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Kanya Pujan Ka Mahatva: क्यों किया जाता है कन्या पूजन, जानिए महत्व, मुहूर्त और लाभ
Kanya Pujan Ka Mahatva: नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी के अनके रुपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। इस बार अष्टमी तिथि 3 अक्टूबर को है। नवमी तिथि 4 अक्टूबर को होगी । वैसे तो कन्या पूजन के लिए इन तिथियों पर पूरा दिन शुभ होता है लेकिन अगर विशेष फल की चाहत है तो इस दिन राहुकाल को छोड़कर किसी शुभ काल जैसे अमृत काल ,विजय मुहूर्त, अमृत , शुभ, लाभ, की चौघड़िया में पूजा कर सकते है।
Kanya Pujan Ka Mahatva: शारदीय नवरात्रि चल रही है जो 22 और 23 अक्टूबर को रावन दहन के साथ समाप्त होगी। नवरात्रि के 9 दिन तक देवी दुर्गा का अनुष्ठान किया जाता है। व्रत उपवास पूजा से मां दुर्गा की पूजा की जाती है। प्रतिपदा से नवमी तक 9 रूपों की पूजा के बाद कन्या पूजन हवन से नवरात्रि की पूर्णाहुति की जाती है। नवरात्रि में देवी दुर्गा ( Devi Durga) की आराधना के साथ कन्या पूजन का विधान है। चाहे चैत्र या शारदीय नवरात्रि हो इसमें 8 वें और 9 वें दिन कन्या पूजन किया जाता है। इस बार भी नवरात्रि में 22 और 23 अक्टूबर को कन्या की पूजा की जाएगी। बिना कन्या पूजन के नवरात्रि और मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है।
देवी की आराधना के लिए नवरात्रि (Navratri) के नौ दिन लोकप्रिय पर्व है। ये पूरे देश में अनेक रूपों में मनाया जाता है। नौ दिनों तक देवी (Devi) के अनके रुपों की पूजा की जाती है। (दुर्गा, काली या वैष्णोदेवी) के भक्त नवरात्रि की अष्टमी या नवमी (Aahtami or Navami)को छोटी कन्याओं(लड़कियों) की पूजा करते हैं। कन्या पूजन में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। छोटी लड़कियों की पूजा (worship)करने के पीछे बहुत सरल कारण( Reason) छिपा है।
हर मनुष्य के अंदर या तो अहंकार रह सकता है या भगवान। अहंकार-भगवान दोनों एक साथ नहीं रह सकते। जब आपके अंदर से अहंकार पूरी तरह निकल जाता है तब आप दैवीय उर्जा को मानते हैं। भक्ति के मार्ग का उद्देश्य है कि अपने अहंकार को भगवान के सामने छोड़ दें और अपने जीवन का नियंत्रण भगवान के हाथों में दे दें।
कन्या पूजा एक अवसर होता है जब आप छोटी बच्चियों के रूप में देवी की पूजा कर सकते हैं। कन्या पूजा में एक भक्त के रूप में आपके पास विश्वास, पवित्रता और समर्पण होना चाहिए। पूजा के दौरान उन्हें लड़कियों के रूप में न देखें। कहा जाता है कि छोटी बच्चियों में अहंकार नहीं होता है, इसलिए इन्हे देवी का स्वरुप मानते है। जो माता के भक्त होते हैं वे अगर कन्या पूजन को पूरी ईमानदारी से करें,तो देवी दुर्गा खुश होती है और कृपा बरसती है।
नवरात्रि में कन्या पूजन की विधि
अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन करने करें। इससे पहले हवन कर लें और फिर दुर्गा देवी को हलवा पूड़ी और चने का प्रसाद चढायें और कन्या पूजन के समय जब कन्या घर पर पधारती हैं, तो स्वागत करते हुए उनके चरण धोएं और उन्हें उचित स्थान पर बैठाए। इसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत और कुमकुम लगाएं। उनकी पूजा करते हुए मां दुर्गा का ध्यान करें और उन्हें इच्छा अनुसार भोजन कराएं। फिर छोटी-छोटी 9 कन्याओं को पैर धो कर कुमकुम तिलक लगाकर घर में भोजन करवायें।इसके बाद उन्हें कलावा बांधकर तिलक लगाया जाता है, फिर भरपेट भोजन कराया जाता है। आखिर में कन्याओं को नारियल, फल और दक्षिणा और कहीं, कहीं चूड़िया और बिंदी भी दी जाती है। भोजन के बाद कन्याओं को सामर्थ्य के मुताबिक दक्षिणा या उपहार दें और पैर छूकर आशीर्वाद लें और उन्हें विदा करें।
नवरात्रि में कन्या पूजन का मुहूर्त
नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। इस बार अष्टमी तिथि अष्टमी तिथि 04:38 PM तक फिर नवमी 23 अक्टूबर को है। नवमी तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर को नवमी तिथि 02:21 PM तक फिर दशमी होगी । वैसे तो कन्या पूजन के लिए इन तिथियों पर पूरा दिन शुभ होता है लेकिन अगर विशेष फल की चाहत है तो इस दिन राहुकाल को छोड़कर किसी शुभ काल जैसे अमृत काल ,विजय मुहूर्त, अमृत , शुभ, लाभ, की चौघड़िया में पूजा कर सकते है।
नवरात्रि में कन्या पूजन में दें दान, पूरी होगी इच्छा
नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी के अनके रुपों की पूजा की जाती है। (दुर्गा, काली या वैष्णोदेवी) के भक्त नवरात्रि की अष्टमी या नवमी को छोटी कन्याओं (लड़कियों) की पूजा करते हैं। कन्या पूजन में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। छोटी लड़कियों की पूजा करने के पीछे बहुत सरल कारण छिपा है। नवरात्रि में आपकी हर समस्या का समाधान मां दुर्गा करती है। साथ मे उर्जा और शक्ति का संचार करती है। अगर आपके दिल में कोई इच्छा है तो कन्याओं कों लाल-सफेद फूल दें। वस्त्र, फल और खीर खिलाने से माता रानी की आसीम कृपा बनी रहती है। इसके अलावा श्रृंगार सामग्री , खेलने पढ़ने की चीजे देने से मां दुर्गा प्रसन्न रहती है और देने और लेने वाले दोनों व्यक्ति पर मां शेरेवाली की कृपा बरसती है। कन्याओं को मेहंदी भी उपहार स्वरुप देना चाहिए।
नवरात्रि में कन्या पूजन की मान्यताएं
मान्यतों के अनुसार कन्या पूजन से मां बेहद प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनााओं को कर देती हैं। इतना ही नहीं देवी पुराण के अनुसार मां को हवन और दान से अधिक प्रसन्नता कन्या भोज से मिलती है। ज्योतिषशास्त्र में भी कन्या पूजन को बेहद फलदायी मानाते हुए कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के कुंडली में बुध ग्रह बुरा फल दे रहा है, तो लोगों को कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। बता दें कि बुध की मित्र राशियां वृष, मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ होने के कारण इन राशियों के जातकों को कन्या पूजन का विशेष लाभ मिलता है। माता रानी के भक्त अष्टमी और नवमी के दिन छोटी-छोटी कन्याओं को माता का अवतार मान कर उनका पूजन कर उन्हें भोजन करा कर कुछ भेंट देते हैं। गौरतलब है कि इन कन्याओं के बीच एक लड़का भी अवश्य बिठाया जाता है ,जिसे लांगुर कहते हैं। कहा जाता है कि उसके बिना कन्या पूजन पूर्ण नहीं माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कन्याओं के पूजन में दो से दस वर्ष तक की कन्याओं को बिठाना उचित होता है । इसके लिए कन्याओं की संख्या नौ होना सर्वोत्तम बताया गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कन्याओं की संख्या के अनुसार ही कन्या पूजन का फल प्राप्त होता है। हर कन्या का अलग और विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन में 9 कन्याओं और एक लड़के का पूजन करना बेहद शुभ होता है।
कन्या पूजन में क्यों करते है
कहते हैं कि जो छोटी कन्याएं होती है वो देवी का रूप होती है उनमें छल-कपट नहीं होता। ये कन्याएं स्त्री ऊर्जा का चरम होती है। इसके अलावा उनमें अहंकार नहीं होता और वे मासूम होती हैं। इस बात की बहुत अधिक संभावना होती है कि कन्या पूजा के दौरान आप इन छोटी लड़कियों में देवी माता की शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।
नवरात्रि के दौरान आप कितने समर्पण के साथ देवी माता को याद करते हैं। यदि छोटी लड़कियों की पूजा करते समय यदि आप समग्र भाव से उनमें देवी का स्वरुप देखें या स्वयं को पूर्ण रूप से उनके चरणों में समर्पित कर दें तो आपको लगेगा कि आपने देवी के चरण छू लिए हैं।
कन्या पूजा एक अवसर होता है जब आप छोटी बच्चियों के रूप में देवी की पूजा कर सकते हैं। एक भक्त के रूप में आपके पास विश्वास, पवित्रता और समर्पण होना चाहिए। पूजा के दौरान उन्हें लड़कियों के रूप में न देखें। अत: सभी धार्मिक संस्कार जैसे उनके पैर धोना, उन्हें बैठने के लिए आसन देना, मन्त्रों का उच्चारण, उन्हें हलवा, पूरी, काले चने की सब्जी और मिठाइयां खिलाना आदि भक्ति और आदर से करें।