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Jivitputrika Vrat 2022 Mein Kab Hai- जितिया व्रत 2022 निसंतान दंपत्तियों के लिए संजीवनी है, जानिए मुहूर्त-कथा और कब हुई शुरुआत

Jivitputrika Vrat 2022 Mein Kab Hai : जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं निर्जला रहकर अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए करती है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कार्तिक मास की छठ की तरह ही यह व्रत कठिन होता है और इसकी महिमा अपरंपार है जो बांझीन की भी गोद भर देती है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 14 Sept 2022 1:00 PM IST (Updated on: 14 Sept 2022 3:30 PM IST)
Jivitputrika Vrat Katha PDF In Hindi:
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Jivitputrika Vrat (Image: Social Media) 

Jivitputrika Vrat Katha PDF In Hindi:

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

निसंतान दंपत्तियों के लिए यह व्रत संजीवनी की तरह है। जीवित्पु्त्रिका या जितियाव्रत। नहाय खाय से शुरू होकर पारण तक चलने वाला ये तीन दिनों का व्रत बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश व झारखंड राज्यों में बहुत धूमधाम और धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है। व्रत के दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस बार जितिया व्रत 18 सितंबर की रात से शुरू होकर 19 सितंबर तक चलेगा। व्रत में 19 सितंबर को पारण का समय है।

जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त

  • 17 सिंतबर को नहाय खाय के साथ जितिया व्रत की शुरूआत होगी। उसके बाद 18 सितंबर को व्रत रखा जाएगा।
  • जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर दोपहर 02:14 बजे अष्टमी तिथि शुरू होगी।
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 18 सितंबर दोपहर 04:32 बजे अष्टमी तिथि खत्म होगी।
  • जीवित्पुत्रिका का व्रत रविवार, 18 सितंबर 2022 को है।
  • पारण – 19 सितंबर 2022 दिन सोमवार को व्रत पारण का दिन है। इस दिन सुबह 6:10 से सूर्योदय के बाद व्रत का पारण कर सकते हैं


जितिया व्रत 2022 पूजन विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनकर सुबह स्नान करने के बाद व्रती को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ किया जाता है। इसके बाद एक छोटा सा तालाब बनाकर तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी कर दी जाती है। इसके बाद शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र में स्थापित की जाती है। मतलब अष्टमी तिथि जिस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत का मुख्य दिन होता है जिसे खर जितिया कहते हैं। उस दिन स्नान आदि करके जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है। उस दिन प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है।फिर उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रूई से सजाया जाता है और उन्हें भोग लगाया जाता है। इसके बाद मिट्टीतथा गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है, इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत की कथापढ़ी एवं सुनी जाती है। मां को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग,16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी और श्रृंगार कासामान अर्पित किया जाता है। वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजा की जाती है।

व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है अतः पारण में जो नहाए खाए वाले दिन भोजन ग्रहण किया जाता है वही भोजन पारण में भी खाया जाता है जैसे मडुआ की रोटी नोनी का साग दही चुरा इत्यादि।

जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत का महत्व

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन वे द्रोपदी की पांच संतानें थे। फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।

अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।

जीवित्पुत्रिका (जितिया ) व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, तो अश्वत्थामा नाम का हाथी मारा गया; लेकिन चारों तरफ यह खबर फैल गई की द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। यह सुनकर अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य ने पुत्र शोक में अस्त्र डाल दिए। तब द्रोपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। पिता की मृत्यु के कारण अश्वत्थामा के मन में बदले की अग्नि जल रही थी। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में जा पहुंचा। उसने पांडवों के पांचों पुत्रों को सोया हुआ देखकर उन्हें पांडव समझ लिया और उनके पांचो पुत्रों की हत्या कर दी। परिणाम स्वरूप पांडवों को अत्यधिक क्रोध आ गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली, जिसके बाद अश्वत्थामा पांडवों से क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मारने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। भगवान श्री कृष्ण इस बात से भलीभांति परिचित थे की ब्रह्मास्त्र को रोक पाना असंभव है। लेकिन उन्हें उत्तरा के पुत्र की रक्षा करना जरूरी लगा। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल एकत्रित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया, जिसके फलस्वरूप बच्चा पुनर्जीवित हो गया। यह बच्चा बड़ा होकर राजा परीक्षित बना। उत्तरा के बच्चे के दोबारा जीवित हो जाने के कारण इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत रखा गया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण इसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब से ही संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है।

जीवित्पुत्रिका की दूसरी कथा

इस कथा के अनुसार गंधर्वों के एक राजकुमार थे जिनका नाम जीमूतवाहन था। वह बहुत परोपकारी थे। उनके पिता ने राजपाट छोड़ दिया और वन में चले गए, इसके बाद जीमूतवाहन को राजा बना दिया गया। वह राजकाज ठीक से चला रहे थे लेकिन उनका मन उसमें नहीं लगता था। एक दिन वह अपना राज्य छोड़कर अपने पिता की सेवा के लिए वन में चले गए। वन में उनका विवाह मलयवती नाम की एक राज कन्या से हुआ। एक दिन जब जीमूतवाहन वन में भ्रमण कर रहे थे, तो उन्होंने एक वृद्ध महिला को विलाप करते हुए देखा। उस महिला का दुख देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने वृद्ध महिला को विलाप का कारण पूछा। इस पर वृद्ध स्त्री ने बताया कि वह नागवंश की स्त्री है और उनका एक ही पुत्र है। उसने बताया कि पक्षीराज गरुड़ को नागो ने वचन दिया है कि हर रोज एक नाग उनके पास आहार स्वरूप जाएगा और उससे वह अपनी भूख शांत किया करेंगे।

उस वृद्धा ने बताया कि आज उसके बेटे की बारी है। उसका नाम शंखचूड़ है। शंखचूड़ उसका इकलौता पुत्र है। अगर उसके इकलौते पुत्र की बलि चढ़ गई तो किसके सहारे अपना जीवन व्यतीत करेगी। यह सुनकर जीमूतवाहन का दिल रो उठा। उन्होंने कहा कि वह उनके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेगा और उनके बदले वह जाएंगे। ऐसा कहकर जीमूतवाहन तय समय पर गरुड़ के पास पहुंच गए। जीमूतवाहन लाल कपड़े में लिपटे हुए थे। गरुड़ देव ने उनको पंजों में दबोच लिया और उड़ गए। इस बीच उन्होंने देखा जीमूतवाहन रो रहे हैं। तब वह एक पेड़ के शिखर पर रुक गए और जीमूतवाहन को मुक्त कर दिया। तब उन्होंने सारी घटना बताई।

गरुड़ देव जीमूतवाहन की साहस और दया की भावना को देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवन दान दे दिया। साथ ही उन्होंने भविष्य में नागों की बलि ना लेने की बात भी कही। इस प्रकार एक मां के पुत्र की रक्षा हुई। मान्यता है कि तब से ही पुत्र की रक्षा के लिए जीमूतवाहनकी पूजा की जाती है। इसलिए इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत कहा जाता है।



Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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