TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

जानिए पत्रकारिता के पहले देवर्षि नारद मुनि के जीवन का रहस्य.....

मैत्रायणी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है। कुछ स्थानों पर नारद का वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है।

suman
Published on: 22 May 2019 11:44 AM IST
जानिए पत्रकारिता के पहले देवर्षि नारद मुनि के जीवन का रहस्य.....
X

जयपुर: नारद मुनि का नाम आते ही कानों में एक ही शब्द गुंजता है नारायण नारायण। नारद मुनि जो नारायण के परम भक्त व देवताओं के बीच संवाद तंत्र।हिन्‍दू शास्‍त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना गया है। हर साल ज्‍येष्‍ठ महीने की कृष्‍ण पक्ष द्व‍ितीया को नारद जयंती मनाई जाती है। आखिर क्या था उनकी शक्ति का राज और क्या है उनकी कहानी।हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार नारद मुनि का जन्‍म सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की गोद से हुआ था। ब्रह्मवैवर्तपुराण के मतानुसार ये ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न हुए थे।

देवर्षि नारद को महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव का गुरु माना जाता है। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी। देवताओं के ऋषि होने के कारण नारद मुनि को देवर्षि कहा जाता है। प्रसिद्ध मैत्रायणी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है। कुछ स्थानों पर नारद का वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है।

नारद मुनि ने भृगु कन्या लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ करवाया। इन्द्र को समझा बुझाकर उर्वशी का पुरुरवा के साथ परिणय सूत्र कराया। महादेव द्वारा जलंधर का विनाश करवाया। कंस को आकाशवाणी का अर्थ समझाया। वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी। व्यासजी से भागवत की रचना करवाई। इन्द्र, चन्द्र, विष्णु, शंकर, युधिष्ठिर, राम, कृष्ण आदि को उपदेश देकर कर्तव्याभिमुख किया।कहते हैं कि ब्रह्मा से ही इन्होंने संगीत की शिक्षा ली थी। भगवान विष्णु ने नारद को माया के विविध रूप समझाए थे। नारद अनेक कलाओं और विद्याओं में में निपुण हैं। कई शास्त्र इन्हें विष्णु का अवतार भी मानते हैं और इस नाते नारदजी त्रिकालदर्शी हैं। ये वेदांतप्रिय, योगनिष्ठ, संगीत शास्त्री, औषधि ज्ञाता, शास्त्रों के आचार्य और भक्ति रस के प्रमुख माने जाते हैं। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्‍त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है।

नारद मुनि भागवत मार्ग प्रशस्त करने वाले देवर्षि हैं और 'पांचरात्र' इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ है। वैसे 25 हजार श्लोकों वाला प्रसिद्ध भी इन्हीं द्वारा रचा गया है। इसके अलावा 'नारद संहिता' संगीत का एक उत्कृष्ट ग्रंथ है। 'नारद के भक्ति सूत्र' में वे भगवत भक्ति की महिमा का वर्णन करते हैं। इसके अलावा बृहन्नारदीय उपपुराण-संहिता- (स्मृतिग्रंथ), नारद-परिव्राज कोपनिषद और नारदीय-शिक्षा के साथ ही अनेक स्तोत्र भी उपलब्ध होते हैं।नारद विष्णु के भक्त माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। भगवान विष्णु की कृपा से ये सभी युगों और तीनों लोकों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। यह भी माना जाता है कि लघिमा शक्ति के बल पर वे आकाश में गमन किया करते थे। लघिमा अर्थात लघु और लघु अर्थात हलकी रुई जैसे पदार्थ की धारणा से आकाश में गमन करना। एक थ्योरी टाइम ट्रेवल की भी है। प्राचीनकाल में सनतकुमार, नारद, अश्‍विन कुमार आदि कई हिन्दू देवता टाइम ट्रैवल करते थे। वेद और पुराणों में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है।देवर्षि नारद को दुनिया का प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता होने के गौरव प्राप्त हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया था। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरुष/पुरोधा पुरुष/पितृ पुरुष हैं। वे इधर से उधर भटकते या भ्रमण करते ही रहते हैं।

राजस्थान सरकार ने गर्मी की छुट्टियों का कैलेंडर बदला, नहीं मनाया जा सकेगा

एक अन्य कथा के अनुसार दक्षपुत्रों को योग का उपदेश देकर संसार से विमुख करने पर दक्ष क्रुद्ध हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया। फिर ब्रह्मा के आग्रह पर दक्ष ने कहा कि मैं आपको एक कन्या दे रहा हूं, उसका काश्यप से विवाह होने पर नारद पुनः जन्म लेंगे। पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को शाप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे। यही वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते हैं। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने नारद को माया के विविध रूप समझाए थे। एक बार यात्रा के दौरान एक सरोवर में स्नान करने से नारद को स्त्रीत्व प्राप्त हो गया था। स्त्री रूप में नारद 12 वर्षों तक राजा तालजंघ की पत्नी के रूप में रहे। फिर विष्णु भगवान की कृपा से उन्हें पुनः सरोवर में स्नान का मौका मिला और वे पुनः नारद के स्वरूप को लौटे। नारद हमेशा अपनी वीणा की मधुर तान से विष्‍णुजी का गुणगान करते रहते हैं। वे अपने मुख से हमेशा नारायण-नारायण का जप करते हुए विचरण करते रहते हैं।

नारद हमेशा अपने आराध्‍य विष्‍णु के भक्‍तों की मदद भी करते हैं। मान्‍यता है कि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष और ध्रुव जैसे भक्तों को उपदेश देकर भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया था। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी जबकि ब्रह्मा उन्हें सृष्टिमार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे। ब्रह्मा ने फिर उन्हें शाप दे दिया था। इस शाप से नारद गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए। इस योनि में नारदजी का नाम उपबर्हण था। यह भी मान्यता है कि पूर्वकल्प में नारदजी उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। कहते हैं कि उनकी 60 पत्नियां थी और रूपवान होने की वजह से वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे। इसलिए ब्रह्मा ने इन्हें शूद्र योनि में पैदा होने का शाप दिया था। इस शाप के बाद नारद का जन्म शूद्र वर्ग की एक दासी के यहां हुआ। जन्म लेते ही पिता के देहान्त हो गया। एक दिन सांप के काटने से इनकी माताजी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। एक दिन चतुर्मास के समय संतजन उनके गांव में ठहरे। नारदजी ने संतों की खूब सेवा की। संतों की कृपा से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। समय आने पर नारदजी का पांचभौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अन्त में ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए।

तुलसीदासजी के श्रीरामचरित मानस के बालकांड के अनुसार नारदजी को अहंकार आ गया कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है। भगवान ने एक बार अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया, जिसमें एक सुंदर राजकन्या का स्वयंवर चल रहा था। यह कथा में दी है। नारदजी ने भगवान के पास जाकर उनका सुंदर मुख मांगा ताकि राजकुमारी उन्हें पसंद कर ले। परंतु अपने भक्त की भलाई के लिए भगवान ने नारद को बंदर का मुंह दे दिया। स्वयंवर में राजकन्या (स्वयं लक्ष्मी) ने भगवान को वर लिया। जब नारदजी ने अपना मुंह जल में देखा तो उनका क्रोध भड़क उठा। नारदजी ने भगवान विष्णु को शाप दिया कि उन्हें भी पत्नी का बिछोह सहना पड़ेगा और वानर ही उनकी मदद करेंगे।

पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने और विवाह करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा की आज्ञा का पालन नहीं किया और वे विष्णु भक्ति में ही लगे रहे। तब क्रोध में आकर ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का शाप दे दिया।अंत में नारद जयंती के दिन भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी का पूजन करने के बाद ही नारद मुनि की पूजा की जाती है। इस दिन गीता और दुर्गासप्‍तशती का पाठ करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी भेट कर अन्‍न और वस्‍त्र का दान करना चाहिए।



\
suman

suman

Next Story