Mahabharat me Gandhari Kaun Thi: गांधारी कौन थी, उनके सौ पुत्रों के नाम क्या थे, जानिए सवालों के जवाब

Mahabharat Me Gandhari Kaun Thi: गांधारी महाभारत के प्रमुख पात्र में से एक है। महाभारत के युद्ध में इनकी अहम भूमिका थी। इनके ज्येष्ठ पुत्र की वजह से ही महाभारत हुआ था, जानते हैं गांधारी कौन थी....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 12 Sep 2024 7:43 AM GMT (Updated on: 12 Sep 2024 10:27 AM GMT)
Mahabharat me Gandhari Kaun Thi: गांधारी कौन थी, उनके सौ पुत्रों के नाम क्या थे, जानिए सवालों के जवाब
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Gandhari in Mahabharat in Hindi गांधारी कौन थी : गांधारी महाभारत के प्रमुख पात्रों में एक है, इन्होंने 100 पुत्रों को जन्म दिया था। गांधारी गांधार देश के 'सुबल' नामक राजा की कन्या थीं। गांधारी को देवी मति का अवतार माना जाता है। वह शकुनि की बहन थी। कहा जाता है कि एक युवती के रूप में उसने तपस्या के माध्यम से शिव को प्रभावित किया और सौ बच्चों को जन्म देने का वरदान प्राप्त किया। गांधार की होने के कारण उसे गांधारी कहा जाता था। गांधारी के भाई का नाम शकुनि था। शकुनि दुर्योधन का मामा था। वह यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। जानते हैं गांधारी के जीवन का रहस्य।

गंधारी का विवाह क्यों हुआ था धृतराष्‍ट्र से

कहते हैं कि गांधारी ने धृतराष्‍ट्र से मजबूरीवश विवाह किया था। इसका कारण भीष्म थे। धृतराष्ट्र के लिए भीष्म ने गांधार नरेश की राजकुमारी का बलपूर्वक विवाह कराया था। ऐसा माना जाता है कि गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसलिए गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।

इस संबंध में दो कथा है। पहला यह कि गांधारी को पहले से ही पता था कि उनका होने वाला पति अंधा है। दूसरा यह कि विवाह के बाद जब उन्हें पता चला कि मेरे पति अंधा है तो वह सन्न रह गई था और उसने माना कि मेरे साथ धोखा हुआ है। इसीलिए उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। पहली कथा के अनुसार गांधारी ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए अपनी आंखों पर जीवनभर के लिए पट्टी बांध ली थी। इसी कारण गांधारी का संसार की पतिव्रता और महान नारियों में विशेष स्थान है।

गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली। यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया।

कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। और वह था शकुनि। यह भी कहा जाता है कि विवाह के समय गांधारी के साथ उनका भाई शकुनि और आयु में बड़ी उनकी एक सखी हस्तिनापुर आई थीं और दोनों ही यहीं रह गए थे।

भगवान शिव की परम भक्त थीं गांधारी

गांधारी भगवान शिव की परम भक्त थीं। शिव की तपस्या करके गांधारी ने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि वह जिस किसी को भी अपने नेत्रों की पट्टी खोलकर नग्नावस्था में देखेगी, उसका शरीर वज्र का हो जाएगा। युद्ध से पहले ऐसे में गांधारी ने अपनी आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन के शरीर को वज्र का करना चाहा, लेकिन कृष्ण के बहकावे के कारण दुर्योधन ने अपने गुप्तांग को पत्तों से छिपा लिया था जिसके चलते उसके गुप्तांग और जांघें वज्र के समान नहीं बन पाए। इसी कारण अपने प्रण के अनुसार ही महाभारत के अंत में भीम ने गदा से दुर्योधन की जांघ पर प्रहार किया और दुर्योधन मारा गया।


गांधारी के 100 पुत्र

गांधारी के पुत्रों को कौरव पुत्र कहा गया लेकिन उनमें से एक भी कौरववंशी नहीं था। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया था। इस वरदान के चलते ही गांधारी को 99 पुत्र और एक पुत्री मिली थीं। उक्त सभी संतानों की उत्पत्ति 2 वर्ष बाद कुंडों से हुई थी। गांधारी की बेटी का नाम दु:शला था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए।

कुंति के पुत्र पांडव थे और गांधारी के पुत्र कौरव। प्रारंभ में दोनों ही एक ही महल में रहती थीं, लेकिन राजगद्द के चक्कर में दोनों में अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिद्वंतिता रहती थी। कुंती एक अद्भुत महिला थीं। पति की मृत्यु के बाद कैसे उन्होंने अपने पुत्रों को हस्तिनापुर में दालिख करवाकर गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा दिलवाई और अंत में उन्हें राज्य का अधिकार दिलवाने के लिए प्रेरित किया यह सब जानना अद्भुत है। जिस तरह कुंति ने संघर्ष किया उसी तरह गांधारी ने भी संघर्ष किया। फिर भी दोनों की महिलाएं एक दूसरे के सुख दुख में साथ देती थीं।

