×

Jivitputrika Vrat 2023 Mein Kab Hai जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2023: जानिए शुभ मुहूर्त, पारण का समय और महत्व

Jivitputrika Vrat 2023 Mein Kab Hai : जीतिया या जीवति या जीवित्पु्त्रिका व्रत इसके नाम से ही पता चलता है। व्रत करने से आयु लंबी होती है। इसे महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु की कामना के लिए करती है। निसंतान दंपत्तियों के लिए जीतिया व्रत संजीवनी है।

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 16 Aug 2023 4:05 PM IST
Jivitputrika Vrat 2023 Mein Kab Hai जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2023: जानिए शुभ मुहूर्त, पारण का समय और महत्व
X
JIVITPUTRIKA सांकेतिक तस्वीर, सोशल मीडिया

Jivitputrika Vrat 2023 Mein Kab Hai : जीवित्पुत्रिका व्रत कब है 2023: जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं निर्जला रहकर अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए करती है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कार्तिक मास की छठ की तरह ही यह व्रत कठिन होता है और इसकी महिमा अपरंपार है जो बांझीन की भी गोद भर देती है। जीतिया या जीवति या जीवित्पु्त्रिका व्रत इसके नाम से ही पता चलता है। व्रत करने से आयु लंबी होती है। इसे महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु की कामना के लिए करती है। निसंतान दंपत्तियों के लिए जीतिया व्रत संजीवनी है।

यह व्रत नहाय खाय से शुरू होकर पारण तक चलने वाला तीन दिनों का व्रत है। इसको बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश व झारखंड राज्यों में बहुत धूमधाम और धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है। व्रत के दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है। छठ व्रत की तरह ही यह व्रत कठीन नियमों के साथ ही पालन किया जाता है।

पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस बार जितिया व्रत 6 अक्टूबर । व्रत में 8 अक्टूबर को पारण का समय है।

जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त

साल 2023 में जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा।

अष्टमी तिथि शुरू – 6 अक्टूबर प्रातःकाल 06:34 मिनट पर |

अष्टमी तिथि समाप्त – 7 अक्टूबर प्रातःकाल 08:08 मिनट पर |

यह पर्व तीन दिनों का होता है जो की 6 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक मनाया जाएगा|

5 को नहाय खाय 6 को निर्जल व्रत और 8 को व्रत का पारण किया जायेगा|

इसव्रत का पारण 8 अक्टूबर को होगा। किसी भी व्रत के बाद व्रत का पारण करना जरूरी माना गया है। जीवित्पुत्रिका व्रत के तीसरे दिन नवमी तिथि को स्नान, पूजा तथा सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण किया जाता हैं। इस दिन पारण में मुख्य रूप से मटर का झोर, चावल, पोई का साग, मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाने की परंपरा है। व्रत का पारण नवमी की सुबह किया जाता है, जिउतिया व्रत का पारण सूर्योदय से लेकर दोपहर तक किया जा सकता है. पारण के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है।

जितिया व्रत का पूजन विधि

जीतिया व्रत 3 दिनों का होता है। जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खाय होता है। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं।

दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है। यही व्रत का विशेष व मुख्‍य दिन है जो कि अष्‍टमी को पड़ता है। इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं। यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है।

व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। व्रत की विधि ऐसी है।

जीतिया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर सुबह स्नान करने के बाद व्रती को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ किया जाता है। इसके बाद एक छोटा सा तालाब बनाकर तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी कर दी जाती है। इसके बाद शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र में स्थापित की जाती है। मतलब अष्टमी तिथि जिस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत का मुख्य दिन होता है जिसे खर जितिया कहते हैं। उस दिन स्नान आदि करके जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है। उस दिन प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है।फिर उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रूई से सजाया जाता है और उन्हें भोग लगाया जाता है। इसके बाद मिट्टीतथा गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है, इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत की कथापढ़ी एवं सुनी जाती है। मां को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग,16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी और श्रृंगार कासामान अर्पित किया जाता है। वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजा की जाती है।

व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है अतः पारण में जो नहाए खाए वाले दिन भोजन ग्रहण किया जाता है वही भोजन पारण में भी खाया जाता है जैसे मडुआ की रोटी नोनी का साग दही चुरा इत्यादि।

जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत का महत्व

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन वे द्रोपदी की पांच संतानें थे। फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।

अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।



Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

Next Story