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Hanuman Putra: जानिए हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की कथा

Hanuman Ke Putra Ki Katha: हनुमानजी को ब्रह्मास्त्र द्वारा बंदी बना लिया था और रावण के सामने पेश किया गया, तो रावण की आज्ञा से सभी राक्षसो ने उनकी पूंछ मे आग लगा दी थी और अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने के लिए हनुमान जी समुद्र मे कूद पड़े।

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Published on: 2 April 2023 6:34 PM IST
Hanuman Putra: जानिए हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की कथा
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(Pic: Social Media)

Hanuman Ke Putra Ki Katha: पौराणिक कथा के अनुसार रावण के बलशाली पुत्र मेघनाद ने जब हनुमानजी को ब्रह्मास्त्र द्वारा बंदी बना लिया था और रावण के सामने पेश किया गया, तो रावण की आज्ञा से सभी राक्षसो ने उनकी पूंछ मे आग लगा दी थी और अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने के लिए हनुमान जी समुद्र मे कूद पड़े,आग बुझाते समय उनके शरीर से पसीने की एक बूँद पानी में गिर गई,और वह बूंद पानी मे एक मछली के पेट मे चली गई,जिससे मछली के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ, जो मकरध्वज के नाम से जाना जाता है।

जब राम रावण के युद्ध मे रावण पराजित होने लगा तो उसने अपने भाई अहिरावण को बुलाया। अहिरावण रावण से भी अधिक शक्तिशाली और मायावी था। उसने अपनी शक्ति से राम लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया और उनकी बली देने के लिए पाताल लोक ले गया। जब हनुमानजी राम लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंचे तो मुख्य द्वार पर उनका सामना मकरध्वज से हुआ।

मकरध्वज ने हनुमान जी को द्वार पर रोक लिया और हनुमानजी को अन्दर नही जाने दिया तब दोनो मे भयंकर युद्ध होने लगा। लेकिन दोनो ही एक दूसरे पर भारी पड रहे थे,कोई भी हार नही मान रहा था,तब हनुमानजी को आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन योद्धा है जो उनसे परास्त नही हो रहा है, तब हनुमानजी के पूछने पर मकरध्वज ने अपने जन्म की कथा सुनाई तो हनुमानजी ने कहा कि मै ही हनुमान हूं और मै ही तुम्हारा पिता हूं कहते हुए उन्होंने अपने पुत्र को अपने सीने से लगा लिया।

तब मकरध्वज ने कहा कि मैं अपने राजधर्म से बंधे होने के कारण मैं आपको भीतर प्रवेश नही करने दे सकता,अतः आप मुझे एक जंजीर से बांधकर भीतर प्रवेश कर सकते है। तब हनुमानजी ने मकरध्वज को जंजीर से बांध दिया और पाताललोक जाकर अहिरावण का वध किया और राम लक्ष्मण को मुक्त कराने के बाद जाते समय मकरध्वज को पाताललोक का राजा बना दिया।

मकरध्वज का एकमात्र मन्दिर ग्वालियर के करहिया के जंगलो मे स्थित है और जो प्राकृतिक गुफाओ से परिपूर्ण है। आज भी मंदिर परिसर मे अनवरत जल की धारा बहती है जो कि एक कुंड मे जाती है। यहां सात मंजिल की एक ईमारत बनी हुई है,जिसे सतखंडा के नाम से जाना जाता है। यहां 500 फुट की ऊंचाई पर एक पहाडी के बीच-बीच एक गुफा है जिसमे एक बाबा निवास करते है।

इस गुफा से निकलने वाली जल की धारा जो कि गोमुख से निकलती है एक वनस्पतियो के बीच से होकर निकलती है और कहा जाता है कि इस जल को पीने से बच्चे बूढ़े सभी के जटिल से जटिल रोग भी ठीक हो जाते है।



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