महाभारत युद्ध मे ंगंधारी विवशता

शकुनि ने गांधारी व धृतराष्ट्र को अपने वश में करके धृतराष्ट्र के भाई पांडु के विरुद्ध षड्‍यंत्र रचने और राजसिंहासन पर धृतराष्ट्र का आधिपत्य जमाने को कहा था। शकुनि की जब यह चाल किसी भी कारण से सफल रही हो उसका सम्मान और बढ़ गया। गांधारी अपने भाई की चाल को समझती थी और वह अपने पुत्र को बुराइयों से दूर रहने का कहती थी लेकिन उसकी नहीं चलती थी। पति, भाई और पुत्र के बीच गांधारी विवश थी।

गंधारी ने दिया श्रीकृष्ण को श्राप

गांधारी के सभी सौ पुत्र महाभारत के युद्ध में मारे गए अंत में दुर्योधन का जब भीम ने वध कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात सांत्वना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गए। गांधारी अपने 100 पुत्रों की मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थीं। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे 100 पुत्रों का नाश हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे वंश का भी आपस में एक-दूसरे को मारने के कारण नाश हो जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने गांधारी से कहा- देवी, मैं आपके दुख को समझ सकता हूं। यदि मेरे वंश के नाश से तुम्हे आत्मशांति मिलती है तो ऐसा ही होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस शाप को पूर्ण करने के लिए अपने कुल के यादवों की मति फेर दी। मौसुल युद्ध के कारण जब श्रीकृष्ण के कुल के अधिकांश लोग मारे गए तो श्रीकृष्ण ने प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया। वहीं पर उनको एक भील ने भूलवश तीर मार दिया जो कि उनके पैरों में जाकर लगा। इसी को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने देह को त्याग दिया। उसके बाद द्वारिका नगरी समुद्र में डूब जाती है।


गांधारी की मृत्यु

युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के बाद धृतराष्ट्र, संजय, कुंति और गांधारी ने संन्यास ले लिया और वे अपना आगे का जीवन बिताने के लिए जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगे। तीन साल बाद एक दिन धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं। संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहते हैं, लेकिन दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र वहां से नहीं जाते हैं, गांधारी और कुंती भी नहीं जाती है। जब संजय अकेले ही उन्हें जंगल में छोड़ चले जाते हैं, तब तीनों लोग आग में झुलसकर मर जाते हैं। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं, जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। बाद नारद मुनि युधिष्ठिर को यह दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनकी आत्मशांति के लिए धार्मिक कार्य करते हैं।

गांधारी के 100 पुत्रों के नाम

जन्म लेते ही दुर्योधन गधे की तरह रेंकने लगा। उसका शब्द सुनकर गधे, गीदड़, गिद्ध और कौए भी चिल्लाने लगे, आंधी चलने लगी, कई स्थानों पर आग लग गई। यह देखकर विदुर ने राजा धृतराष्ट्र से कहा कि आपका यह पुत्र निश्चित ही कुल का नाश करने वाला होगा अत: आप इस पुत्र का त्याग कर दीजिए लेकिन पुत्र स्नेह के कारण धृतराष्ट्र ऐसा नहीं कर पाए।

1. दुर्योधन

2. दु:शासन

3. दुस्सह

4. दुश्शल

5. जलसंध

6. सम

7. सह

8. विंद

9. अनुविंद

10. दुद्र्धर्ष

11. सुबाहु

12. दुष्प्रधर्षण

13. दुर्मुर्षण

14. दुर्मुख

15. दुष्कर्ण

16. कर्ण

17. विविंशति

18. विकर्ण

19. शल

20. सत्व

21. सुलोचन

22. चित्र

23. उपचित्र

24.चित्राक्ष

25. चारुचित्र

26. शरासन

27. दुर्मुद

28. दुर्विगाह

29. विवित्सु

30. विकटानन

31. ऊर्णनाभ

32. सुनाभ

33. नंद

34. उपनंद

35. चित्रबाण

36. चित्रवर्मा

37. सुवर्मा

38. दुर्विमोचन

39. आयोबाहु

40. महाबाहु

41. चित्रांग

42. चित्रकुंडल

43. भीमवेग

44. भीमबल

45. बलाकी

46. बलवद्र्धन

47. उग्रायुध

48. सुषेण

49. कुण्डधार

50. महोदर

51. चित्रायुध

52. निषंगी

53. पाशी

54. वृंदारक

55. दृढ़वर्मा

56. दृढ़क्षत्र

57. सोमकीर्ति

58. अनूदर

59. दृढ़संध

60. जरासंध

61. सत्यसंध

62. सद:सुवाक

63. उग्रश्रवा

64. उग्रसेन

65. सेनानी

66. दुष्पराजय

67. अपराजित

68. कुण्डशायी

69. विशालाक्ष

70. दुराधर

71. दृढ़हस्त

72. सुहस्त

73. बातवेग

74. सुवर्चा

75. आदित्यकेतु

76. बह्वाशी

77. नागदत्त

78. अग्रयायी

79. कवची

80. क्रथन

81. कुण्डी

82. उग्र

83. भीमरथ

84. वीरबाहु

85. अलोलुप

86. अभय

87. रौद्रकर्मा

88. दृढऱथाश्रय

89. अनाधृष्य

90. कुण्डभेदी

91. विरावी

92. प्रमथ

93. प्रमाथी

94. दीर्घरोमा

95. दीर्घबाहु

96. महाबाहु

97. व्यूढोरस्क

98. कनकध्वज

99. कुण्डाशी

100. विरजा।

101. इनके अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ से हुआ था।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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