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Krishna Motivational Story In Hindi: उत्तम जीवन जीने के लिए श्रीकृष्ण से समर्पित भाव ही श्रेष्ठ नैवेद्य
Krishna Motivational Story In Hindi: सभी सद्गुरुओं में श्रेष्ठ माने जाते है-श्रीकृष्ण भगवान श्रीजगन्नाथ। इस युग में सद्गुरु ढूंढने से भी मिलना अत्यंत कठिन। इसलिए भगवान को श्रेष्ठ गुरु मानने से धोखा खाने की कभी नौबत नहीं आएगा।
Krishna Motivational Story In Hindi: आर्ष वचन(१) : "उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये। पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम्।।"
भावार्थ - "उपदेश उसे ही देना चाहिए जो उसका पात्र हो, अभिलाषी हो और ग्रहण करने को तत्पर हो। मूर्ख को उपदेश देने से वह वैसे ही विपरीत अर्थ लगाता है, जैसे सर्प को दूध पिलाने से वह विष ही उगलता है।।"
आर्ष वचन(२) : "प्रस्ताव- सदृशं वाक्यं, सद्भावसदृशं प्रियम्, आत्मशक्तिसमं कोपं कुर्वाणः न अवसीदति॥"
अर्थात-- "जो व्यक्ति सन्दर्भ के अनुसार बात करता है, अच्छी भावना के अनुसार प्रिय आचरण करता है, अपनी शक्ति (औकात) के अनुसार क्रोध करता है- वह कभी नष्ट नहीं होता।।"
इसलिए हम सब अपनी- अपनी मगज प्रयोग करके समाधान के रास्ता खुद चुनना चाहिए, जिस से सुख से गुजारा करने का सरल- कठिन जो भी हो, तरीका मिल जाएगा।।
जीवन जीने के लिए गीताज्ञानयज्ञ
सभी सद्गुरुओं में श्रेष्ठ माने जाते है-श्रीकृष्ण भगवान श्रीजगन्नाथ। इस युग में सद्गुरु ढूंढने से भी मिलना अत्यंत कठिन। इसलिए भगवान को श्रेष्ठ गुरु मानने से धोखा खाने की कभी नौबत नहीं आएगा। महाभारत रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण जी के सामने सम्पूर्ण समर्पित भक्त- मित्र अर्जुन को खुद श्रीकृष्ण जी ने जो गीताज्ञान अर्पण किया था, उस प्रक्रिया को गीताज्ञानयज्ञ कहा जाता है; यथा
"यद्यप्येते न पश्यन्ति,
लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं,
मित्रदोहे च पातकम।।38।।
कुलक्षये प्रणश्यन्ति,
कुलधर्मा सनातनाः।
धर्में नष्टे कुलं कृत्स्नम-
धर्मो$भिभवत्युत।।40।।
अधर्माभिभवातकृष्ण,
प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय,
जायते वर्णसंकरः।।41।।"
अर्थात-- "कुल के नष्ट (भ्रष्ट) होने पर सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाता है।धर्म के नष्ट हो जाने से सम्पूर्ण कुल (परिवार) में पाप फैल जाते है। पाप के फैल जाने से कुल की स्त्रियां भी दूषित ही जाती है। और स्त्रियों के दूषित होने से कुल में वर्णसंकर संतानो की उत्पत्ति होती है, जिससे कुल में कलह उत्पन्न होता है।।
"यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए लोग परिवार और कुल के नष्ट होने या उसका दमन करने तथा मित्रों से विरोध करने में होने वाले पाप को नही देखते है, किंतु बुद्धिमान मनुष्यों को चाहिए कि अपने कुल- परिवार, पारिवारिक मित्र और संबंधियों से विरोध न करते हुए पूरी सत्य, निष्ठा और शुद्ध अंतःकरण से आवश्यकता होने पर एक दूसरे की सहायता तथा सहयोग करें। आपस में सद्भाव, सहिष्णुता और अपनापन भी बनाये रखे।।"
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय -1,
श्लोक-38,40,41)
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