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Jyotirling In India : सावन में इन 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन से होगा कल्याण, जानिए इनकी महिमा, उत्पत्ति और रहस्य

Jyotirling In India : महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया जााए तो कहते है कि सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। धर्मानुसार देश में भगवान शिव शिवलिंग रुप में 12 स्थानों पर विराजमान है। जानते हैं newstrack.com पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में...

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 15 July 2024 2:30 PM IST (Updated on: 15 July 2024 3:21 PM IST)
Jyotirling In India  : सावन में इन 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन से होगा कल्याण, जानिए इनकी महिमा, उत्पत्ति और रहस्य
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Jyotirling In India :

12 ज्योतिर्लिंग (newstrack स्पेशल)

शिव जो जल से, शुद्ध मन से, भस्म से प्रसन्न हो जाते हैं। उनके भक्तों के लिए शिव की भक्ति देखने में जितनी सरल है उतनी ही कठिन । क्योंकि शिव की भक्ति के लिए एक चीज जो जरूरी है वो है शुद्ध और पवित्र मन जिसके बिना सारे तामझाम भगवान शिव के समक्ष बेकार है। शिव का प्रिय शिवरात्रि 18 फरवरी को है। इसमें महादेव जो प्रसन्न कर लेंगा , उसके हो जाएंगे भोले भंडारी।अगर सात्विक मन से शिव की भक्ति की जाये तो शिव सारी इच्छाये पूरी करते हैं। अगर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया जााए तो कहते है कि सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। धर्मानुसार देश में भगवान शिव शिवलिंग रुप में 12 स्थानों पर विराजमान है। जानते हैं newstrack.com पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में...

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga)

12 शिवलिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र में है। शिवपुराण के अनुसार दक्षप्रजापति के श्राप से बचने के लिए, सोमदेव (चंद्रदेव) ने भगवान शिव की आराधना की। व शिव प्रसन्न हुए और सोम(चंद्र) के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव की यहां पर स्वयं सोमदेव ने स्थापना की थी ! इसी कारण इस तीर्थ का नाम "सोमनाथ" पड़ा। विदेशी आक्रमणों के कारण यह मंदिर 17 बार नष्ट हो चुका है। और हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।भगवान शिव चंद्रदेव की आराधना और श्राप मुक्ति के बाद ही शिव का साकार रुप भी देखने को मिला। इस ज्योतिर्लिंग पर जाने से हर कष्ट का निवारम होता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga )

आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान है। कहते है एक बार शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणेश में पहले किसका विवाह होगा, इस पर विवाद होने लगा। जब भगवान शिव ने कहा- जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, उसी का विवाह पहले किया जायेगा। बुद्धि के सागर श्री गणेश जी ने माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा के बराबर फल प्राप्त किया। जब कार्तिकेय परिक्रमा कर वापस लौटे तब देवर्षि नारद जी ने उन्हें सारा वृतांत सुनाया और कुमार कार्तिकेय ने क्रोध के कारण हिमालय छोड़ दिया और क्रौंच पर्वत पर जा कर रहने लगे।

कोमल हृदय से युक्त माता-पिता पुत्र स्नेह में क्रौंच पर्वत पहुंच गए। कार्तिकेय को, जब अपने माता-पिता के आने की सूचना मिली तो वह, वहां से तीन योजन दूर चले गए। कार्तिकेय के क्रौंच पर्वत से चले जाने पर ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव-पार्वती प्रकट हुए। तभी से भगवन शिव और माता पार्वती मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। मल्लिका अर्थात पार्वती और अर्जुन अर्थात शिव। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा से अवश्मेध यज्ञ के बराबर का फल प्राप्त होता है।कार्तिक किसी बात को लेकर अपने पिता भगवान शिव से नाराज हो कर दक्षिण की दिशा में श्रीशैल पर्वत पर एकांतवास में चले गये थे, लेकिन अपने माता-पिता की सेवा और भक्ति का मोह कार्तिक त्याग नहीं पाए और उन्होंने शिवलिंग बनाकर उनकी उपासना शुरू कर दी।

