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जानिए क्यों भगवान शिव ने ब्रह्माजी के एक सिर को काट दिया था?
जयपुर:महाशिवरात्रि के दिन लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं, बेलपत्र और जल चढ़ाते हैं। भगवान शिव को लेकर बहुत सी कथाएं हैं। लेकिन उनमें से एक कथा है जब उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर उखाड़ दिया था।ब्रह्मा जी का एक सिर भगवान शिव ने उखाड़ दिया था। आनादि काल में, क्षीर सागर पर, काल-सर्प कुंडलियों के अंदर विष्णु अपनी स्वप्नरहित नींद में थे। तभी वह हिले। उनकी नाभि से एक कमल उगा जिस पर ब्रह्मा जी बैठे थे। ब्रह्मा जी ने अपनी आंखें खोलीं तो पाया कि वह अकेले हैं। एकाकी, भ्रमित और भयभीत वे सोंच में पड़ गए कि वे कौन हैं और उनका अस्तित्व किसलिए हैं।
उत्तरों की खोज में उन्होंने संसार की सृष्टि करनी शुरू कर दी। अपने मस्तिष्क से उन्होंने चार मानस पुत्रों सनत कुमार को जन्म दिया। उन्होंने प्रजनन करके संसार की जनसंख्या बढ़ाने में अनिच्छा प्रकट की और भाग गए। तब ब्रह्मा ने बेटों का एक समूह- दस प्रजापतियों- को पैदा किया। ये प्रजनन करके संसार की जनसंख्या बढ़ाने के लिए तैयार थे।लेकिन उन्हें नहीं पता था कि जनसंख्या कैसे बढ़ाएं। तब ब्रह्मा ने खुद को दो हिस्सों में बांट दिया। उनके बाएं हिस्से से एक नारी निकली जिसे उषस कहा गया। जैसे ही उषस ब्रह्मा के सामने प्रकट हुई, ब्रह्मा को एक ऐसी ऐन्द्रिक काम-भावना की अनुभूति हुई, जिसे पूरा करना जरूरी था।
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लालसा से विवश होकर ब्रह्मा अपनी पुत्री की तरफ लपके ताकि उसे अपना बना सकें। उषस अपने पिता की इस हरकत से दूर भागने लगी। भागते-भागते उसने अलग-अलग जीवों जैसे- गाय, घोड़ी, हंसिनी और हिरनी का रूप लिया। ब्रह्मा भी उसी के अनुरूप नर-जीवों बैल, घोड़ा, हंस और हिरन-का रूप धरते हुए उसका पीछा करते रहे। अपनी पुत्री के लिए ब्रह्मा की कामना इस तरह थी कि जब वह उनसे बचने के लिए उनकी परिक्रमा करने लगी तो उन्होंने चार प्रमुख दिशाओं में चार सिर उगा लिए, ताकि वे उसे हर समय देखते रहें। जब वह आकाश की ओर उड़ी तो ब्रह्मा के चार सिरों के ऊपर पांचवा सिर निकल आया।
निरंकुश आवेग के इस दर्शन से प्रजापति के बच्चों को बड़ी अरुचि और घृणा हुई। वे चिल्ला उठे। जवाब में शिव ने भैरव नामक भयंकर जीव का रूप धारण किया, जिसने ब्रह्मा के पांचवे सिर को उखाड़ लिया। जिसके बाद ब्रह्मा होश में आ गए।इसके बाद ब्रह्मा ने चारों वेद का गायन शुरू किया। बचे हुए चारों सिर से वेद निकला। भैरव का मतलब है जो भय उपजाता है। भैरव जीवन के आतंक का प्रतीक हैं। शिव ब्रह्मा के सिर को उखाड़ने के बाद कपालिक बनते हैं यानी कपाल लेकर चलने वाले।