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Mahalakshmi Mandir Kolhapur: अक्षय तृतीया के दिन जरूर करें इस मंदिर का दर्शन, महालक्ष्मी का बना रहेगा आशीर्वाद

Mahalakshmi Mandir Kolhapur :अक्षय तृतीया के दिन वैभव लक्ष्मी की श्री विष्णु के साथ पूजा की जाती है। धन के देवता माने जाने वाले कुबेर की पूजा भी अक्षय तृतीया के दिन ही करते हैं। इस दिन भगवान शिव पार्वती और गणेश भगवान की भी पूजा की जाती है।इस लिए उनके दर्शन करने के लिए लोग महालक्ष्मी मंदिर जाते हैं। जिससे उनपर उनकी कृपा बनी रहे।

suman
Published By suman
Published on: 3 May 2022 9:23 AM IST
Mahalakshmi Mandir Kolhapur
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Mahalakshmi Mandir Kolhapur, Maharashtra

महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर, महाराष्ट्र

जहां धन होता है वहां मां लक्ष्मी होती है। समृद्धि की प्रतीक मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग लाखों जतन करते हैं। खासकर दिवाली होली,या अन्य त्योहारों पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है। इनमें एक खास तिथि अक्षय तृतीया भी है जो सुख समृद्धि का पर्व है। इस दिन सोना-चांदी की खरीद समृद्धि का प्रतीक है और इसका कभी क्षय न हो, इसलिए लोग अक्षय तृतीया को सोना खरीदते हैं। इस दिन वैभव लक्ष्मी की श्री विष्णु के साथ पूजा की जाती है। धन के देवता माने जाने वाले कुबेर की पूजा भी अक्षय तृतीया के दिन ही करते हैं। इस दिन भगवान शिव पार्वती और गणेश भगवान की भी पूजा की जाती है।इस लिए उनके दर्शन करने के लिए लोग महालक्ष्मी मंदिर जाते हैं। जिससे उनपर उनकी कृपा बनी रहे।

वैसे तो देवी मां के कई मंदिर मिल जायेंगे। लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर (Mahalakshmi Mandir) में दर्शन मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस मंदिर को अंबा बाई मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह मंदिर धन की देवी माता महालक्ष्मी को समर्पित है। यह मंदिर विशेष रूप से शाक्त संप्रदाय के अनुयायियों के लिए बहुत पवित्र मंदिर है। कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर को 51 शक्तिपीठ और 18 महा शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। हालक्ष्मी का यह मंदिर 1800 साल पुराना है और इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य ने देवी महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी। यही कारण है कि इस दिन कई श्रद्धालु दूर-दूर से यहांं दर्शन करने आते हैं।

महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास

महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास चालुक्य काल लगभग 600 ईस्वी का है, इसी वंश के शासकों द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। 8वीं शताब्दी में आए भूकंप ने मंदिर के अधिकांश भाग को नष्ट कर दिया था, लेकिन मंदिर का जो भाग बच हुआ था उसे आज भी देखा जा सकता है। 1009 ईस्वी में कोंकण राजा कर्णदेव ने इस मंदिर की खोज की, लेकिन शिलाहार वंश के राजा गंधरादित्य ने 11वीं शताब्दी में मंदिर तक पहुँचने वाले रास्ते का निर्माण किया। उन्होंने यहाँ पर दो मंदिरों (देवी महाकाली और सरस्वती माता) का निर्माण करवाया था। कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर परिसर स्थित एक शिलालेख के अनुसार 18वीं शताब्दी में मराठा शासन काल में ढाबड़ों और गायकवाड़ों द्वारा इस मंदिर का नवीनीकरण कार्य किया गया था।सन 1941 में श्रीमंत जहांगीरदार बाबासाहेब घाटगे द्वारा यहाँ नवग्रह मंदिर में नौ ग्रहों की मूर्तियां स्थापित कीं गई थी।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

महालक्ष्मी मंदिर से जुड़ी धार्मिक 2 कहानियां

इस मंदिर को लेकर ऐतिहासिक मान्यता यह है कि इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी को 'अम्बा बाई' के नाम से पूजा जाता है। कोल्हापुर देवी महालक्ष्मी की कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार ऋषि भृगु के मन में शंका उत्पन हुई कि त्रिमूर्ति के बीच में कौन सबसे श्रेष्ठ है। इसे जाने के लिए पहले वे ब्रह्मा के पास गए और बुरी तरह उनसे बात की। जिससे ब्रह्मा को क्रोध आ गया। इससे ऋषि भृगु को यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्मा अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते अतः उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा किसी भी मंदिर में नहीं होगी। इसके बाद वे शिव जी के पास गए लेकिन नंदी ने उन्हें प्रवेश द्वार पर ही यह कह कर रोक दिया कि शिव और देवी पार्वती दोनों एकान्त में हैं। इस पर ऋषि भृगु क्रोधित हुए और शिव जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा लिंग के रूप में होगी।