भगवान् शिव मां पार्वती के साथ वहां पर विराजमान है ! शिव (अर्जुन) और पार्वती (मल्लिका )एक साथ विराजमान हुए इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा। धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को सारे पापों से मुक्ति मिलती है।


ओम्कारेश्वर ( Omkareshwar Mamleshwar Jyotirling)

ज्योतिर्लिंग से संबंधित कई कहानी हैं। पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी अतएव भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में विराजित हुए। देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग २ भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया, जिसमे ज्योतिलिंग ओंकारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग अमरेश्वर/मम्लेश्वर में स्थित है।

इस ज्योतिर्लिंग के पास नर्मदा नदी और पहाड़ी के चारों ओर नदी के बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। ऊं शब्द की उत्पति भगवान ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से पुकारा जाता है।

अन्य कथानुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता ने नर्मदा नदी के किनारे कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया ।यहां प्रकट हुए,तभी से भगवान ओंकारेश्वर में रूप में विराजमान हैं। इसमें 68 तीर्थ हैं। यहाँ 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं। नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है।

जब वराह कल्प में जब सारी पृथ्वी जल में मग्न हो गई थी तो उस वक्त भी मार्केंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता था। यह आश्रम नर्मदा के तट पर ओंकारेश्वर में स्थित है। ओंकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः हुआ है। शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले, किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर महादेव आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता, तब तक उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।


महाकालेश्‍वर ( Mahakaal Jyotirlinga Ujjain )

यह ज्‍योतिर्लिंग मध्‍यप्रदेश के उज्जैन में है जो भी इंसान इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसे मोक्ष मिलता है। महाभारत में, महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति कहते हैं। मान्यता अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं। तभी जो भी व्‍यक्‍ति इस मंदिर में आ कर भगवान शिव की सच्‍चे मन से प्राथर्ना करता है, उसे मृत्‍यु के बाद मिलने वाली यातनाओं से मुक्‍ति मिलती हैं।

महाकालेश्‍वर की कथा

अवंति नगरी में शुभ कर्मपरायण तथा सदा वेदों के स्वाध्याय में लगे रहने वाला एक वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहता था। जिसके चार संस्कारी और आज्ञाकारी पुत्र थे। उस समय रत्नमाला पर्वत पर दूषण नामक एक असुर ने धर्मविरोधी कार्य आरंभ कर रखा था। सबको स्थानों को नष्ट कर देने के बाद उस असुर ने अवंति (उज्जैन) पर भारी सेना लेकर आक्रमण कर दिया था। अवंति नगर के सभी निवासी जब उस संकट में घबराने लगे, तब वेदप्रिय और उसके चारों पुत्रों के साथ सभी नगरवासी शिवजी के पूजन में तल्लीन हो गए। भगवान शिवजी के पूजन में तल्लीन होने पर भी, दूषण ने ध्यानमग्न नगर वासियों को मारने का आदेश दिया। तब भी वेदप्रिय के पुत्रों ने सभी नगर वासियों को भगवान शिव के ध्यान में मग्न रहने को कहा।

असुर दूषण ने देखा कि यह डरने वाले नहीं हैं तो इन्हें मार दिया जाए और जैसे ही वह आगे बढ़ा, त्योंहि शिव भक्तों द्वारा पूजित उस पार्थिवलिंग से विकट और भयंकर रूपधारी भगवान शिव प्रकट हुए और वहा उपस्थित सभी दुष्ट असुरों का नाश कर, महाकाल के रूप में विख्यात हुए। शिव ने अपने हुंकार से सभी दैत्यों को भस्म कर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाया। इसी कारण से इस मंदिर में महाकाल को भस्म लगाई जाती है। महाकाल मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के गर्भगृह में निकास का द्वार दक्षिण दिशा की ओर से है। जो की तांत्रिक पीठ के रूप में इसे स्थापित करता है।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग ( Kedarnath Jyotirlinga)

उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में एक, चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। केदारनाथ मंदिर 3593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इसकी कल्पना आज भी नहीं की जा सकती है।यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है।

