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Jivitputrika 2022: जीवित्पुत्रिका व्रत आज, इस व्रत को करने से होती है संतान की हर विपदा दूर
Jivitputrika 2022: उल्लेखनीय है कि इसमें विधि-विधान से कुश का जीमूतवाहन बना कर पूजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार अष्टमी को पूरा दिन व्रत रखकर संध्याकाल में अच्छी तरह से स्न्नान करने के बाद पूजा की समस्त सामग्रियों के साथ जीमूतवाहन भगवान् की पूजा- अर्चना की जाती है।
Jivitputrika 2022 Importance: हिन्दू धर्म में संतान की मंगलकामना से जुड़े कई पर्व मनाये जाते हैं। इनमें से ही एक है जिउतिया पर्व या जीवित्पुत्रिका पर्व। बता दें कि हिन्दू पंचांग के मुताबिक़ प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत करने की परंपरा है। प्रत्येक साल माताएं अपने संतान के हित की प्रार्थना के लिए ये व्रत करती हैं। उल्लेखनीय है कि यह व्रत निर्जला मानाया जाता है यानी पानी की एक बूंद तक नहीं ग्रहण किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़ माताओं द्वारा जितिया व्रत करने से उनकी संतान की लंबी उम्र होने के साथ संतान हर विपदा से भी दूर रहती है। उल्लेखनीय है कि इसमें विधि-विधान से कुश का जीमूतवाहन बना कर पूजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार अष्टमी को पूरा दिन व्रत रखकर संध्याकाल में अच्छी तरह से स्न्नान करने के बाद पूजा की समस्त सामग्रियों के साथ जीमूतवाहन भगवान् की पूजा- अर्चना की जाती है।
पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़ संतान की सुरक्षा के लिए किया जाने वाले इस व्रत का महत्व स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़ इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहते हैं कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित कर दिया था। तभी से ही स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखना शुरू कर दी।
कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण स्वयं व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते हैं। बता दें कि सांतान की दीर्घ आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से ही जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को जितिया या जीमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस साल जितिया या जीवित्पुत्रिका का व्रत 18 सितंबर, दिन रविवार को रखा जा आज रहा है। मान्यताओं के अनुसार जितिया के व्रत में दिन भर निर्जला व्रत रख कर प्रदोष काल में पूजन का विधि -विधान है। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा के समय पक्षी राज गरूड़ और जीमूतवाहन की कथा पाठ करके संतान की दीर्घ आयु की कामना की जाती है।
जितिया में पक्षीराज गरुड़ से जुडी कथा
इस व्रत से जुडी एक अन्य कथा है कि सतयुग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जीमूतवाहन था। वे बड़े ही धर्मात्मा, परोपकारी और सत्यवादी थे। जीमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में प्रभु का स्मरण करने चले गए। लेकिन उनका मन राज कार्य में नहीं लगा। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को देकर अपने पिता की सेवा के उदेश्य से उनके पास वन में चले गए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ।
एक दिन वन में भ्रमण करते हुए उनकी भेंट एक वृद्धा से हुई, जो नागवंश से थी। वह काफी डरी हुई थी और रो रही थी। दयालु जीमूतवाहन ने उससे उसकी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा। इस पर वृद्धा ने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वे एक नाग को उनके आहार के रूप में देंगे। रोते हुए वृद्धा ने बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है। आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है।
इस पर जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा कि डरो मत, तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा मैं करूंगा। आज तुम्हारे पुत्र की जगह स्वयं को लाल कपड़े से ढक कर शिला पर लेटूंगा। नियत समय पर जीमूतवाहन पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हो गए। लाल कपड़े में लिपटे जीमूतवाहन को गरुड़ अपने पंजों में दबोच कर साथ लेकर चल दिए। उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन की आंखों में आंसू निकलते देखा और कराहते हुए सुना। वे एक पहाड़ पर रुके, तो जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई।
पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस, परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया और कहा कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की। तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हो गई। माताओं के लिए यह व्रत बहुत फलदाई है।
जितिया व्रत की कथा
कथा के अनुसार जीमूतवाहन एक धर्मपरायण और परोपकारी गंधर्व राज कुमार थे। पिता के वानप्रस्थ गमन के बाद उन्हें राजा बनाया गया, लेकिन उनका मन भी राज-पाट में नहीं लगता था। एक दिन जीमूतवाहन भी सारा राज-पाट भाईयों को सौंप कर वन की और चले गए। वहां पर ही उनका विवाह मलयवती नाम की एक कन्या से हुआ। एक दिन उन्हें वन में नागवंश की एक वृद्ध स्त्री रोती हुई मिली। कारण पूछने पर महिला ने बताया कि नागवशं और पक्षीराज गरूड़ के बीच एक समझौता है। प्रत्येक दिन नागकुल की एक संतान गरूड़ के पास उनका भोजन बनने के लिए जाती है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बारी है, वो मेरा एकलौता पुत्र है। मैं उसके बिना कैसे जीवित रहूंगी।
वृद्धा की समस्या सुन कर जीमूतवाहन, उसके पुत्र की जगह स्वयं गरूड़ का भोजन बनने के लिए चले गए । जैसे ही गरूड़ लाल कपड़े में लपटे हुए जीमूतवाहन को लेकर उड़ने लगे। जीमूतवाहन की आंखों से आंसू निकल आये और वो कराहने लगे।कराह सुन कर गरूड़ ने उनके रोने का कारण पूछा। तब उन्होनें गरूड़ को सारी घटना बताई।
पक्षीराज गरूड़ ने जीमूतवाहन की दया और परोपकारिता से प्रसन्न होकर उन्हें और पूरे नागवंश को जीवनदान दे दिया। इस तरह से नागवंश की सभी संतानों की रक्षा हुई और लोग जीमूतवाहन की पूजा करने लगे। तब से जितिया के दिन कुशा से बने जीमूतवाहन की पूजा और संतानों की दीर्घ आयु की कामना की जाती है।