इसके बाद वे विष्णु जी के पास गए और देखा कि भगवान विष्णु अपने सर्प पर सो रहे थे और देवी महालक्ष्मी उनके पैरों की मालिश कर रहीं थी। यह देख ऋषि भृगु क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु छाती पर मारा। इससे भगवान विष्णु जाग गए और ऋषि भृगु से माफी मांगी और कहा कि कहीं उन्हें पैरो में चोट तो नहीं लग गयी। यह सुन कर ऋषि भृगु वहां से भगवान विष्णु की प्रशंसा करते हुए वापस चले गए। लेकिन ऋषि भृगु के इस व्यवहार को देख कर देवी महालक्ष्मी क्रोधित हो गयी और उन्होंने भगवान् विष्णु से उन्हें दंडित करने को कहा। लेकिन भगवान विष्णु इसके लिए राज़ी नहीं हुए।

भगवान विष्णु के बात ना मानने पर देवी लक्ष्मी ने वैकुंठ त्याग दिया और कोल्हापुर चली गयी। वहां उन्होंने तपस्या की जिससे भगवान विष्णु ने भगवान वेंकटचलपति रूप में अवतार लिया। इसके बाद उन्होंने देवी पद्मावती के रूप में देवी लक्ष्मी को शांत किया और उनके साथ विवाह किया। महालक्ष्मी की प्रतिमा काली और ऊंचाई करीब 3 फीट लंबी है। मंदिर के एक दीवार में श्रीयंत्र पत्थर पर खोद कर चित्र बनाया गया है। देवी की मूर्ति के पीछे देवी की वाहन शेर का एक पत्थर से बनी प्रतिमा भी मौजूद है। अन्य हिंदू पवित्र मंदिरों में देवीजी पूरब या उत्तर दिशा को देखते हुए मिलती हैं लेकिन यहां देवी महालक्ष्मीजी पश्चिम दिशा को निरीक्षण करते हुए मिलती है। वहां पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की मिलती है, जिसके माध्यम से सूरज की किरणें हर साल मार्च और सितंबर महीनों के 21 तारीख के आसपास तीन दिनों के लिए देवीजी की मुख मंडल को रोशनी करते हुए इनके पद कमलों में शरण प्राप्त करते हैं।

दूसरी कथा के अनुसार कोल्हापुर में एक कोल्हा नाम का राक्षस रहता था। वह भगवान ब्रह्मा के पास तपस्या करने के लिए गया तो इस स्थान पर सुकेसी नाम के एक अन्य राक्षस ने कब्जा कार लिया। कोल्हा भगवान ब्रह्मा की तपस्या पूर्ण कार वापस आया तो उसने सुकेसी का वाढ कर अपने बेटे करवीरा को यहाँ का राजा बना दिया। दोनों बाप बेटे मिलकर यहाँ अत्याचार करने लगे। यह सब देख कार भगवान शिव जी ने करवीरा को एक युद्ध में मार दिया। अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेने के लिए कोल्हा ने माता महालक्ष्मी की तपस्या की और उनसे 100 वर्षों तक इस शहर में प्रवेश नहीं करने का वचन लिया। कोल्हा को वचन देकर माता महालक्ष्मी यहाँ से चली गई। माता के जाने के बाद कोल्हा ने यहाँ रहने वाले लोगों और देवताओं को फिर से परेशान करना शुरू कर दिया। बाद में 100 वर्षों के बाद जब माता वापस आई तो उन्होंने देवताओं के साथ उस कोल्हा राक्षस का वध कार दिया। आपनी मृत्यु से पहले कोल्हा ने माता से तीन वर मांगे पहला वर उसने अपने लिए माफी मांगी, दूसरा वर इस जगह का नाम कोल्हापूर रख दें और तीसरा वर माता से हमेशा यही पर रहने के लिए कहा, माता ने उसकी सभी बातें मानी और हमेशा के लिए यहीं पर विराजमान हो गई।

कोल्हापुर मंदिर को 51 शक्तिपीठ में एक शक्तिपीठ मान गया है। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। महादेव के अपमान से क्रोधित हो कर माता सती ने अग्नि कुंड में आत्मदाह कर लिया। माता सती के आत्मदाह का आभास होते महादेव की क्रोधाग्नि से सारा ब्रह्मांड जलने लगा। तब भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए माता सती के शरीर को को 51 भागों में विभाजित कर दिया जो इस धरती के अलग-अलग जगहों पर जा गिरे और पाषाण के रूप में स्थापित हो गए। वही आज शक्तिपीठ के रुप में जाने जाते हैं।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

मां लक्ष्मी के लिए मंत्र जाप

ओम सर्वबाड़ा विनम्रुको, धन ध्यायाह सूटेनवीता मनुश्या माताप्रसादन आशीर्वाद भावना संप्रशाय ओम

ओम श्री महालक्ष्मीई चा विदर्भ विष्णु पेट्राई चाई धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रोक्योदय ओम

ओम श्रृंग श्रीै नमः

ओम हिंग क्लिंग महालक्ष्मीई नमः।।

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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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