केदारनाथ की कथा

कथानुसार इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग ( Bhimashankar Jyotirlinga)

ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे में सह्याद्रि नामक पर्वत पर है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से जानते है। इसकी मान्यता है कि कुम्भकर्ण का बेटा भीम भगवान् ब्रह्मा के वरदान से अत्याधिक बलवान हो गया था। बल के मद में अंधा होकर उसने शिवभक्तों पर अत्याचार किया। इंद्र देव को भी उसने युद्ध में हरा दिया था। शिवभक्त राजा सुदाक्षण को उसने जेल में डाल दिया था।

सुदाक्षण ने जेल में शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी इसकी जानकारी मिलते ही एक दिन भीम वहां आ गया और उसने शिवलिंग को अपने पैरों से रौंध डाला क्रोधित होकर भगवान् शिव वहां प्रगट हुए और राक्षसराज भीम का वध कर दिया। तभी से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमाशंकर पड़ गया। ऐसी मान्यता भी है कि जो कोई इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।


काशी विश्वनाथ ( Kashi Vishwanath Jyotirlinga)

यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व है। इसकी मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे। काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से जीवन से मुक्ति मिल जाती है। भगवान रूद्र मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिसके कारण वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है, चाहे वह मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। काशी विश्वनाथ शिवलिंग सबसे पुराने शिवलिंगों में से एक कहा जाता है। यह किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या आदि से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परब्रह्म परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात् विराजमान है।

त्र्यंबकेश्वर ( Trimbakeshwar Jyotirlinga)

यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के किनारे महाराष्ट्र के नासिक मे है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि व गोदावरी की प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। त्र्यम्बकेश्वर की विशेषता है कि यहां पर तीनों ( ब्रह्मा-विष्णु और शिव ) देव निवास करते है जबकि अन्य ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महादेव। मान्यता अनुसार भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।

वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirlinga)

श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों में खास स्थान है। भगवान वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है।शिव पुराण में वर्णित कथानुसार एक बार राक्षस राज रावण ने अति कठोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर लिया !

जब भगवान् शिव ने रावण से वरदान मांगने के लिए कहा- तब रावण ने भगवान् शिव से लंका चलकर वही निवास करने का वरदान माँगा ! भगवान् शिव ने वरदान देते हुए रावण के सामने एक शर्त रख दी कि शिवलिंग के रूप में मैं तुम्हारे साथ लंका चलूँगा लेकिन अगर तुमने शिवलिंग को धरातल पे रख दिया तो तुम मुझको पुनः उठा नहीं पाओगे ! रावण शिवलिंग को उठाकर लंका की ओर चल पड़ा ! रास्ते में रावण को लघुशंका लग गयी ! रावण ब्राह्मण वेश में आये भगवान् विष्णु की लीला को समझ नहीं पाया और उसने ब्राह्मण (विष्णु जी) के हाथ में शिवलिंग देकर लघुशंका से निवृत्त होने चला गया ! भगवान् विष्णु ने शिवलिंग को पृथ्वी पर रख दिया !

जब रावण वापस लौटा और उसने शिवलिंग को जमीन पर रखा पाया तो रावण ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो शिवलिंग को नहीं उठा पाया ! वैद्य नामक भील ने शिवलिंग की पूजा अर्चना की इसीलिए इस तीर्थ का नाम वैद्यनाथ पड़ायह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।

नागेश्वर ( Nageshvara Jyotirlinga)

यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहर नागेश्वर में स्थित है। भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

नागेश्वर धाम कथा

कथानुसार दारुका नाम की एक राक्षसी थी उसने देवी पार्वती की कठिन तपस्या कर उनसे वरदान प्राप्त किया था। दारुका अपने पति दारुक के साथ उस वन पर राज करती थी दोनों बड़े ही क्रूर और निर्दयी थे दोनों मिल कर वहां की जनता पर तरह तरह के अत्याचार करते थे। वहां की जनता उनके अत्याचारों से त्रस्त थी और उनके अत्याचारों से मुक्ति पाने के उद्देश्य से महर्षि और्व की शरण में पहुंचे। महर्षि और्व ने उनकी याचना सुनी और उसके बाद उन्होंने राक्षसों को श्राप दिया की जब कोई राक्षस किसी धार्मिक कार्य में व्यवधान पहुचायेगा तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। एक बार वैश्यों का एक समूह गलती से उस वन के समीप पहुँच गया और दारुक ने उन पर आक्रमण कर उन्हें अपना बंदी बना लिया। उन वैश्यों के नेता सुप्रिय नाम का एक शिव भक्त था।

