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Kalpwas 2023: कल्पवास और उसका महत्व, जानें क्यों कहा जाता है 'पुण्य का मार्ग'

Kalpwas 2023:  प्रयागराज में माघ मेला 2023 की तैयारियां पूरी हो चुकी है। साधु-संतों के साथ कल्‍पवासी भी पहुंचने लगे हैं। जानिए क्‍या है कल्पवास और उसका महत्व?

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Written By aman
Published on: 4 Jan 2023 7:27 AM IST
Kalpwas 2023:
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प्रतीकात्मक चित्र (Social Media)

Kalpwas 2023: संगम नगरी प्रयागराज (Prayagraj) में लगने वाले कुंभ की सभी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। साधु-संत और सन्यासियों का यहां पहुंचने का सिलसिला जारी है। तीर्थ नगरी प्रयाग में संगम तट पर कल्पवासियों के आने का सिलसिला भी रफ्तार पकड़ चुकी है। इस वर्ष 6 जनवरी 2023 से एक माह का कल्पवास (Kalpwas 2023) शुरू हो रहा है। कल्पवास की परंपरा आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चली आ रही है। प्रयागराज में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के तट पर कल्पवास के लिए लाखों लोग आते हैं।

हालांकि, बदलते समय के साथ-साथ कल्पवास करने वालों के तौर-तरीकों में भी बदलाव हुआ है। मगर, न तो कल्पवास करने वालों की संख्या में कोई कमी आई है। और न ही आधुनिकता कल्पवास को प्रभावित कर पाई है। ऐसे में कईयों के मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर कल्पवास है क्या? अगर, आप भी इसके बारे में नहीं जानते हैं तो तो चलिए सनातन धर्म की इस परंपरा के बारे में आपको बताते हैं। कल्पवास है क्या और इसका महत्व क्या है?

क्या है कल्पवास? (What is Kalpwas)

भारतीय सनातन परंपरा (Sanatan Parampara) के अनुसार, चार सर्वमान्य आश्रमों के सिद्धांत ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास होते हैं। जिसके अंतर्गत तीसरे आश्रम वालों अर्थात उन 'गृहस्थों' के लिए जो अपनी उम्र के 50 साल पूरे कर चुके हैं। कल्पवास उनके लिए निश्चित किया गया था। गृहस्थ आश्रम व्यतीत कर चुके लोग उस वक्त अपना अधिकतर समय जंगल में गुजारा करते थे। 'कल्प' उसे कहा जाता है, जब ईश्वर से आशक्त होकर पूरे ब्रह्मचर्य के साथ एक प्रकार ही दिनचर्या को एक निश्चित समय अवधि के लिए किया जाता है।

इस प्रकार दिनचर्या को प्राय: लंबी अवधि वाले धार्मिक अनुष्ठानों (Religious Rituals) के दिनों में किया जाता है। बता दें, कुंभ भी एक लंबा धार्मिक अनुष्ठान ही है। इसलिए कुंभ की पूरी समय अवधि, जो करीब 50 दिनों की होती है, इसमें ईश्वर की भक्ति में आसक्त होकर पूरे दिन हवन, मंत्र जाप, स्नान जैसी क्रियाओं को कल्पवास कहा जाता है। पौष मास (Paush month) की 11वीं तिथि से लेकर माघ मास की 12वीं तिथि तक की अवधि को प्राय: 'कल्पवास' के लिए उचित समय माना जाता है।

कैसे करें कल्पवास? (How to Do Kalpwas)

कल्पवास (Kalpwas 2023) के लिए माना जाता है कि इसे सांसारिक मोह-माया से मुक्त तथा जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही करना चाहिए। क्योंकि, जिम्मेदारियों से जकड़े शख्स के लिए आत्मनियंत्रण कठिन होता है। कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर सोना होता है। इस दौरान फलाहार (Fruit Diet) और एक समय का आहार या फिर निराहार रहने का भी प्रावधान है। कल्पवासी को नियमपूर्वक तीन समय गंगा स्नान करना होता है। संभव हो तो भजन, कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला के दर्शन भी होने चाहिए। कल्पवास की शुरुआत करने के बाद उसे 12 वर्षों तक जारी रखने की भी परंपरा है। वैसे, इससे अधिक समय तक भी जारी रखा जा सकता है।

कल्पवास का क्या है महत्व? (What is the importance of Kalpwas)

इस पर्व के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले ये समझना होगा कि कल्पवास का अर्थ क्या है? आपको बता दें, इसका मतलब है एक महीने तक संगम तट पर रहते हुए वेद का अध्ययन करना। साथ ही, ध्यान पूर्वक पूजा करना। इन दिनों प्रयागराज में कुंभ मेले का आरंभ हो चुका है। ऐसे में कल्पवास का महत्व और बढ़ गया है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा (Brahma) के एक दिन के बराबर होता है, पुण्य मिलता है।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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