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Mahabharata Story in Hindi: जानें क्यों तय थी पांडवों की जीत

Mahabharata Story in Hindi: महाभारत काव्य में पांडवों की जीत एक महत्वपूर्ण और रोचक कथा है। यह कथा हमें इस बात की जानकारी देती है कि पांडवों ने कैसे धार्मिक और न्यायप्रियता के मार्ग पर चलते हुए युद्ध में विजय प्राप्त की थी।

Sankata Prasad Dwived
Published on: 31 May 2023 12:36 AM IST
Mahabharata Story in Hindi: जानें क्यों तय थी पांडवों की जीत
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Mahabharata Story in Hindi (social media)

Mahabharata Story in Hindi: पांडव की सेना धृतराष्ट्र की सेना से अधिक सशक्त है। महाभारत की घटनाओं के अनुसार इसके निम्नलिखित कारण हैं :-
संकठा प्रसाद द्विवेदी

1- महादेव शंकर के वरदान से अम्बा ने शिखंडी के रूप में भीष्म को मारने के लिए ही राजा द्रुपद के यहां जन्म लिया था।

2- धृष्टद्युम्न का जन्म द्रोणाचार्य को मारने के लिए ही हुआ था। इस दृष्टि से युद्ध में द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न के हाथों मरना निश्चित था।

3-भीष्म ने शिखंडी एवं पांचों पांडवों को न मारने का निर्णय लिया था। साथ ही पितामह भीष्म ने पांडवों को अपने मरने का उपाय भी बतला दिया था।

4-कृपाचार्य ने अर्जुन की वीरता का वर्णन करते हुए कर्ण को कहा था कि अर्जुन ने अकेले ही चित्रसेन गंधर्व के सेवकों को युद्ध करके समस्त कौरवों की रक्षा की थी। अर्जुन ने अकेले ही अग्निदेव को तृप्त किया था। किरात वेष में आए भगवान शंकर से भी उसने अकेले ही युद्ध किया था। निवातकच और कालकेय दानवों को भी उसने अकेले ही मारा था। क्या तुमने अकेले ऐसा कोई युद्ध कर किसी को पराजित किया है ?

5-महाभारत युद्ध के पूर्व ही विराट पर्व के अंतर्गत जब भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण सभी मिलकर राजा विराट के राज्य पर आक्रमण किए थे, तब अकेले अर्जुन ने सब को पराजित किया था। अब इस युद्ध में वह अकेले नहीं है, बल्कि उसके साथ सात अक्षौहिणी सेना भी है।

6-युद्ध के पूर्व श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने दुर्गा देवी की स्तुति की थी। देवी दुर्गा प्रकट होकर बोली - पांडूनंदन ! तुम नर हो, नारायण तुम्हारे सहायक हैं। तुम युद्ध में अजेय हो।

7-युद्ध प्रारंभ होने के पहले जब राजा युधिष्ठिर पांडवों सहित पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य एवं शल्य से आशीर्वाद मांगने गए, तो चारों ने उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया।

8-युद्ध शुरू होने के कुछ पहले ही धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु पांडव पक्ष में मिल गया था।

9-युधिष्ठिर के मामा शल्य रहे तो धृतराष्ट्र पक्ष में, लेकिन युधिष्ठिर का कहना मान कर शल्य ने कर्ण के रथ का सारथित्व करना स्वीकार किया और सदा कर्ण को निरुत्साहित करते रहे।

10-जब दुर्योधन ने यह जानना चाहा था कि कौन कितने दिन में पांडव सेना का संहार कर सकता है ? तो भीष्म ने कहा था - एक महीना में। द्रोणाचार्य ने कहा था - 1 महीने में। कृपाचार्य ने कहा था - 2 महीने में। अश्वत्थामा ने कहा था -10 दिन में तथा कर्ण ने कहा था - 5 दिन में सारी सेना का संहार कर सकता हूं।

इसी प्रकार जब युधिष्ठिर ने अर्जुन से पूछा था, तब अर्जुन ने कहा था - श्रीकृष्ण की सहायता से मैं अकेला ही केवल एक रथ पर चढ़कर क्षणभर में देवताओं सहित तीनों लोकों के सभी जीवों का प्रलय कर सकता हूं। भगवान शंकर द्वारा दिया गया पाशुपतास्त्र मेरे पास है। भगवान शंकर प्रलय काल में संपूर्ण जीवों का संहार करने के लिए इसी अस्त्र का प्रयोग करते हैं। इसे मेरे सिवा न तो भीष्म जानते हैं और न ही द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कर्ण।

11-दुर्योधन के साथ केवल सामरिक संख्यात्मक शक्ति थी, जबकि पांडवों के साथ सत्य, धर्म एवं न्याय सहित आध्यात्मिक शक्ति थी, जिसके प्रतीक स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे।

इसीलिए ही पांडव पक्ष की विजय हुई थी। इसे हम महाभारत युद्ध के पश्चात् ही जान पाते हैं तथापि इसे भगवान श्री कृष्ण, भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य पहले से ही जानते थे।



Sankata Prasad Dwived

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