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Ramayan Katha: रामायण में एक घास के तिनके का रहस्य

Ramayan Katha: रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप तो राम का वेश धर कर गये थे,फिर क्या हुआ

Sankata Prasad Dwived
Published on: 21 July 2024 6:12 PM IST
Ramayan Katha
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Ramayan Katha: रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी।रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी।यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भ्रमित करने की भी कोशिश की।लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ। रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप तो राम का वेश धर कर गये थे,फिर क्या हुआ?

रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थीं। रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था । लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता!रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ। लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो, क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है?

रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी,और उनकी आँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।इसकी सबसे बड़ी वजह थी किजब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ।बहुत उत्सव मनाया गया।प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर घर पर मिठास बनी रहे। इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई, और समस्त परिवार,राजा दशरथ एवं तीनों रानियों सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।

माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया,और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया।सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी। ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया,जिसे माँ सीता जी ने देख लिया।लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया।सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा।’ लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे।फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।फिर उन्होंने सीताजी जे कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ।आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं,लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था, उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।

तृण धर ओट कहत वैदेही
सुमिरि अवधपति परम् सनेही

यही है उस तिनके का रहस्य! इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी।लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही!ऐसी विशाल हृदया थीं हमारी जानकी माता।

( लेखक धर्म व अध्यात्म के विशेषज्ञ हैं।)



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Shalini Rai

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