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Jagannath Puri Rath Yatra 2021 : भगवान जगन्नाथ 10 दिन तक मौसी के घर में करते हैं विश्राम, जानिए रथ यात्रा के महत्व और धार्मिक कथा
Jagannath Puri Rath Yatra 2021 : आषाढ़ शुक्लपक्ष की द्वितीया को निकाली जाने वाली रथ यात्रा में शामिल होने से सौ यज्ञों के बराबर फल मिलता है और व्यक्ति समृद्धशाली बनता है।इस बार कोरोना के कारण रथ यात्रा में शामिल होने पर मनाही है।
Jagannath Puri Rath Yatra 2021: कोरोना की वजह से पिछले साल की तरह इस साल भी जगन्नाथपुरी रथयात्रा पर हाईकोर्ट ने लगाम लगा दी है। इस बार भी महामारी और तीसरी लहर को देखते हुए 12 जुलाई की रथयात्रा बिना भक्तों के निकाली जाएगी।आषाढ़ शुक्लपक्ष की द्वितीया को निकाली जाने वाली रथ यात्रा में शामिल होने से सौ यज्ञों के बराबर फल मिलता है और व्यक्ति समृद्धशाली बनता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?
हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। हिंदू धर्म में जगन्नाथ यात्रा का बहुत महत्व है। भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ जगन्नाथ यात्रा पुरी में आयोजित की जाती है। इस साल यह रथयात्रा जुलाई 12 (सोमवार) से शुरू होगी और देवशयनी एकादशी के दिन समाप्त होगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को इस यात्रा के जरिए भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। यह विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा है जो देश-दुनिया में जाना जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा कब होगी?
12 जुलाई को रथ यात्रा के समय अश्लेषा नक्षत्र और रवि योग रहेगा। जो यात्रा को सुखद बनाएंगे। इस दिन शुभ काल और तिथि....
द्वितीया तिथि का आरंभ- 11 जुलाई को 07.49 से
द्वितीया तिथि का समापन-12 जुलाई को 08.21 तक
अभिजीत मुहूर्त - 12:05 PM – 12:59 PM
अमृत काल - 01:35 AM – 03:14 AM
ब्रह्म मुहूर्त - 04:16 AM – 05:04 AM
जगन्नाथ रथ यात्रा कहाँ मनाया जाता है?
भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर उड़ीसा में हैं। जहां भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ विराजमान है। हर साल मंदिर के गर्भगृह से निकलकर भगवान भक्तों से मिलने आते हैं और समय उत्सव के रूप में उड़ीसा में जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालू शामिल होते हैं। लेकिन कोरोना महामारी की नजर लगने के कारण इस बार भी रथयात्रा में सीमित संख्या में लोग शामिल होंगे। वैसे तो पूरी की जगन्नाथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलावा झारखंड और गुजरात में भी रथयात्रा आषाढ़ की शुक्लपक्ष की द्वीतिया तिथि को निकाली जाती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की कथा
धार्मिक मान्यता नार जगन्नाथ रथयात्रा देवी सुभद्रा का अपने मायके के प्रेम के कारण मनाया जाता है, कहते हैं जब भी वह अपने मायके आती थी तब रथ में बैठ कर पूरे राज्य की यात्रा करती थी। यह यात्रा वो कृष्ण और बलराम के साथ करती थी,जो पूरी के भ्रमण के बाद गुडिंचा मंदिर पहुंचती है। मान्यतानुसार भगवान जगन्नाथ यहां 10 दिनों तक मौसी के घर पर रहते हैं। जिसे मौसीबाड़ी कहा जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ को खोजते हुए इस दौरान लक्ष्मी जी भी आती है, लेकिन उन्हें न पाकर रुष्ट होकर लौट जाती है। जब 10 दिनों तक अपने भाई-बहनों के साथ रहने के बाद भगवान लौटते हैं तब मां लक्ष्मी को मना लेते हैँ।
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम कपिलध्वज, बलभद्र के रथ का नाम तलध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम पद्मध्वज है। सबकी अपनी लंबाई है। मंदिर की मूर्तियों की खासियत है कि ये पूर्ण न होकर अधूरी है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
दुनिया के कोने-कोने से 10 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा को देखने और शामिल होने आते हैं। इसकी महिमा अपार है। यह रथयात्रा उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से आयोजित की जाती है जिसमें भक्तों की संख्या लाखों होती है। पुरी में भगवान जगन्नाथ के रुप में भगवान श्रीकृष्ण के साथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र उपस्थित हैं। इन तीनों का विशाल रथ 10 दिनों के लिए बाहर निकलता है इस अवसर के दौरान हजारों भक्त पुरी में आते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की मात्र झलक मिल जाने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। इस बार कोरोना की वजह से रथ यात्रा के नियम पुरे किये जाएंगे। श्रद्धालुओं के आने पर प्रतिबंध रहेगा।