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Shrimad Bhagavad Geeta: संकल्प रखना दुःख को, पराधीनता को निमन्त्रण देना

Shrimad Bhagavad Geeta: कुछ संकल्प पूरे होते हैं और कुछ संकल्प पूरे नहीं होते‒यह सबके लिये एक सामान्य विधान है। जैसा हम चाहें वैसा ही होगा‒यह बात है नहीं। जो होना है, वही होगा।

Sankata Prasad Dwived
Published on: 2 July 2024 2:40 PM IST
Shrimad Bhagavad Geeta
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Shrimad Bhagavad Geeta

मनुष्य को दुःख देने वाला खुद का संकल्प है। ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये‒यह जो मन की धारणा है, इसी से दुःख होता है। अगर वह संकल्प छोड़ दे तो एकदम योग ( समता ) की प्राप्ति हो जायगी‒

सर्वसंकल्पसन्न्यासी योगारूढस्तदोच्यते

( गीता ६/४ )।

अपना ही संकल्प करके आप दुःख पा रहा है मुफ्त में।संकल्पों का कायदा यह है कि जो संकल्प पूरे होने वाले हैं, वे तो पूरे होंगे ही और जो नहीं पूरे होने वाले हैं, वे पूरे नहीं होंगे, चाहे आप संकल्प करें अथवा न करें। सब संकल्प किसी के भी पूरे नहीं हुए, और ऐसा कोई आदमी नहीं है, जिसका कोई संकल्प पूरा नहीं हुआ। तात्पर्य है कि कुछ संकल्प पूरे होते हैं और कुछ संकल्प पूरे नहीं होते‒यह सबके लिये एक सामान्य विधान है। जैसा हम चाहें वैसा ही होगा‒यह बात है नहीं। जो होना है, वही होगा।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

( मानस १/५२/४ )

इसलिये अपना संकल्प रखना दुःख को, पराधीनता को निमन्त्रण देना है। अपना कुछ भी संकल्प न रखें तो होने वाला संकल्प पूरा हो जायगा। जैसा तुम चाहो वैसा ही हो जाय‒यह हाथ की बात नहीं है। अतः संकल्प करके क्यों अपनी इज्जत खोते हो ? कुछ आना-जाना नहीं है ! *अगर मनुष्य संकल्पों का त्याग कर दे तो योगारूढ़ हो जाय, तत्त्व की प्राप्ति हो जाय; जो कुछ बड़ा-से-बड़ा काम है, वह हो जाय;mयह मनुष्य जन्म सफल हो जाय, कुछ भी करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहे! अतः अपना संकल्प कुछ नहीं रखो। वह संकल्प चाहे भगवान्‌ के संकल्प पर छोड़ दो, चाहे संसार के संकल्प पर छोड़ दो, चाहे प्रारब्ध ( होनहार ) पर छोड़ दो और चाहे प्रकृति पर छोड़ दो, जो अच्छा लगे, उसी पर छोड़ दो तो दुःख मिट जायगा। भगवान्‌ पर छोड़ दो तो जैसा भगवान्‌ करेंगे, वैसा हो जायगा। संसार पर छोड़ दो तो संसार ( माता-पिता, भाई-बन्धु, कुटुम्ब-परिवार आदि ) की जैसी मर्जी होगी, वैसे हो जायगा।

अपने प्रारब्ध पर छोड़ दो तो प्रारब्ध के अनुसार जैसा होना है, वैसा हो जायगा। अपना कोई संकल्प नहीं करना है। अपना संकल्प रखकर बन्धन के सिवाय और कुछ कर नहीं सकते। होगा वही जो भगवान्‌ करेंगे जो प्रारब्ध में है अथवा जो संसार में होने वाला है।

भगवान्‌ ने कहा है :‒

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

( गीता २/४७ )

कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फलों में कभी नहीं।ऐसा करेंगे और ऐसा नहीं करेंगे, शास्त्र से विरुद्ध काम नहीं करेंगे‒*इसमें तो स्वतन्त्रता है, पर दुःखदायी और सुखदायी परिस्थिति तो आयेगी ही; आप चाहो तो आयेगी, न चाहो तो आयेगी करने में सावधान रहना है शास्त्र की, सन्त-महात्माओं की आज्ञा के अनुसार काम करना है। इसमें कोई भूल होगी तो वह मिट जायगी।कभी भूल से कोई विपरीत कार्य हो भी जायगा तो वह ठहरेगा नहीं, टिकेगा नहीं, मिट जायगा । खास बात इतनी करनी है कि अपना संकल्प नहीं रखना है। अपना कोई संकल्प न रहे तो आदमी सुखी हो जाए



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Shalini singh

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