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Bhagwan Hanuman Mystery: हनुमान जी भी है शादीशुदा, सुवर्चला नामक कन्या से हुआ था विवाह
Bhagwan Hanuman Mystery: बाल ब्रह्मचारी के रूप में जाने-जाने वाले हनुमान जी शादीशुदा थे। जी हाँ श्री हनुमान जी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं।
Bhagwan Hanuman Mystery: हिन्दू धर्म विवधताओं से भरा हुआ माना जाता है। इतना ही नहीं इस धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं को पूजनीय माना गया है। सभी देवी-देवताओं का अपना एक खास महत्त्व और जगह है। हनुमान जी को संकटमोचक कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाल ब्रह्मचारी के रूप में जाने-जाने वाले हनुमान जी शादीशुदा थे।
जी हाँ श्री हनुमान जी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु के साथ अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
हनुमान जी से जुड़े "कुछ खास रहस्य" जिन्हें आप आजतक नहीं जानते होंगे। इन सभी रहस्यों से पर्दा उठा रहे हैं ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी:
हनुमानजी का जन्म स्थान
कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। वही मतंग ऋषि के आश्रम में ही चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्री राम के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था।
बता दें कि कल्प के अंत तक पृथ्वी पर सशरीर रहेंगे हनुमानजी श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें सायुज्य की प्राप्ति होगी।अजर,अमर वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।
हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहा था कि 'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'श्रीमद्भागवत के अनुसार ये कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।
हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण के अनुसार हनुमानजी भाईयो में सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान एवं धृतिमान भाई थे। कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं।
गौरतलब है कि पराशर संहिता के अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त के अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।
विविध शक्तियो से युक्त हनुमान जी रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु के साथ अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
ये तो सर्वविदित है कि हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निगल लिया था। एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।
अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्होंने लंका ही जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। संजीवनी बूटी के लिए हिमालय से एक पहाड़ ही उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की। इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था। हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।
हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ
तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।इंद्रादि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनंद रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मंत्रों की रचना की है।
रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरव जी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा की स्थापना होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर भी देखते हैं।
हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को कई वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया। सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति नहीं ठहर सकती।
कुछ कृपा पात्र लोगों ने प्रत्यक्ष दर्शन किया है हनुमान जी का
13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी भक्तों पर किसी भी प्रकार के संकट को आने ही नहीं देते और पहले से ही कोई समस्या है तो उसे शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं और सारे संकटों को दूर कर सुखी जीवन प्रदान करते हैं हनुमान जी की भक्ति से दुखों की निवृत्ति के साथ सभी सुख प्राप्त किए जा सकते हैं भगवान राम हो कृष्ण हो या मां जगत जननी जगदंबा सभी के साथ भक्त हनुमान पूजे जाते हैं भक्त हनुमान को पूजे बिना सफलता कठिन है जबकि केवल हनुमान की आराधना से सभी प्रकार के सुख प्राप्त किए जा सकते हैं हनुमान चालीसा में लिखा भी है और 'देवता चित्त न धरई I हनुमत सेई सर्व सुख करई जय श्री राम'