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ये है सातवां संस्कार, इसे करने से शिशु को नहीं होती कोई बीमारी
सहारनपुर: हिंदूधर्म में मनुष्य के लिए 16 संस्कारों का विधान है। इन सभी संस्कारों का अपना अलग-अलग महत्व है। संस्कारों की श्रेणी में सातवां संस्कार अन्नप्राशन होता है।इस संस्कार में शिशु को पहली बार ठोस अन्न खिलाया जाता हैं। शिशु को जन्म से 6 महीने तक मां का दूध दिया जाता है, लेकिन इसके बाद बच्चे को हल्का आहार दिया जाता है। अगर बच्चे को पहला आहार शुभ मुहूर्त में दिया जाए तो उसे कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है। पंडित सागर जी महाराज के मुताबिक बच्चों का अन्नप्राशन जन्म से 1 वर्ष के भीतर संपन्न किया जाता है।
किस मुहूर्त में करें अन्नप्राशन
धर्मग्रंथों के अनुसार पुत्र और पुत्री के अन्नप्राशन का समय अलग-अलग होता है। सम महीने में (6,8,10,12) में पुत्र और विषम महीने (5,7,9,11) में पुत्री को अन्न देना उत्तम माना जाता हैं। इस संस्कार को शुक्ल पक्ष में ही करना चाहिए। मंगल और शनिवार का दिन इस कार्य के लिये वर्जित है। द्वादशी, सप्तमी और अष्टमी को छोड़कर सभी तिथियां उत्तम मानी गई है।
कौन सा नक्षत्र, राशि और लग्न है उत्तम
नक्षत्र मृदु, लघु, चर, स्थिर संज्ञक होने चाहिए। तीनों पूर्वा, अश्लेषा, आर्द्रा, शतमिषा नक्षत्र वर्जित है। मतान्तर से अनुराधा, शतमिषा, स्वाती और जन्म-नक्षत्र को शुभ नहीं माना गया है।मीन, मेष, वृश्चिक लग्न, जन्म लग्न, राशि से अष्टम लग्न और नवांश को छोड़कर शेष सभी लग्न (वृष, कन्या, मिथुन ) श्रेष्ठ माना गया हैं। इस संस्कार में दशम में कोई ग्रह लग्न कुण्डली में न हो और न ही उस पर कोई कुदृष्टि हो। सूर्य होने पर मृगी, मंगल होने पर दुबलापन तथा शनि होने पर पक्षाघात की संभावना रहती है। ऊपर बताए गए मुहूर्त में भगवान की पूजा करने के बाद माता-पिता और दादा-दादी को सोने या चांदी के चम्मच से नीचे दिए मंत्र उच्चारण के साथ शिशु को कोई भी मीठी वस्तु खिलानी चाहिए।
ह्यह्यशिवो ते स्तां ब्रीहियवावबलासावदोमधौ।
एतौ यक्ष्मं वि वाधेते, एतौ मुच्चतो अहंस:।। (अथवर्वेद 8/2/18)
अन्नपूर्णा मन्त्र:-
ॐ क्रीं क्रुं क्रों हूं हूं ह्रीं ह्रीं ॐॐॐॐ अन्नपूर्णायै नम: