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मोहिनी एकादशी के दिन न करें ये काम, बना रहेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद
इस बार मोहिनी एकादशी 22 मई को मनाई जाएगी।इस किए गए व्रत के प्रभाव से मनुष्य माया-मोहजाल से छुटकारा पा लेता हैं।
लखनऊ: मोहिनी एकादशी ( Mohini Ekadashi) वैशाख माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन व्रत –पूजा करने से सब पापों का हरन होता है और उत्तम पुण्य फल मिलता है। इस दिन जो व्रत करता है उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य माया-मोहजाल से छुटकारा पा लेता हैं। इस बार मोहिनी एकादशी 22 मई को मनाई जाएगी।
किसी भी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति के लिए व्रत के नियम एक रात पहले से ही शुरू हो जाते हैं। इसके लिए दशमी तिथि के दिन सात्विक भोजन करें। भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
शुभ मुहूर्त
इस दिन मोहिनी एकादशी शनिवार, मई 22, 2021 को सुबह 09:15 बजे से शुरू होकर अगले दिन 23 मई 2021 को सुबह 06:42 बजे तक रहेगी। पारणा मुहूर्त : 24 मई सुबह 05:26 बजे से सुबह 08:10 बजे तक है।
व्रत विधि और महत्व
एकादशी के दिन सुबह जल्दी स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान नारायण का विधि विधान से पूजन करें। उन्हें चंदन, अक्षत, पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल चढ़ाएं। भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ें। इसके बाद आरती करके क्षमा याचना करें। दिन भर व्रत नियमों का पालन करें और अगले दिन व्रत का पारण करें। एकादशी के दिन गीता का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है।
ना करें यह काम
अगले दिन भोजन करें और व्रत वाले दिन फलाहर करें। एकादशी में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन चावल भी नहीं खाना चाहिए। जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर पाते वो भी अगर इस दिन एकादशनी के दिन चावल ता त्याग करते हैं तो उन पर भी भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। हो सके तो एकादशी के दिन व्रत करें और एक ही समय भोजन करें।
जो लोग पीतल के बरतन में खाना खाते हैं उन लोगों को इस दिन पीतल के बरतन में खाना नहीं खाना चाहिए। कहा जाता है यदि पीतल के बर्तन में खाना खाया जाए तो भगवान की कृपा नहीं बरसती है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए। मांसाहार और नशा से इस दिन दूर रहना चाहिए। व्रत के एक दिन पहले से ही उड़द , मसूर , चने की दाल, शहद को भोजन से दूर रखना चाहिए।
धार्मिक कथा
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है।
वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।
इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।
इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।
एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई।
वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।
हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।