TRENDING TAGS :
Mahabharat Story: जब नरसंहार की बात कर यात्रा पर चल दिये बलराम
Mahabharat Story: मैं तो श्री कृष्ण भगवान के बिना इस संपूर्ण जगत की ओर आंख उठाकर भी नहीं देख सकता, अतः यह केशव भगवान जो कुछ करना चाहते हैं, मैं हूं उसी का अनुसरण करता हूं
Mahabharat Story: भीष्म पितामह के प्रधान सेनापति बनाए जाने का समाचार सुनकर युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण भगवान और अपने भाइयों से विचार-विमर्श करके इस प्रकार कहा- हमारा सबसे पहले भीष्म पितामह से युद्ध होगा। इसलिए अपनी 7 अक्षौहिणी सेना के सेनापति नियुक्त किया जाए। श्री कृष्ण भगवान बोले- ऐसा अवसर उपस्थित होने पर आपको जैसी बात करनी चाहिए, वैसे ही यह अर्थ युक्त बात आपने कही है। मुझे आपकी बात ठीक लगती है। अपनी सेना के सात सेनापति निश्चित कर लीजिए। तब द्रुपद विराट सात्यकि धृष्टकेतु शिखंडी और मगध राज सहदेव को सेनापति नियुक्त कर दिया गया और धृष्टद्युम्न को संपूर्ण सेनाओं का प्रधान सेनापति बनाया गया।अर्जुन को समस्त वीर सेनापतियों का अधिपति बना दिया गया। अर्जुन के भी नेता और उनके सारथी श्री कृष्ण भगवान बने। उस समय बलराम जी पांडवों के शिविर में आए। उनको आया देख कर सब लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया।
सब राजाओं के चारों ओर बैठ जाने पर बलराम जी ने श्री कृष्ण भगवान की ओर देखते हुए कहा- लगता है, महा भयंकर और दारुण नरसंहार होकर ही रहेगा। प्रारब्ध के इस विधान को मैं अटल मानता हूं। अब इसे दूर नहीं जा सकता। इस युद्ध से पार हुए आप सब सुहृदों को मैं अक्षत शरीर से युक्त और नीरोग देखूंगा। ऐसा मेरा विश्वास है। यहां जो नरेश एकत्र हुए हैं, उन सब को काल ने अपना ग्रास बना दिया है।महान जनसंहार होने वाला है। मैंने एकांत में श्रीकृष्ण भगवान से बार-बार कहा था कि- मधुसूदन, अपने सभी संबंधियों के प्रति समान व्यवहार करो। हमारे लिए जैसे पांडव हैं, वैसे ही राजा दुर्योधन है। उसकी भी सहायता करो। वह बार-बार अपने यहां आता रहता है। परंतु युधिष्ठिर, तुम्हारे लिए ही मधुसूदन श्री कृष्ण भगवान ने मेरी बात नहीं मानी। वे अर्जुन की ओर देखकर सब प्रकार उसी का समर्थन कर रहे हैं। मेरा निश्चित विश्वास है कि इस युद्ध में पांडवों की अवश्य विजय होगी। श्री कृष्ण भगवान का भी ऐसा ही निश्चय है। जहां तक मेरी बात है, मैं तो श्री कृष्ण भगवान के बिना इस संपूर्ण जगत की ओर आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। अतः यह केशव भगवान जो कुछ करना चाहते हैं, मैं हूं उसी का अनुसरण करता हूं। भीमसेन और दुर्योधन यह दोनों वीर मेरे ही शिष्य एवं गदा युद्ध में कुशल हैं। इन दोनों पर एक सा स्नेह रखता हूं। मैं नष्ट होते हुए कौरवों को उस अवस्था में देखकर उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।इसलिए मैं सरस्वती नदी के तट पर स्थित तीर्थों में तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। ऐसा कहकर महाबाहु बलराम पांडवों से विदा लेकर और मधुसूदन श्री कृष्ण भगवान को संतुष्ट कर के तीर्थ यात्रा के लिए चले गए।