काशी में कैसे पहुंचे अविनाशी, जानिए भगवान शिव के प्रिय नगरी कैसे बनी विष्णुपुरी से काशी

Kashi Me Avinashi:सावन में भक्तों का जमावड़ा काशी में लगने लगता है। यह नगरी भगवान को अतिप्रिय है, जानते है इसकी महिमा..

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 25 July 2024 3:45 AM GMT (Updated on: 25 July 2024 4:22 AM GMT)
काशी में कैसे पहुंचे अविनाशी, जानिए भगवान शिव के प्रिय नगरी कैसे बनी विष्णुपुरी से काशी
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Kashi Me Avinashi काशी में अविनाशी: सावन माह की शुरूआत हो चुकी है। शिव भक्ति और जयकारों से पूरा माहौल शिवमय है।शिव भक्त कांवर यात्रा और ज्योतिर्लिंगों में जल चढ़ाना शुरू कर चुके हैं। ऐसे में मोक्षधाम काशी में भक्तों का हुजूम बढने लगा है। धर्मानुसार काशी नगरी को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर विराजमान है।

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ काशी में कुल 88 घाट भी हैं इन घाटों में से 86 घाटों पर पूजा होता है और 2 घाटों का उपयोग शमशान भूमि के लिए किया जाता है। काशी नगरी मोक्ष की नगरी के नाम से भी प्रचलित है। यह मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दरबार में उपस्थिति मात्र से ही भक्तगण को जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।

विष्णुपुरी से काशी नगरी बनने की कथा

हिंदू पौराणिक की कई कथाओं में पवित्र माने जाने वाला वाराणसी ऊर्फ काशी नगरी को अत्यधिक पूजनीय माना गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर पवित्र वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है | भोले बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के बारे में यह बात भी प्रचलित है कि जब इस पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की सबसे पहली किरण काशी नगरी पर ही पड़ी थी।
पुराणों के अनुसार काशी नगरी पहले भगवान विष्णु की पुरी हुआ करती थी। परन्तु भगवान शिव ने विष्णु जी से यह अपने निवास के लिए मांग लिया था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा यह भी है कि जब भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर धड़ से अलग किया था उस समय वह सिर उनके करतल से चिपक गया ,माना जाता है कि करीब बारह वर्षों तक भगवान शिव द्वारा अनेक तीर्थों का भ्रमण करने के बावजूद भी वह सिर उनके करतल ने अलग नहीं हुआ। इसी भ्रमण करने के दौरान जैसे ही शिव जी ने काशी में कदम रखा ब्रह्महत्या का यह दोष खत्म हो गया क्योंकि वह सिर उनके करतल से अलग हो गया। इस घटना के बाद से ही भगवान शिव को काशी अत्यधिक भाने लगी और उन्होंने इसे भगवान विष्णु से इसे अपने रहने के लिए मांग लिया। जिस स्थान पर वह सिर शिव के करतल से अलग हुआ था वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया।

शिव जी की प्रिय नगरी काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों के समान माने जाने वाले 12 मंदिर भी मौजूद हैं। इन मंदिरों का नाम है - सोमनाथ महादेव मंदिर, ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर, महाकालेश्वर महादेव मंदिर, बैजनाथ महादेव मंदिर, भीमाशंकर महादेव मंदिर, रामेश्वर महादेव मंदिर, नागेश्वर महादेव मंदिर, श्री काशी विश्वनाथ नाथ मंदिर, घृणेश्वर महादेव मंदिर, केदार जी और त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर।

भगवान शिव काशी कैसे पहुंचे

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद से कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने कहा कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं के अपने घर हैं, उस तरह हमारा घर क्यों नहीं है। रावण ने तो लंका को ले लिया है इसलिए हमको दूसरी जगह के बारे में सोचना चाहिए। शिवजी को दिवोदास की नगरी काशी बहुत पसंद आई। निकुंभ नामक शिवगण ने भगवान शिव के लिए शांत जगह के लिए काशी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। ऐसा करने से राजा को बहुत दुख पहुंचा।

राजा ने ब्रह्माजी की तपस्या की और उनको इस बारे में जानकारी देकर दुख दूर करने की प्रार्थना की। दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्माजी के कहने पर शिवजी काशी को छोड़कर मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद काशी महादेवजी का स्थाई निवास हो गया और यहां आकर भगवान शिव विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।

काशी को लेकर एक मान्यता भी है। एक बार भगवान शिव ने अपने भक्त को सपने में दर्शन दिए और कहा कि तुम जब सुबह गंगा में स्नान करोगे, तब तुमको दो शिवलिंगों के दर्शन होंगे। उन दोनों शिवलिंगों को तुम्हे जोड़कर स्थापित करना होगा तब दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी। तब से ही भगवान शिव माता पार्वतीजी के साथ यहां विराजमान हैं।

काशी को सृष्टि की आदिस्थली भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि की कामना के लिए काशी में तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु को दर्शन दिए और सृष्टि के निर्माण और संचालन के लिए कुछ उपाय भी बताए। जहां भगवान शिव प्रकट हुए वहां आज भी शिवलिंग की पूजा की जाती है।

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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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