Jivitputrika Vrat Katha :इस कथा के बिना अधूरा रहेगा जीतिया व्रत, इस दिन नियम का पालन करते हुए जरूर सुनें

Jivitputrika Vrat Katha Pdf Download: पुत्र कामना , दीर्घायु संतान के लिए जीतिया व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से निसंतान तो संतान मिलती है...जानते हैं कथा

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 23 Sep 2024 8:40 AM GMT
Jivitputrika Vrat Katha :इस कथा के बिना अधूरा रहेगा जीतिया व्रत, इस दिन नियम का पालन करते हुए जरूर सुनें
X

Jivitputrika Vrat Ktha 2024: हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखा जाता है। जितिया का व्रत निर्जला कठिन व्रतों में एक होता है। ये व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। माताएं अपने बच्चों की समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जितिया का व्रत कठिन व्रतों में एक होता है, जिसके नियम पूरे 3 दिनों तक चलते हैं। नहाय खाय से शुरू होकर व्रत और पारण के बाद जितिया का व्रत पूरा होता है। इस व्रत में अन्न-जल का त्याग कर माताएं संतान की दीर्घायु, आरोग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। जितिया में जीमूतवाहन भगवान की पूजा प्रदोष काल में की जाती है।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे देखने की कामना की। उनके उपवास के दौरान, लोमड़ी भूख के कारण बेहोश हो गई और चुपके से भोजन कर लिया। दूसरी ओर, चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। परिणामस्वरूप लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही खत्म हो गए और चील की संतान लंबी आयु के लिए धन्य हो गई।

दूसरी कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान और राजा थे। जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए। एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्‍हें एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है। उन्‍होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। इसपर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है। एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था।

उसकी समस्या सुनने के बाद ज‍िमूतवाहन ने उन्‍हें आश्‍वासन द‍िया क‍ि वह उनके बेटे को जीव‍ित वापस लेकर आएंगे। तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का व‍िचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं। तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। उसे हैरानी होती है क‍ि ज‍िसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रति‍क्रिया क्‍यों नहीं दे रहा है। तब वह ज‍िमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है। तब गरुड़ ज‍िमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है। मान्‍यता है क‍ि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्‍याण के ल‍िए ज‍ित‍िया व्रत मनाया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत में सावधानी रखें

इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितंबर 2024 को रखा जाएगा। इस व्रत के दौरान कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं और कई नियमों का पालन करना पड़ता है। इस व्रत के दौरान सभी नियमों का सावधानीपूर्वक पालन करें। इससे आपका व्रत सफल होगा। जानते हैं व्रत के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिए।

जीवित्पुत्रिका व्रत में एक दिन नहाय-खाय किया जाता है। इसमें व्रती स्नानादि और पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करती है और अगले दिन निर्जला उपवास रखती हैं। इसीलिए नियम के तहत नहाय-खाय के दिन भूलकर भी लहसुन-प्याज, मांसाहार या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।

जीवित्पुत्रिका का व्रत यदि आपने आरंभ कर दिया है तो उसे हर साल रखना चाहिए। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। मान्यता है कि पहले सास इस व्रत को करती है। उसके बाद घर की बहू द्वारा यह व्रत किया जाता है।

अन्य व्रत की तरह जितिया के व्रत में भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। इसके साथ ही मन में भी किसी प्रकार का बैरभाव नहीं रखना चाहिए। इस दौरान लड़ाई-झगड़े से भी दूर रहना चाहिए।

जितिया का व्रत के दौरान आचमन करना भी वर्जित माना जाता है। इसलिए जितिया व्रत में जल का एक बूंद भी ग्रहण न करें।

जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम पूरे तीन दिनों के लिए होते हैं। पहले दिन नहाय-खाय और दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इसलिए तीसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि करने और पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत का पारण करें।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन विधि

प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ करें और छोटा सा तालाब बनाएं।

जितिया में शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की पूजा करें।

जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति को जल या फिर मिट्टी के पात्र में स्थापित करें और पीले और लाल रुई से उन्हें सजाएं ।

धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला से उनका पूजन करें।

इसके बाद महिलाएं संतान की दीर्घायु और उनकी प्रगति के लिए पूजा करें।

पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका की व्रत कथा जरूर पढ़ें।

इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करें।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

Next Story