसके लेखक महाकवि कम्बन है। इसकी मूल भाषा तमिल है। अब तक इसके हिन्दी में (पहला अनुवाद 1962में बिहार राजभाषा परिषद् ) कई अनुवाद हो चुके है। इसमें भी बालकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक 6 ही काण्ड है। यह भी भगवान् श्रीराम जी के राज्य अभिषेक व श्री राम जी द्वारा दरबार में सभी के लिए प्रशंसा वचन के साथ पूरी होती है। यह बहुत अधिक वाल्मीकि रामायण से मिलती है। यदि महाकवि कम्बन जी के सामने वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह इसका वर्णन जरुर करते। परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

[2] रंगनाथ रामायण – इसका रचना काल लगभग 1380 इस्वी है। इसकी भाषा तेलुगु है परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद (1961 में बिहार राजभाषा परिषद द्वारा) चुका है। यह रामायण श्रीराम जी के राज्य अभिषेक व दरबार के दृश्य के साथ पूरी हो जाती है । इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड है। यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

[3]- तोरवे रामायण – इसका रचना काल लगभग 1500 इस्वी है। इसकी मूल भाषा कन्नड़ है । परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद चुका है। इसके लेखक तोरवे नरहरी जी है। यह रामायण श्रीराम जी के राज्य अभिषेक, सुग्रीव आदि को विदा करना, रामराज्य में सुख शान्ति, दरबार के दृश्य तथा रामायण पढने के लाभ के वर्णन के साथ पूरी हो जाती है। इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड है। यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते । परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

( साभार के. डी. पाठक।)

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