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KarKotak Naag Tirth Kashi: इस तीर्थ से जुड़ा है पाताल लोक, इसके पानी से दूर होता है कालसर्प दोष, नाग पंचमी पर करें दर्शन

KarKotak Naag Tirth Kashi : वाराणसी स्थित कारकोट तीर्थ जिसका संबंध भगवान शिव महर्षि पातंजलि और पाणिनी है। यहां नाग पंचमी के दिन उत्सव मनता है, जानिए इस तीर्थ धाम का महत्व

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 24 July 2023 4:49 PM IST (Updated on: 19 Aug 2023 4:16 PM IST)
KarKotak Naag Tirth Kashi: इस तीर्थ से जुड़ा है पाताल लोक, इसके पानी से दूर होता है कालसर्प दोष, नाग पंचमी पर करें दर्शन
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KarKotak Naag Tirth Kashiसांकेतिक तस्वीर, सोशल मीडिया

KarKotak Naag Tirth Kashi: 21 अगस्त को नाग पंचमी मनाया जायेगा, इस दिन पूरे देश में नाग उत्सव मनाते हैं। हर साल नाग पंचमी सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है, जो इस बार 21 अगस्त, सोमवार को मनाई जाएगी। इस बार नाग पंचमी पर्व 21 अगस्त की रात्रि 12:21 बजे शुरू होगी और 22 अगस्त, मंगलवार को रात्रि 02:00 बजे पर समाप्त होगी। यह त्योहार सूर्योदय की तिथि में मनाए जाते हैं

कारकोट नाग तीर्थ का इतिहास धार्मिक मान्यता

नागो की पूजा की जाती है। देश भर में कई मंदिर है जहां नाग देवता की पूजा होती है, इसी में एक कारकोट तीर्थ है। कारकोट नाग तीर्थ बहुत प्राचीन मंदिर है जिसमे भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। यह शिव को नागो का स्वामी नागेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर का जीर्णोदार 3000 साल पहले हुआ था, इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना होगा।

वाराणसी भगवान शिव की नगरी कई धार्मिक रहस्यों से भरी हुई है। बनारस के जैतपुरा नामक स्थान पर एक कुआं है, जिसकी गहराई पाताल और नागलोक तक जाती है। इस कुएं को कारकोट नाग तीर्थ कहते हैं। इस नाग कुंड को नाग लोक का दरवाजा बताया जाता है।

शिव नगरी काशी में नाग कुंड के अंदर ही एक कुआं है, जहां एक प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। इस शिवलिंग को नागेश’ के नाम से जाना जाता है। यह शिवलिंग साल भर पानी में डूबा रहता है और नाग पंचमी के पहले कुंड का पानी निकाल कर शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। कहते हैं यहां आज भी नाग निवास करते हैं।

हर दोष से मुक्ति देता है कारकोट नाग तीर्थ

बनारस में स्थित इस नाग कुंड का विशेष स्थान है। यहां स्वयं शिवभगवान विराजमान हैं,जो नाग कुंड अनोखा फल देता है। कालसर्प योग से मुक्ति के लिए देश में तीन ऐसे कुंड हैं, जहां पर दर्शन करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। तीनों कुंड में जैतपुरा का कुंड ही मुख्य नाग कुंड है। नाग पंचमी के पहले कुंड का जल निकाल कर सफाई की जाती है फिर शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसके बाद नाग कुंड को फिर से पानी से भरा जाता है। एक ओर जहां नाग कुंड के दर्शन मात्र से ही कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही साथ जीवन में आने वाली सारी बाधाएं खत्म हो जाती है।

सर्प दंश के भय से मुक्ति दिलाने वाले व कुंडली से कालसर्प दोष को दूर करने वाले इस कुंड की स्थापना काशी के इस तीर्थ पर शेष अवतार नागवंश के महर्षि पतंजलि ने तीन हजार वर्ष पहले कराई थी और भगवान शिव के गले का हार नाग वासुकी हैं। जगत के पालनहार भगवान विष्णु भी नाग की शय्या पर शयन करते हैं। इसके अलावा विष्णु की शय्या बनें शेषनाग पृथ्वी का भार भी संभालते हैं। मान्यता है कि नाग भले ही विष से भरे हों, लेकिन वह लोक कल्याण का कार्य अनंत काल से करते आ रहे है। इन्हीं नाग देव को मनाने के लिए नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है, जिससे नाग का भय न हो और साथ ही हमारी कुंडली में अगर कालसर्प दोष हो तो वह उसे समाप्त करें।

इस तीर्थ स्थल को लेकर लोगो की आस्था है और मान्यता है की इस कुवे के पानी से स्नान करने से मनुष्य पापों के फल से मुक्त होता है। यदि यहां कोई भक्त स्नान कर ले तो उसे नाग दोष से मुक्ति प्राप्ति होती है।

कारकोट का संबंध इनसे

बताया जाता है करकोटक नाग तीर्थ के नाम से विख्यात इसी नागलोक को जाने वाले स्थान पर के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी। यह कितना गहरा है , इसे आज तक नही जाना जा सका है क्योकि इसका सम्बन्ध पाताल लोक से बताया जाता है ।



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Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

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