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Motivational Kahani Hindi: सुख के भाव बताता रस सिद्धांत

Motivational Kahani Hindi: निकुँज रस प्राप्ति कैसे हो इस ध्येय को लेकर ही हम चल रहे हैं । महावाणी के जो रचयिता हैं श्री श्री हरिव्यास देव जी,जिनका निकुँज में सखीरूप हरिप्रिया सखी के नाम से है।

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Published on: 12 March 2024 10:01 AM GMT
Motivational Kahani Bhagwan Shri Krishna
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Motivational Kahani Bhagwan Shri Krishna

Motivational Kahani Hindi: हे रसिकों ! निकुँज रस प्राप्ति कैसे हो इस ध्येय को लेकर ही हम चल रहे हैं । महावाणी के जो रचयिता हैं श्री श्री हरिव्यास देव जी , जिनका निकुँज में सखीरूप ’हरिप्रिया सखी’ के नाम से है। महावाणी रस का आदि ग्रन्थ है। ऐसा रस ग्रन्थ लिखा नही गया है। इसमें जो ‘सिद्धान्त सुख’है। वो ‘रस सिद्धान्त’ का ही मार्ग हमें बताता है। इस मार्ग में कैसे चलना है , क्या क्या कठिनाइयाँ आएँगीं। और हमें क्या करना होगा ।इसके अलावा निकुँज की क्या स्थिति है। वहाँ कैसे सखियाँ सेवा में हैं। सखियों का कैसे विभाग होता है निकुँज में इन सबका वर्णन है ।और स्पष्टता से वर्णन है । रस साधकों को लाभ हो। इसलिए मैं इसे लिखने बैठा हूँ और कोई बात है नही । कल एक साधक , डाक्टर साहब हैं । मेरे पास आते रहते हैं भावुक हैं और विशेष निम्बार्क संप्रदाय के अनुयायी हैं। उन्होंने मुझे कल ही पूछा था। महावाणी में पाँच सुख हैं-सेवा सुख , उत्साह सुख , सुरत सुख , सहज सुख और सिद्धान्त सुख । उनका प्रश्न ये था कि - महाराज ! अन्यान्य ग्रन्थों में सिद्धान्त पहले होता है फिर ग्रन्थ के अन्य विषय होते हैं । किन्तु यहाँ ग्रन्थ का विषय पहले लिया गया है और सिद्धान्त बाद में ..ऐसा क्यों ?


मेरा मत ये है कि रस मार्ग में चलना आवश्यक है। बाकी सिद्धान्त रस का क्या होगा ? रस तो पीने की वस्तु है। जैसे जल पीना आवश्यक है। हाइड्रोजन और ओक्सीजन , एच , टू , ओ , का फ़ार्मूला जानना ज़रूरी नही है। इसलिए श्रीश्री हरिव्यास देव जू ने पहले सिद्धान्त न रखकर सीधे ‘सेवा सुख’ का रस पिलाया । क्यों की इस मार्ग के पिपासु के लिए रस ही प्रथम आवश्यक था, है ।

किन्तु बाद में श्रीश्री हरिव्यास देव जू को लगा होगा कलि के लोग बुद्धि के माध्यम से भी इस रस को समझना चाहेंगे इसलिए उन्होंने अन्तिम में ‘सिद्धान्त सुख’ को रखा । ये मेरे विचार हैं बाकी रसिक समाज क्या कहता है , वो जानें। अस्तु ।

आप लोगों ने कल तक पढ़ा , जाना की श्रीवृन्दावन ही निकुँज है। काम बीज , क्लीं ही इस निकुँज तक पहुँचने का माध्यम हो सकता है। वैसे कृपा साध्य है ये श्रीवृन्दावन । जड़ नही चिद है वृन्दावन , ये कब से कब तक है ये बात कोई नही जानता यानि ये अनादि काल से है और अनादि काल तक । वराह पुराण में भी आता है कि पृथ्वी को लाते समय जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जल मग्न था उस समय पृथ्वी को श्रीवृन्दावन के दर्शन बराह भगवान ने कराए थे। और ये भी कहा है कि सृष्टि और प्रलय का श्रीवृन्दावन पर कोई प्रभाव नही होता ।

ऐसे दिव्य निकुँज यानि श्रीवृन्दावन का वर्णन हमने कल सुना , पढ़ा ..अब आगे उस श्रीवृन्दावन की भूमि कैसी है ? लता-वृक्ष कैसे हैं ? पक्षी आदि कैसे हैं ? इन सबका वर्णन अब यहाँ हो रहा है ।

आप ये पूछ सकते हो कि ये क्या है ? इन पक्षी लता-वृक्ष के वर्णन का हम क्या करें ?

ये ध्यान करने के लिए है। यहाँ जो वर्णन है वो सिर्फ ध्यान के लिए है। रस साधक इसको पहले अच्छे से समझ लें , फिर इसका ध्यान करें ।

Shalini Rai

Shalini Rai

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