जब दारुक ने उन्हें अपने जेल में बंद किया तो उसने देखा की सुप्रिय बिना किसी डर और खौफ के अपने ईस्ट देव का स्मरण कर रहा था। यह देख कर दारुक अत्यंत क्रोधित हो उठा और सुप्रिय को मारने के लिए दौड़ पडा परन्तु सुप्रिय ने बिना किसी डर के भगवान शिव का स्मरण किया। उसने भगवान् शिव से कहा की प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ।उसकी पुकार सुन कर भगवान शिव कालकोठरी के कोने में बने एक बिल से प्रकट हुए और उनके साथ ही वहां एक विशाल मंदिर भी अवतरित हुआ।

दूसरी ओर दारुका ने देवी पार्वती की आराधना शुरू कर दी और उनसे अपने वंश की रक्षा करने को कहा। फिर देवी पार्वती ने भगवान् शिव से दारुका के वंश को जीवन दान देने की विनती की। तब शिवजी ने कहा की इस युग के अंतिम चरण से यहां किसी भी राक्षस का वास नहीं होगा और ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान् शिव और देवी पार्वती वहीँ स्थापित हो गए और उस दिन से उन्हें नागेश्वर तथा नागेश्वरी के नाम से जाना जाने लगा।

रामेश्वरम ( Rameshwaram Jyotirlinga )

यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथ पुर नामक स्थान में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में एक है। इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम ने स्वयं अपने हाथों से पवित्र पावन शिवलिंग की स्थापना की थी! राम के ईश्वर अर्थात भगवान शिव को रामेश्वर हैरामेश्वरम् की स्थापना के विषय में कहा जाता है कि श्रीराम ने जब रावण के वध के लिए लंका पर चढ़ाई की थी, तब विजयश्री की प्राप्ति हेतु उन्होंने श्री रामेश्वरम में शिव लिंग की स्थापना की। एक अन्य शास्त्रोक्त कथा भी प्रचलित है। रावण वध के बाद उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। उससे मुक्ति के लिए ऋषियों ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन शिवलिंग की स्थापना कर श्रीराम चंद्र को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कराया था।


घृष्णेश्वर धाम (Grishneshwar Jyotirlinga)

घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद में है। देवगिरि पर्वत के निकट सुकर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी सुदेहा के साथ भगवान् शिव की पूजा किया करते थे किंतु सन्तान न होने से चिंतित रहते थे। पत्नी के आग्रह पर उसके पति का बहन घुस्मा के साथ विवाह किया जो परम शिव भक्त थी। पति ने विवाह से पूर्व अपनी पत्नी को बहुत समझाया था कि इस समय तो तुम अपनी बहन से प्यार कर रही हो, किंतु जब उसके पुत्र उत्पन्न होगा तो तुम इससे ईष्र्या करने लगोगी और ठीक वैसा ही हुआ।

इससे बहन घुश्मा परेशान नहीं हुई और शिव भक्ति में लीन हो गई। उसकी भावना से महादेव जी ने प्रसन्न होकर उसके पुत्र को पुनः जीवित कर दिया और घुश्मा द्वारा पूजित पार्थिव लिंग में सदा के लिए विराजमान हुए और घुश्मा के नाम को अमर कर महादेव ने इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा। घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिध्द हुआ, उस तालाब का नाम भी तबसे शिवालय हो गया। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप स्थित है


नोट: ज्योतिर्लिंग से जुड़ी सारी बातें धार्मिक ग्रंथों, कुछ शिव पुराण व कुछ अन्य धर्म ग्रंथों से ली गई है।



Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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